चुनावी जंग में संघर्ष के बजाय हराने की रणनीति तेज
कांग्रेस और भाजपा के वोट प्रतिशत घटने के आसार
कांग्रेस और भाजपा में हुई बगावत से किसको मिलेगा लाभ और कौन उठाएगा नुकसान ?
चंद्रपुर
चुनावी ज्वर अब परवान चढ़ने लगा है। राजनीतिक दलों के बागी उभरकर सामने आ गये हैं। अनेकों ने अपने-अपने दलों की निष्ठा दांव पर लगा दी। राजनीतिक दलों के फैसलों को नामंजूर किया। अपनी दावेदारी पर राजनीतिक मुहर नहीं लगने के कारण न केवल नाराज हुए, बल्कि कड़े तेवर अपनाते हुए अपने दल से बगावत कर ली। सीधे नामांकन करने पहुंच गये। निर्दलीय के रूप में पर्चा भर दिया। अब अपने ही पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार को हराने के लिए ताल ठोंकर चुनावी मैदान में टक्कर देने के लिए आमादा है। अनेक प्रत्याशियों की बगावत और उग्र बागी तेवरों के कारण चंद्रपुर जिले के 6 विधानसभा सीटों पर राजनीतिक तथा वोटों का गणित बिगड़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है।
चंद्रपुर
वर्ष 2019 में निर्दलीय के रूप में किशोर जोरगेवार ने भारी बहुमत से चुनाव जीता था। वे स्थानीय उम्मीदवार होने के कारण उन्हें लोगों ने पसंद किया था। वहीं बाहरी उम्मीदवार का तमगा भाजपा के नाना श्यामकुले और कांग्रेस के महेश मेंढे पर लगाया गया था। चंद्रपुर की भाजपा और कांग्रेस के अनेक कार्यकर्ताओं ने खुलकर जोरगेवार के पक्ष में काम किया था। इस बार हालात कुछ अलग है। विधायक किशोर जोरगेवार बीते दो माह में राजनीतिक दल का टिकट पाने काफी जद्दोजहद में लगे रहे। उनका दावा था कि उनके पक्ष प्रवेश को लेकर स्थानीय नेताओं का काफी विरोध है। अंतत: पूर्व केंद्रीय गृहराज्य मंत्री हंसराज अहिर के सानिध्य में जोरगेवार ने भाजपा का दामन थाम लिया। लेकिन पूर्व से ही जोरगेवार पर खफा मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को भाजपा के वरिष्ठ नेतृत्व के फैसले को स्वीकार करना पड़ा। लेकिन अपनी उम्मीदवारी का आस लगाये बैठे भाजपा नेता ब्रिजभूषण पाझारे नाराज हो गये। पाझारे ने निर्दलीय के रूप में पर्चा भर दिया। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के राजू झोडे के नाम आगे चल रहा था। परंतु विरोधी दल नेता विजय वडेट्टीवार ने प्रवीण पडवेकर को कांग्रेस की टिकट देकर धानोरकर गुट को निराश कर दिया। ऐसे में राजू झोडे ने कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय पर्चा भर दिया। अब भाजपा के बागी पाझारे और कांग्रेस के बागी झोडे चंद्रपुर के प्रत्याशियों का वोटों का गणित बिगाड़ने की पूर्ण संभावना है।
बल्लारपुर
बल्लारपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में भले ही भाजपा से कोई बगावत नहीं हुई हो, लेकिन कांग्रेस से निकले बागी बड़े पैमाने पर वोटों को क्षति पहुंचा सकते हैं। वर्ष 2019 के चुनावी जीत के विजयी रथ पर मंत्री सुधीर मुनगंटीवार के साथ सवार दिखे संदीप गिरहे आज उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी के रूप में चुनावी मैदान में है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना वर्तमान में महागठबंधन का हिस्सा है। परंतु महागठबंधन के कोटे की बल्लारपुर की सीट कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार के समर्थक व करीबी कहे जाने वाले संतोषसिंह रावत को चली