भारत का मन मोहकर दिशा दे गये डॉ. मनमोहन सिंह

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डॉ. मनमोहन सिंह को सादगी, बुद्धिमत्ता और भारत की आर्थिक कायापलट के शिल्पकार के रूप में आने वाली सदियां याद रखेगी। वे भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एक ऐसे व्यक्तित्व रहे हैं, जिन्होंने न केवल भारत को आर्थिक संकट से उबारा, बल्कि देश की नई आर्थिक नीति की नींव भी रखी। उनकी सादगी, गंभीरता और कुशल निर्णय क्षमता ने उन्हें एक ऐसा राजनेता और प्रशासक बनाया, जिसे न केवल भारत बल्कि विश्व भर में सम्मान के साथ देखा जाता है। उनके जीवन और योगदानों को भारत कभी भूल नहीं पाएगा। उनके बड़े निर्णयों और असंभव को संभव करने वाली नेतृत्व क्षमता पर केंद्रित है।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उनका जीवन उपलब्धियों से भरा रहा है। उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल दी। वे अब इस दुनिया में नहीं रहे। 26 दिसंबर की रात उन्होंने दिल्ली के एम्स अस्पताल में आखिरी सांस ली। डॉ. मनमोहन सिंह के निधन की खबर से पूरे देश में शोक की लहर है।

वर्ष 1991 का दौर भारत के लिए आर्थिक संकट का काल था। विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने के कगार पर था, और देश की अर्थव्यवस्था ठहर चुकी थी। इसी समय, प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री के रूप में चुना। उन्होंने साहसिक निर्णय लेते हुए आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू की।

वर्ष 1991 में भारत ने सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना किया था। 1990-91 में खाड़ी युद्ध के दौरान तेल की कीमतें बढ़ गई थीं और विदेशों में काम करने वाले भारतीयों में भी गिरावट आ गई थी, जिसकी वजह से भारत के पास फॉरेक्स की कमी हो गई थी। उस समय भारत के पास फॉरेक्स केवल 15 दिन का ही बचा था और देश की अर्थव्यवस्था डूबने की कगार पर आ गई थी। भारत को कई शर्तों पर IMF (International Monetary Fund) ने आर्थिक सहायता दी। लेकिन, परिणामस्वरूप देश को आर्थिक सुधारों में बदलाव करना पड़ा और लाइसेंस राज को खत्म करना पड़ा। इस समय डॉ. मनमोहन सिंह का बतौर वित्त मंत्री बड़ा रोल रहा। मनमोहन सिंह ने लाइसेंस राज को खत्म किया और विदेशी निवेश के दरवाजों को भी खोला। विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खुलने के बाद देश में कई बड़ी प्राइवेट कंपनियों ने निवेश किया और भारत की आर्थिक हालात में सुधार आया।

विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई सेक्टरों को खोला, जिससे भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में कदम रखने में सक्षम हुआ। उनके इस फैसले ने न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से उबारा, बल्कि देश में उद्यमिता और नवाचार को भी प्रोत्साहित किया।

1991 में, डॉ. सिंह ने भारतीय रुपये का अवमूल्यन किया। यह कदम भुगतान संतुलन की समस्या को हल करने के लिए उठाया गया था। इस निर्णय ने भारत के निर्यात को बढ़ावा दिया और विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर करने में मदद की। हालांकि, यह एक जोखिमभरा कदम था, लेकिन डॉ. सिंह की दूरदृष्टि ने इसे सफल बनाया।

प्रधानमंत्री बनने के बाद, डॉ. सिंह ने एक और साहसिक कदम उठाया। भारत-अमेरिका सिविल न्यूक्लियर डील। इस समझौते ने भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 2005 में जॉर्ज बुश के साथ इस समझौते को अंजाम तक पहुंचाना आसान नहीं था। इसके लिए डॉ. सिंह ने कड़े राजनीतिक विरोधों और आंतरिक चुनौतियों का सामना किया।

यह डील भारत को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी और फ्यूल के उपयोग की अनुमति देती है, जिससे देश के ऊर्जा संकट को हल करने में मदद मिली। यह समझौता भारत की विदेश नीति के क्षेत्र में भी एक मील का पत्थर साबित हुआ।

डॉ. सिंह की दूरदर्शिता केवल आर्थिक सुधारों तक सीमित नहीं थी। उन्होंने शिक्षा को हर बच्चे का अधिकार बनाया। 2009 में लागू हुए शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा को अनिवार्य और मुफ्त किया गया। यह कदम भारत के सामाजिक और मानव संसाधन विकास में क्रांतिकारी परिवर्तन लेकर आया।

2008 का वैश्विक वित्तीय संकट भारत के लिए एक और चुनौती बनकर आया। इस समय, डॉ. मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियां और स्थिर नेतृत्व देश को इस संकट से उबारने में सहायक साबित हुए। उन्होंने भारतीय बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली को स्थिर बनाए रखा और यह सुनिश्चित किया कि देश की आर्थिक वृद्धि पर इसका न्यूनतम प्रभाव पड़े।

डॉ. मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व उनकी सादगी और बुद्धिमत्ता का प्रतीक था। उन्होंने राजनीति को हमेशा जिम्मेदारी और सम्मान के साथ निभाया। 2002 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस और पीडीपी के बीच गठबंधन बनाने में उनकी भूमिका सराहनीय रही। इस संवेदनशील राज्य में स्थिरता और शांति स्थापित करना उनके कुशल वार्ताकार होने का प्रमाण है।

2009 के लोकसभा चुनाव के बाद, उन्होंने मायावती जैसी विपक्षी नेताओं को व्यक्तिगत संबंधों के माध्यम से अपने पक्ष में किया। उन्होंने गठबंधन सरकार को कुशलता से चलाया, जो भारतीय राजनीति में एक दुर्लभ उपलब्धि है।

डॉ. सिंह का कार्यकाल राजनीतिक दबावों और चुनौतियों से भरा था। उनके मंत्रिमंडल में कई बार विवादास्पद नियुक्तियां हुईं, लेकिन उन्होंने सटीक और नीतिगत निर्णयों से यह साबित किया कि वह न केवल एक अच्छे अर्थशास्त्री हैं, बल्कि कुशल प्रशासक भी हैं।

2008 में विश्वास मत के दौरान उन्होंने राजनीतिक दबावों का सामना करते हुए अपनी सरकार को बचाया। यह उनके नेतृत्व और राजनीतिक समझ का एक और उदाहरण है।

डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने जीवन और कार्यकाल से यह सिद्ध किया कि सादगी और ईमानदारी से बड़ी कोई ताकत नहीं होती। उन्होंने भारत को एक नई दिशा दी और एक मजबूत आर्थिक और सामाजिक बुनियाद तैयार की। उनके फैसले आज भी भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए प्रेरणा हैं। उनका व्यक्तित्व इस बात का प्रमाण है कि बिना शक्ति प्रदर्शन के भी महान नेतृत्व किया जा सकता है। उनके विचार, नीतियां और निर्णय भारत के विकास में सदैव मार्गदर्शक रहेंगे। डॉ. सिंह का जीवन हमें यह सिखाता है कि सही दृष्टिकोण और ईमानदार प्रयास से असंभव को भी संभव किया जा सकता है।

उनकी विरासत न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में सम्मान के साथ याद की जाएगी। डॉ. मनमोहन सिंह न केवल एक प्रधानमंत्री थे, बल्कि भारतीय राजनीति के एक महान अध्याय थे, जिसे आने वाली पीढ़ियां हमेशा गर्व से याद करेंगी।