जिले के बड़े नशा तस्करों पर मकोका क्यों नहीं? संरक्षक कौन ?

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चंद्रपुर, 22 मई: जिले में नशीले पदार्थों का कारोबार अपने चरम पर है, जिले के बड़े कुख्यात तस्करों के नाम इस अवैध धंधे में बार-बार उछल रहे हैं। इन पर नशीले पदार्थों की तस्करी और बिक्री के दर्जनों मामले दर्ज होने के बावजूद, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) जैसे सख्त कानून के तहत कार्रवाई न होना कई सवाल खड़े करता है। आखिर इन तस्करों का मसीहा कौन है, जो इन्हें संरक्षण दे रहा है?

मकोका की अनदेखी क्यों?  

मकोका एक ऐसा कानून है, जो संगठित अपराध और तस्करी जैसे गंभीर मामलों में प्रभावी कार्रवाई के लिए बनाया गया है। इसके तहत दोषी को जमानत मिलना मुश्किल होता है, और सजा भी कठोर होती है। जिले में अवैध नशीले पदार्थों की आपूर्ति करने वाले तस्करों पर नशीले पदार्थों की तस्करी के कई मामले दर्ज हैं, फिर भी इनके खिलाफ मकोका लागू नहीं किया गया। सूत्रों के अनुसार, इन तस्करों के खिलाफ सबूतों की कमी, कानूनी प्रक्रिया में ढिलाई, या प्रभावशाली लोगों का दबाव इसकी वजह हो सकता है।

प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर सवाल

स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि इन बड़े तस्करों को पुलिस और प्रशासन के कुछ अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “ये तस्कर खुले आम कारोबार करते हैं, क्योंकि उनकी पहुंच ऊंचे स्तर तक है। छापेमारी और जांच के नाम पर छोटे तस्करों को पकड़ा जाता है, लेकिन इन बड़े माफियाओं पर हाथ डालने की हिम्मत कोई नहीं करता।”

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर भी इन तस्करों के खिलाफ कार्रवाई न होने पर आक्रोश देखा जा सकता है। एक यूजर ने लिखा, “शहर के नामचीन लोग जिले में नशे का जाल बिछा रहे हैं, लेकिन पुलिस और प्रशासन खामोश है। क्या इनका कोई बड़ा संरक्षक है?”

पंजाब का उदाहरण और चंद्रपुर की हकीकत 

पंजाब के संगरूर जेल में हाल ही में एक ड्रग रैकेट का पर्दाफाश हुआ, जहां डीएसपी गुरप्रीत सिंह को कैदियों को नशीले पदार्थ और मोबाइल फोन उपलब्ध कराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। यह घटना इस बात का सबूत है कि नशे के कारोबार में प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत हो सकती है। चंद्रपुर में भी ऐसी ही आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। स्थानीय सूत्रों का दावा है कि बड़े तस्करों के नेटवर्क में कुछ पुलिसकर्मी और स्थानीय नेता शामिल हो सकते हैं, जो इन्हें कानूनी कार्रवाई से बचाते हैं।

क्या हैं चुनौतियां ?

1. सबूतों की कमी : मकोका जैसे सख्त कानून के लिए ठोस सबूत और संगठित अपराध का स्पष्ट प्रमाण चाहिए, जो कई बार इकट्ठा नहीं हो पाता।  

2. राजनीतिक दबाव: प्रभावशाली तस्करों के राजनीतिक और आर्थिक रसूख के चलते कार्रवाई में बाधा आती है।  

3. प्रशासनिक ढिलाई: जांच और छापेमारी में लापरवाही या जानबूझकर देरी के कारण बड़े तस्कर बच निकलते हैं।  

4. स्थानीय समर्थन: कुछ स्थानीय लोग आर्थिक लाभ के लिए तस्करों का साथ देते हैं, जिससे नेटवर्क को तोड़ना मुश्किल होता है।  

मांग: सख्त कार्रवाई और पारदर्शिता 

स्थानीय निवासियों और कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि  बड़े तस्करों के खिलाफ मकोका लागू कर उनके नेटवर्क को पूरी तरह ध्वस्त किया जाए। इसके लिए स्वतंत्र जांच एजेंसी, जैसे सीबीआई या विशेष जांच दल (एसआईटी), को जिम्मेदारी सौंपने की जरूरत है। साथ ही, पुलिस और प्रशासन में संलिप्त लोगों की जांच और सजा सुनिश्चित की जाए।

जिलाधिकारी और पुलिस से अपील

जिलाधिकारी विनय गौड़ा और पुलिस अधीक्षक मुम्मका सुदर्शन से अपील की जा रही है कि वे इस मामले में त्वरित और कठोर कार्रवाई करें। नशे के इस सिंडिकेट को खत्म करने के लिए न केवल बड़े तस्करों पर नकेल कसी जाए, बल्कि उनके संरक्षकों को भी बेनकाब किया जाए।