गई। इसके चलते संदीप गिरहे ने नाराज मन से निर्दलीय के रूप में अपना पर्चा भर दिया। वहीं कांग्रेस से टिकट मिलने की आस लगाए बैठी डॉ. अभिलाषा गावतूरे भी काफी खफा हुई। लेकिन बरसों से चल रही मेहनत को यूं ही बर्बाद न होने देने की नीति पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने भी अपना नामांकन पेश किया। ऐसे में महागठबंधन के गावतूरे और गिरहे की सक्रियता के चलते बल्लारपुर में बड़े पैमाने पर वोटों का नुकसान होगा। यह नुकसान कांग्रेस के साथ साथ भाजपा को भी हो सकता है। क्योंकि यहां जातीय समीकरण भी चलने के आसार है। यदि जातिगत राजनीति इस क्षेत्र पर हावी रही तो इसका खामियाजा यकीनन मंत्री मुनगंटीवार को भोगना पड़ सकता है। रावत अपने सहकार क्षेत्र के संबंधों के आधार पर मुनगंटीवार को टक्कर दे तो रहे है, किंतु गावतूरे और गिरहे की मौजूदगी से वोटों का गणित बिगड़ ही जाएगा।
राजुरा
जिले में राजुरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र बहुरंगी चुनावी संघर्ष के कारण चर्चा का केंद्र बना हुआ है। कांग्रेस विधायक सुभाष धोटे जो स्वयं कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पद पर भी आसिन है, इनके खिलाफ अनुभवी और पूर्व विधायक रह चुके 3 प्रत्याशियों की टक्कर चर्चा का विषय बन रही है। स्वतंत्र भारत पक्ष के वामनराव चटप के अलावा भाजपा के बागी नेता एड. संजय धोटे तथा सुदर्शन निमकर यहां निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा की ओर से यहां देवराव भोंगले को टिकट दिया गया है। उन पर मंत्री सुधीर मुनगंटीवार का आशीर्वाद है। इसके बावजूद पत्रकार परिषद लेकर एड. संजय धोटे एवं सुदर्शन निमकर ने विरोध जताया। अनेक भाजपा के पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं से मिलकर वरिष्ठों के पास अपनी नाराजगी व्यक्त की। परंतु मसला हल न होने से वे बागी हो गये। इधर, संभाजी ब्रिगेड के प्रत्याशी भूषण फुसे भी कमर कसकर मैदान में डटे हुए हैं। ग्रामीण इलाकों में इनकी पकड़ होने से वोटों का नुकसान कांग्रेस व भाजपा को हो सकता है। इस चुनावी संघर्ष के बीच मतदाता ऑनलाइन पंजीयन घोटाला भी चर्चा के केंद्र में है। क्योंकि 6853 फर्जी वोटरों का मामला उजागर होने के बाद जिलाधिकारी ने तमाम बोगस वोटरों का पंजीयन रद्द तो कराया, किंतु इसकी गहन जांच व कार्रवाई के आदेश पर पुलिस ने अब तक किसी भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया। ऐसे में इस अनदेखी का नुकसान प्रत्याशियों के वोट प्रतिशत पर हो सकता है। वामनराव चटप की झोली में नाराज वोटर समा सकते हैं।
ब्रम्हपुरी
कांग्रेस का गढ़ समझे जाने वाले ब्रम्हपुरी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में विरोधी दल नेता विजय वडेट्टीवार का वर्चस्व कायम नजर आता है। उनकी मजबूत स्थिति को देखते हुए यहां से किसी कांग्रेसी ने बगावत करने की पहल नहीं की। लेकिन बीते माह भाजपा नेता परिणय फूके एवं कांग्रेस सांसद प्रतिभा धानोरकर की मौजूदगी में आयोजित एक विशाल सम्मेलन के मंच से ओबीसी प्रत्याशी उतारने की अपील की गई थी। इस अपील को भाजपा नेता परिणय फूके ने भी सहमति जताई थी। यहां कुणबी समाज बंधु को टिकट देने के बयान के बाद तो कांग्रेस में भूचाल आ गया। भाजपा ने कुणबी कार्ड खेलने के मुद्दे को गंभीरता से ले लिया। भाजपा ने यहां कुणबी चेहरा कृष्णलाल सहारे को टिकट दिया, परंतु बरसों से भाजपा की सेवा करने वाले वरिष्ठ नेता प्रा. अतुल देशकर को टिकट न देकर नाराजगी ओढ़ ली। यहां बगावत के स्वर भले ही न उभरे हो, लेकिन प्रा. देशकर और उनकी टीम कितनी निष्ठा के साथ प्रत्याशी कृष्णलाल सहारे के लिए काम कर पाएगी, यह तय कर पाना मुश्किल है। ब्रम्हपुरी में चुनावी घमासान तो नहीं, लेकिन राजनीतिक चालें वोटों का समीकरण बदल सकते हैं।
