विपक्ष के जाति जनगणना मुद्दे पर क्यों चल रही है बीजेपी?

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संपादकीय

जाति गणना के फैसले से पहले इसके विरोध में प्रधानमंत्री मोदी का बयान सभी को पता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी बयान सामने आ चुका है। लेकिन क्या बीजेपी एक भी ऐसा बयान राहुल गांधी का दिखा पाई है, जो जाति गणना के विरोध में दिया गया हो? दूसरी बात, अगर हम इस बहस को बहुत पीछे ले जाएंगे तो बहस उलझती चली जाएगी और हर पार्टी और उनके पूर्वज नेता कटघरे में खड़े दिखाई देंगे। यहां तक कि सामाजिक न्याय से जुड़े नेताओं को भी हमें तय करना होगा कि भारत के लोकतंत्र का भविष्य धर्म की राजनीति में है या सामाजिक न्याय की राजनीति में।

बीजेपी, पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू को इस बहस में ले आई है। मुंगेरी लाल कमीशन की रिपोर्ट के बाद कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में 26% आरक्षण लागू किया और बिहार में पिछड़ों को आरक्षण दिया। उस वक्त कर्पूरी को कितनी गंदी-गंदी गालियां दी गईं, यह सब बिहार की राजनीति की हर ईंट और दीवार में दर्ज है। बिहार में जनसंघ के साथ कर्पूरी की सरकार थी। जब पिछड़ों को पहली बार आरक्षण दिया गया, तो नाराज़ जनसंघ ने सरकार गिरा दी। जनसंघ से ही बीजेपी निकली है। तो ओबीसी आरक्षण के सवाल पर सरकार गिराने का पहला रिकॉर्ड किसका है? बीजेपी का है।

कर्पूरी ठाकुर के आरक्षण का बड़ा योगदान था, राजनीतिक रूप से मंडल कमीशन के आकार लेने में। उसके विरोध में वीपी सिंह की सरकार किसने गिराई? किसने मंडल के विरोध में रथयात्रा निकाली? और उसके सारथी आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बताए जाते हैं। तो कर्पूरी ठाकुर को गाली देने, ओबीसी आरक्षण के सवाल पर दो-दो बार सरकार गिराने का रिकॉर्ड किसका है? देश को धर्म की राजनीति के नाम पर सांप्रदायिकता की आग में झोंकने का रिकॉर्ड किसका है? आप जानते हैं।

क्या कांग्रेस ने ओबीसी आरक्षण के विरोध में कभी किसी की सरकार गिराई है? इसलिए बहस की टाइमलाइन हमें ठीक करनी होगी। नेहरू से लेकर पटेल की बात की जा सकती है, लेकिन जाति की गणना की बात पिछले पाँच साल की राजनीति की देन है। बेशक जाति गणना की राजनीति कई दशक पुरानी है। राम मनोहर लोहिया ने ही ‘पिछड़े पावें सौ में साठ’ का नारा दिया था। इस विचार के जनक तो वही हैं। लेकिन इस समय इस मुद्दे की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी के कारण मिली और बीजेपी के विरोध के कारण भी। जाति की बहस विशाल सागर की तरह है। इसलिए हमें इस बहस को इस समय के महत्वपूर्ण नेताओं के हिसाब से देखना चाहिए। देखना चाहिए कि जब राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव इस मुद्दे को उठा रहे थे, उसी समय बीजेपी के नेता क्या कह रहे थे?

जब से मोदी सरकार ने जाति गणना का फैसला लिया है, तब से सोशल मीडिया बीजेपी नेताओं के पुराने बयानों से भर गया है, जो अब इसका समर्थन कर रहे हैं और इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को महान बता रहे हैं। कांग्रेस ने बीजेपी नेताओं के बयानों का संग्रह करके एक्स (पूर्व ट्विटर) पर डालकर पूछना शुरू कर दिया है।

लेकिन क्या बीजेपी राहुल गांधी का एक भी ऐसा बयान सामने ला पाई है, जिसमें वह जाति गणना का विरोध कर रहे हैं? एक बयान हमें मिला है, ठीक एक साल पुराना, जिसमें वह कह रहे हैं कि कांग्रेस को भी जाति गणना के विचार पर चलना होगा और बदलना होगा। राहुल कहते हैं कि “अगर आपने मेनिफेस्टो को देखा है, वह 90% को सपोर्ट करने वाला मेनिफेस्टो है। मगर सच्चाई यह है कि कांग्रेस पार्टी को भी आने वाले समय में अपनी राजनीति को बदलना होगा। यह करना पड़ेगा। और यह भी मैं कहना चाहता हूं कि कांग्रेस पार्टी ने भी गलतियां की हैं। और मैं कांग्रेस पार्टी का होते हुए यह कह रहा हूं।”

