Maharashtra should not be defamed by mob lynching
आज से करीब 100 साल पहले जब दक्षिणी अमेरिका में अश्वेत लोगों की लिंचिंग हो रही थी तो अधिकतर गोरे अमेरिकी इस लिंचिंग पक्ष में हुआ करते थे। बहुत सारे गोरे इसके विरोध में भी खड़े हुए थे। लिंचिंग का विरोध करने वाले गोरों को भी मार दिया जाता था। उसी दौरान वर्ष 1901 में लेखक मार्क ट्वेन ने लिंचिंग के खिलाफ एक लेख लिखा था- the united states of lyncherdom. वे इसे एक किताब में शामिल करना चाहते थे। लेकिन बाद में उन्होंने अपने प्रकाशक से कहा कि इस लेख को किताब से हटा दें। वरना वे दक्षिणी अमेरिका के अपने आधे दोस्तों को खो देंगे। मार्क ट्वेन ने डर के मारे वह लेख नहीं छपवाया था। बहुमत लिंचिंग के साथ खड़ा था। वह लेख मार्क ट्वेन की मौत के 12 साल बाद उनके एक दोस्त ने छपवाया। आज अमेरिका अपने उस शर्मनाक इतिहास पर शर्मिंदा है। और मार्क ट्वेन का वह लेख अमेरिकी इतिहास पर लगे उस बदनुमा दाग का ऐतिहासिक दस्तावेज बन गया है।
बहुमत कभी न्याय के साथ रहता है तो, कभी अन्याय के साथ खड़ा रहता है। लेकिन समय जब अपनी कहानी लिखेगा तो मानवता स्थापित होगी और अमानवीयता हार हो जाएगी। अन्याय के दौर में अगर आपने न्याय के पक्ष में दो शब्द कहे थे, तो इतिहास के राख रूपी ढेर से वह फीनिक्स पक्षी की तरह बाहर निकल आएगा और फिर से उठ खड़ा होगा। इसलिए कोई भी इंसान अपनी लोकप्रियता और यश की चिंता न करें। आज लोकप्रियता का पैमाना नफरत है। जो व्यक्ति नफरत का कारोबार कर रहा है वह ज्यादा मशहूर हो रहा है। उसके ज्यादा फॉलोवर बन रहे हैं। लेकिन मूर्खताओं के ऐसे दौर स्थायी नहीं होते।
हजारों की भीड़ में आप अकेले पड़ रहे हैं तो भी सच बोलते चलिये। भीड़ की फिक्र न करके तार्किक ढंग से हमेशा सच के साथ बने रहे। महात्मा गांधी इसीलिए ही हमेशा कहते थे कि सत्य ही ईश्वर है। झूठ का बुलबुला फूटता है तो सत्य अपने आप सामने आ जाता है।
हाल ही में हरियाणा में भीड़ ने कबाड़ का काम करने वाले साबिर की पीट-पीट कर हत्या कर दी। भीड़ को शक था कि साबिर ने गौमांस पकाया है। क्या यही हमारा न्यू इंडिया है ? क्या हमने बीते 10 सालों में बहुत मेहनत करके इसी न्यू इंडिया को अर्जित किया है ? लोकतंत्र को भीड़तंत्र में तब्दिल कर देने का षड़यंत्र हमें कौनसी मंजिल तक लेकर चला जाएगा ? इस भीड़तंत्र में भीड़ के पास किसी को भी पीट-पीट कर मार डालने का लाइसेंस दिया गया है क्या ?