चिमूर
बरसों से कांग्रेस का गढ़ रहे चिमूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र पर बीते 10 वर्षों से भाजपा का वर्चस्व बना हुआ है। इस बार इस वर्चस्व में सेंध लग पाएगी या नहीं, यह कहना मुश्किल है। यहां काटे की टक्कर जैसी स्थित है। भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला तो है ही, लेकिन ऐन समय पर जनता किस दिशा में मुड़ जाएगी, यह कहा नहीं जा सकता। भाजपा नेता बंटी भांगडिया यहां के विधायक हैं। उनके खिलाफ कांग्रेस ने फिर एक बार चुनावी मैदान में सतिश वारजुकर को उतारा है। लेकिन इन सब के बीच धनंजय मुंगले वोटों को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। उनकी दावेदारी के चलते यहां तिरंगी संघर्ष देखने को मिल सकता है। हालांकि अभी नाम वापसी नहीं हुई है। यदि वे चुनावी मैदान में डटे रहते हैं तो जनता के पास तीन सशक्त पर्याय उपलब्ध हो जाएंगे। ऐसे में यहां किसके वोट कटेंगे और कौन जीत पाएगा, यह कहना मुश्किल नजर आता है।
वरोरा
चंद्रपुर जिले में सबसे दिलचस्प चुनावी मुकाबला अगर कहीं देखा जा सकता है, तो वह वरोरा विधानसभा क्षेत्र है। यह क्षेत्र कई वर्षों तक कांग्रेस का गढ़ रहा है। इस किले को भेदने में पूर्व सांसद स्वर्गीय बालू धानोरकर सफल रहे थे। हालांकि, उनके कांग्रेस में शामिल होते ही यह गढ़ फिर से कांग्रेस का बन गया। वर्तमान स्थिति में यहां महायुति में कई गुट बन गए हैं और बगावत के सुर उठने लगे हैं। कांग्रेस सांसद प्रतिभा धानोरकर ने अपने छोटे भाई प्रवीण काकड़े को टिकट दिलाने में सफल रही। कांग्रेस से किसी ने बगावत करने की हिम्मत नहीं की, लेकिन स्वर्गीय बालू धानोरकर के बड़े भाई अनिल धानोरकर ने अपनी भाभी के खिलाफ जाकर वंचित बहुजन आघाड़ी से नामांकन दाखिल किया है। महायुति में सबसे ज्यादा बगावत देखने को मिल रही है। भाजपा ने पूर्व मंत्री संजय देवतले के बेटे करण देवतले को टिकट दिया है। इससे नाराज वरिष्ठ नेता रमेश राजुरकर ने बगावत कर निर्दलीय नामांकन दाखिल किया है। इसके अलावा भाजपा नेता और पूर्व नगराध्यक्ष ऐहतेशाम अली ने भी अपना नामांकन दाखिल कर चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय लिया है। महागठबंधन की सहयोगी पार्टी शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के उम्मीदवार रविंद्र शिंदे और मुकेश जीवतोडे को पार्टी ने बी फॉर्म दिए थे। हालांकि, यह सीट प्रवीण काकड़े के लिए घोषित होने के बाद शिवसेना ने उनसे बी फॉर्म वापस मांग लिए। रविंद्र शिंदे ने इसे स्वीकार कर लिया और पार्टी के हित में वे काकड़े के समर्थन में खड़े हो गए। लेकिन, मुकेश जीवतोडे अब भी निर्दलीय चुनाव लड़ने की जिद पर अड़े हुए हैं। रमेश राजुरकर, अनिल धानोरकर, ऐहतेशाम अली और मुकेश जीवतोडे के तेवरों के चलते यहां भी वोटों का गणित बिगड़ सकता है।