- बगड खिड़की की ओर की दीवार तोड़ी, तालाब के पानी की निकासी निरंतर जारी…
- कुछ तो शर्म करो बेशर्मों! रामाला तालाब बचाओ!
चंद्रपुर : रामाला तालाब व परिसर में अतिक्रमण हो रहा है। लगातार हो रहा है। पाठकप्रिय साप्ताहिक हिंदी अखबार ‘चंद्रपुर की बुलंद आवाज’ द्वारा लगातार आवाज उठाने के बावजूद वहां अतिक्रमण हो रहा है। दिनदहाडे और सरेआम हो रहा है। अतिक्रमणकारियों के हौंसले बुलंद है इतने कि न तो उन्हें ‘बुलंद आवाज’ के अतिक्रमण विरोधी आवाज की फिक्र है और न कोई डर! न उन्हें कोई रोकनेवाला है और न कोई टोकनेवाला। वे अपने मस्ती में अतिक्रमण करते जा रहे हैं। रामाला तालाब व परिसर की जमीन पर अवैध कब्जे की साजिशें रचते जा रहे है। सब कुछ बेधडक चल रहरा है। समझ में नहीं आता कि जिला प्रशासन, मनपा प्रशासन, पुरातत्व विभाग क्या कर रहा है? कलेक्टर से लेकर मनपा आयुक्त व पुरातत्व विभाग के जिम्मेदार अधिकारी तक सारे अधिकारी क्या अंधे है? या फिर सरकारी वेतन लेकर कार्यालयों की कुर्सियां तोडना ही उन्होंने अपने जीवन और नौकरी का मकसद बना लिया है तथा इसे ही वें फर्जपूर्ति मानते हैं।
शायद ऐसा ही कुछ है, वर्ना ऐतिहासिक रामाला तालाब की बगड खिडकी की ओर की दीवार तोडकर वहां से तालाब का पानी निकालने की अतिक्रमणकारियों एवं समाजविरोधी तत्वों की आपराधिक कार्रवाई उनके ध्यान में नहीं आती? वे उसे नहीं रोकते? तालाब की दीवार तोडने व तालाब का पानी बाहर छोड़ने का गंभीर अपराध करने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई नहीं करते? इसका मतलब साफ है एक तो वे अंधे है, या फिर सो रहे हैं, या फिर अपने फर्ज के प्रति बेईमानी बरत रहे हैं। दुसरा ऐसा भी हो सकता है कि वे अतिक्रमणकारियों के हाथों बिक चुके हैं या फिर राजनीतिक दबाव के चलते असली फर्ज ही भूल गये हैं। सवाल है कि सच क्या है? सच्चाई क्या है? क्यों उन्हें रामाला तालाब की टूटी हुई दीवार नजर नहीं आती? क्यों नहीं उन्हें रामाला तालाब से लगातार चौबिसों घंटे दिन – रात हो रही पानी की निकासी नहीं दिखती? क्यों आखिर क्यों?
राष्ट्रपति जी की तो सुनो
हमारी नहीं सुनते हो तो मत सुनो। सा. ‘चंद्रपुर की बुलंद आवाज’ की आवाज को गंभीरता से नहीं लेते हो मत लो, मगर देश की राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदीजी मुर्मू की बात तो सूनो। उन्होंने जलस्रोतों के सूखने पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि जलस्रोतों के जतन और संवर्धन की जिम्मेदारी शासन, प्रशासन, और जनता सभी की है। जिला प्रशासन, नपा, मनपा और जल सुरक्षा के लिए काम करनेवाली समाज सेवी संगठनों की सक्रिय सहभागिता पर जोर देते हुए उन्होंने जलस्रतों की सुरक्षा को अहम बताया तथा उसे सामूहिक जिम्मेदारी निरुपित किया। सवाल है क्या उनकी भी नहीं सुनोगे? राष्ट्रीय जलनीति में प्राकृतिक जलस्रोतों के संरक्षण, संवर्धन और सुरक्षा के बारे में स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किये गये हैं। क्या उनका भी पालन नहीं करोगे? पालन नहीं करोगे ते चंद्रपुर जिला व शहर के सरकारी आला अफसरों तुम करोगे क्या? मुफ्त में वेतन उगाहोगे और खाली कुर्सियां तोडेंगे बस! कुछ तो शर्म करो बशर्मों! रामाला तालाब बचाओ!
पुनर्जीवन परियोजना का क्या?
ऐतिहासिक रामाला तालाब के पुनर्जीवन की ३० करोड़ रुपये लागत की परियोजना बनी। उसका प्रारूप और प्रस्ताव भी मंजूर हुआ है। पर प्रस्ताव में रामाला तालाब को अतिक्रमण से बचाने की कोई योजना नहीं है। रामाला तालाब के अतिक्रमण अवैध निर्माण और गैर कानूनी कब्जे से कौन और कैसे मुक्ति दिलायेगा इसका कोई स्पष्ट दिशा निर्देश जारी नहीं किये गये हैं, ऐसे में रामाला तालाब को अतिक्रमण से कैसे मुक्ति मिलेगी व कौन मुक्ति दिलायेगा यह सवाल बरकरार रह जाता है।
गंभीर खतरा
रामाला तालाब की बगड खिडकी क्षेत्र की ओर मोटी दीवार तोडना और वहां से तालाब का पानी बाहर निकालना यह एक सोची समझी साजिश के तहत हो रहा है, इस षडयंत्र का मास्टरमाइंड जो भी हो लेकिन उसमें अतिक्रमणकारी तत्त्व, कुछ बिल्डर और दादा किस्म के कुछ धंधेबाज नेता शामिल है। तालाब का पानी लगातार बहता रहने से तालाब की जमीन खाली हो जायेगी और वो सूखने के बाद आसानी से उस पर कब्जा किया जा सकेगा ऐसी यह साजिश है। और लगता है कि संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों की उपेक्षा एवं अनदेखी के चलते एक दिन उनकी यह साजिश सफल हो जायेगी। जिस तेजी से रामाला तालाब का पानी टूटी हुई दिवार से बाहर निकल रहा है उस देखते हुए लगता है कि वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं है। अगर एसा हुआ तो इस प्राकृतिक जलस्रोत का बगड खिडकी परिक्षेत्र की ओर का हिस्सा सूख जायेगा और फिर उस पर कब्जा जमाना समाजविरोधी तत्वों एवं अतिक्रमणकारियों के लिये आसान हो जायेगा। लेकिन रामाला तालाब जैसे जल स्रोतों का सूखना निश्चित ही गंभीर बात है। इससे शहर की भूजल लेवल में कमी आने का गंभीर खतरा है। अगर यह ऐसा ही जारी रहा तो भविष्य में चंद्रपुर शहर में गंभीर जलसमस्या निर्माण होने का खतरा है लेकिन लगता है कि जिला प्रशासन, मनपा प्रशासन पुरातत्व विभाग इस बारे में गंभीर नहीं है। अधिकारी, राजनेता और रामाला तालाब बचाओ वाले जिस दिन इस समस्या की ओर गंभीरता से देखेंगे वो दिन शहर की दृष्टि से सुदिन होगा।