हमने अपना नाम न्यू इंडिया रख लिया है और हमारी प्रवृत्तियां मध्ययुगीन से ज्यादा बर्बर दिखाई पड़ रही है। क्या हम मौजूदा दौर में बाबर से मुकाबला करने निकले हैं ? देश के नेतागण रोज बाबर को गाली देते हैं। बाबर और औरंगजेब से मानो इनकी प्रतियोगिताएं चल रही है। क्या हमारे न्यू इंडिया को मध्ययुगीन काल में धकेल देने की कोई साजिशें चल रही है ? क्या अब वर्तमान के न्यू इंडिया में भीड़ को न्याय करने का अधिकार सौंप दिया जाएगा ? क्या हम देश की अदालतों में ताला लगाने की तैयारियां कर रहे हैं ? पुलिस थानों के लिए हम कौनसा काम सौंपने जा रहे है ? भीड़ को खुली छूट दे देना, क्या हमारे लोकतंत्र के जिंदा होने का परिचायक होगा ? आपको जिस पर शक हो उसे मार दो वाली नीति हमारे बच्चों को दंगाई बना रही है और हमको इसका रत्ती भर भी अफसोस नहीं हो रहा है, ऐसा क्यों ? हमारी पाश्विकता ही हमारा गौरव कैसे बन सकती है ? हमारी अमानुषता का दर्शन देखकर विश्व के सभी देश हमारे प्रति क्या नजरिया अपना रहे होंगे, क्या हमको इसका थोड़ा भी चिंतन नहीं करना चाहिये ? हम अपनी मनुष्यता, अपनी इंसानियत को गंवाकर, बर्बरता को अपने से, घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देने से, क्या वाकई में विश्वगुरु बन पाएंगे ?
इस देश में दंगाईयों को, लिंचिंग करने वाले भीड़ को माला पहनाने जैसी स्थिति पैदा करना न केवल देश को खतरे में ला सकते है, बल्कि हम अपने बच्चों के भविष्य से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। दुनिया के सबसे युवा देश के युवाओं को यदि नफरत की अंधी गली में धकेल दिया जाएगा तो हम आने वाली पीढ़ी के सवालों का जवाब किस मुंह से देंगे ? क्या अब किसी मनुष्य को सिर्फ इसलिए मार दिया जाएगा कि वह किसी दूसरे धर्म को मानने वाला है ? इस नफरत की सनक हमकों कहां तक लेकर जाएगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। इसकी कीमत हमें कितने दशकों तक चुकानी पड़ेगी, यह तय कर पाना आसान नहीं है। यह सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि कोई सत्ता लोभी लोगों को बांटकर कुछ साल और सत्ता में बने रहना चाहता है ? बदले में यह मुल्क बर्बाद कर देगा और एक दिन चला जायेगा। उसे तो सत्ता का सुख मिल रहा है लेकिन आपके बच्चे नरपिशाच बन रहे हैं, उसका क्या ? खून के प्यासे लोग देश में अमन और शांति कैसे कायम कर पाएंगे ? बीते सप्ताह ने लिंचिंग की वारदात महाराष्ट्र के इगतपुरी के पास धुले एक्सप्रेस में घटी। गोमांस रखने के शक में ट्रेन में एक बुजुर्ग को पीटा गया। वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। गालियां और थप्पड़ की गूंज से महाराष्ट्र कलंकित हो गया। पीड़ित 72 वर्षीय अशरफ अली सय्यद हुसैन के उम्र तक का लिहाज नहीं रहा। वे जलगांव से कल्याण के लिए अपनी बेटी से मिलने जा रहे थे। इस प्रकरण के उजागर होने पर पुलिस को 5 युवा आरोपियों पर अपराध दर्ज करना पड़ा।
महाराष्ट्र में आपके बच्चों को दंगाई बनाकर उधर, पिछले 9 सालों में अरबपतियों के 14 लाख 56 हजार 226 करोड़ रुपये माफ कर दिए जाते हैं। इसे ही अंग्रेजी में राइट ऑफ कहते हैं। कर्ज माफ कर दिया, यह कहने पर अरबपतियों को बुरा लग सकता है। उनके लोग भड़क सकते हैं। इसलिए आप राइट ऑफ कहा कीजिये। राइट ऑफ कहने पर इसमें घोटाला, भ्रष्टाचार और लूट की बू नहीं आती। आपको यह तो पता ही होगा कि राइट ऑफ किया गया पैसा वापस नहीं आता। यह माफी ही है लेकिन आपको राइट ऑफ कहना है। नेता और अरबपति मिलकर देश को लूटते हैं तो अंग्रेजी में उसे राइट ऑफ कहते हैं।