कोई नेता है जो अपनी पार्टी से कह रहा है कि उसे बदलना पड़ेगा, पार्टी ने गलतियां की हैं। राहुल गांधी इस मुद्दे को लेकर केवल बीजेपी से नहीं लड़ रहे थे बल्कि अपनी पार्टी से भी लड़ने लगे। कांग्रेस के ही कितने नेता इस मुद्दे पर चुप हो गए, लेकिन राहुल गांधी ने बोलना नहीं छोड़ा।

बीजेपी कांग्रेस की गलती गिना रही है, लेकिन राहुल गांधी का ही बयान है कि कांग्रेस ने गलतियां की हैं। क्या बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक भी बयान पेश कर सकती है, फैसले के बाद भी, जिसमें वह कहें कि बीजेपी ने गलती की, हमने गलती की, योगी जी ने गलती की, तमाम मुख्यमंत्रियों ने गलती की, और यहां तक कि कैबिनेट में मेरे सहयोगी नितिन गडकरी ने भी इसका विरोध कर गलती की?

सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री मोदी के कई बयान चल रहे हैं, जिनमें वह जाति गणना का विरोध कर रहे हैं। विरोध ही नहीं, विरोध करने के लिए सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं। ठीक यही काम मंडल के विरोध में किया गया था। जब भी सामाजिक न्याय का प्रश्न आता है, बीजेपी सांप्रदायिक पहचान की बात करने लग जाती है।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तो जाति की बात करने वालों को लात मारने की बात करने लगे। उनका बयान उनके ही यूट्यूब चैनल पर मौजूद है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक इंटरव्यू वायरल हो रहा है। उसमें कह रहे हैं कि सरकार ने जाति देखे बिना सबका विकास किया है। बांटने वाले लोग जाति, क्षेत्र और भाषा के आधार पर बांटने की कोशिश कर रहे हैं। भारत और खासकर सनातन धर्मावलंबियों को इससे सावधान रहना होगा।

इसके अलावा मुख्यमंत्री मोहन यादव, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, सांसद अनुराग ठाकुर, धर्मेंद्र प्रधान, गिरिराज सिंह, तेजस्वी सूर्या के बयान सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं। इन सभी ने जाति गणना का विरोध कई तरह से किया है।

जिस समय बीजेपी के सभी प्रभावशाली नेता जाति गणना का मजाक उड़ा रहे हैं, खतरनाक बता रहे हैं, कांग्रेस पर देश तोड़ने का आरोप लगा रहे हैं, उसी समय उनके कुछ नेता जाति गणना कराने की बात भी कर रहे हैं। लेकिन मूल रूप से विरोध का ही स्वर मुखर रहा है।

सोशल मीडिया में एक बयान राहुल गांधी का चल रहा है, जो जाति गणना के पक्ष में है, और एक प्रधानमंत्री मोदी का, जो जाति गणना के विरोध में है। लेकिन कौन नहीं जानता कि बीजेपी की राजनीति में जाति गणना का विरोध वैचारिक और सैद्धांतिक रूप ले चुका था। इसके विरोध को हिंदुत्व की एकता के लिए जरूरी बताया जाने लगा। ‘बटेंगे तो कटेंगे, और एक हैं तो सेफ हैं’ का नारा दिया गया। इसमें मुसलमानों का एंगल लाया गया। जाति की बात को नकारकर सनातन की बात आखिर किसलिए की जा रही थी?

जाति गणना का फैसला लेने के बाद लोकसभा में दिया गया दिवंगत गोपीनाथ मुंडे का भाषण दिखाया जा रहा है कि बीजेपी के इस कद्दावर नेता ने जाति गणना की वकालत की थी। लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी इस विचार को अर्बन नक्सल कह रहे थे, मुख्यमंत्री योगी इसे सनातन की एकता का विरोधी बता रहे थे, तब उन्हें मुंडे के यह विचार क्यों नहीं याद आए?

इन नेताओं ने कितनी बार गोपीनाथ मुंडे के भाषण को याद किया? गोपीनाथ मुंडे के भाषण के रहते बीजेपी जाति गणना का मजाक क्यों उड़ाती रही? इसे खतरनाक क्यों बताती रही?

प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषण में कहते हैं कि हिंदुस्तान में कोई जात नहीं है, सिर्फ गरीब हैं। अगर हिंदुस्तान में कोई जाति नहीं है और सिर्फ गरीब हैं, तो वे आप अपने आप को 24 घंटे ओबीसी क्यों कहते हैं?