हार के बाद बढ़ गई मुनगंटीवार की चुनौतियां

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सीमेंट-कांक्रीट, बाग-बागीचों का जहां किया विकास, वहीं से मिले थे कम वोट
भाजपा को अपनी राजनीतिक रणनीति को बदलने की आवश्यकता
विधानसभा चुनावी हलचल – बल्लारपुर

बीते लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र भाजपा के दिग्गज नेता समझे जाने वाले वन मंत्री एवं चंद्रपुर जिले के पालकमंत्री के तौर पर सत्ता की कुर्सी पर विराजमान सुधीर मुनगंटीवार को 2 लाख 60 हजार 406 वोटों के अंतर से करारी हार का सामना करना पड़ा। आश्चर्य की बात है कि जहां-जहां मंत्री मुनगंटीवार ने करोड़ों का सरकारी धन पानी की तरह विकास कार्यों के नामों पर बहा दिया, वहां भी उन्हें वोट कम मिले। जनता ने सीमेंट-कांक्रीट और बाग-बगीचों के उनके विकास के विजन को सीरे से नकार दिया। इस हार से भाजपा का मनोबल टूट गया। कार्यकर्ताओं के दरकते विश्वास को दोबारा से जीतने के लिए मंत्री मुनगंटीवार एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। निराश समर्थकों में जोश फूंकने के लिए वे सक्रिय हो गये। लेकिन कांग्रेस भी आक्रामक है। आगामी विधानसभा चुनावों में बल्लारपुर विधानसभा से मंत्री मुनगंटीवार को पटखनी देने के लिए अनेक योद्धा कमान संभाले बैठे हैं। इस बीच जनता का मुड़ जानना किसी के लिए आसान नहीं होगा। बल्लारपुर की विधानसभा सीट पर काटे की टक्कर होगी, यह बात तो तय है। मंत्री मुनगंटीवार के लिए यहां इस बार काफी चुनौतियां है। विकास की प्रतिमा दरकने लगी है। इसे मजबूती से कायम रख पाएंगे या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा।

लाड़ली बहनों की सुरक्षा से उबल रही जनता
जहां एक ओर सरकार ने लाड़ली बहन योजना लाकर जनता का दिल जीतने का काम किया, वहीं बदलापुर और उस जैसी घिनौनी वारदातों ने महाराष्ट्र सरकार को भी संकट में ला दिया। इसकी आंच चंद्रपुर जिले में भी पहुंच गई। अनगिनत आंदोलनों के बीच ही जिले में भी अनेक वारदातों ने महिला सुरक्षा की पोल खोल दी। इसका दूरगामी परिणाम विधानसभा चुनावों पर भी हो सकता है। महिला सुरक्षा के मुद्दे पर सत्ताधारियों को घेरने की रणनीति में भाजपा के वोट खराब हो सकते हैं।

फूंक-फूंककर कदम रख रही भाजपा

बीते लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा नेताओं और खासकर मंत्री सुधीर मुनगंटीवार के एक विवादित बयान से लोगों में घुस्सा फूट पड़ा था। इसका खामियाजा वोटों पर भी पड़ा। लेकिन अब भाजपा नेता फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं। जहां एक ओर नई-नई योजनाएं लाँच कर भाजपा सरकार की ओर से जनता को लूभाने का प्रयास किया जा रहा है, वहीं कांग्रेस भी अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रही है। जिले में सबसे अधिक बल्लारपुर विधानसभा के आगामी चुनावों पर सभी की नजरें टिकी हैं।

मुनगंटीवार को घेरने कौन-कौन तैयार ?

जनता का रुझान भले ही बीते लोकसभा चुनावों में मंत्री मुनगंटीवार के विरोध में था, भले ही वे ढ़ाई लाख से अधिक वोटों से हारे हो, लेकिन अब उनकी रणनीतियां बदल चुकी है। लोकसभा के रुझानों का दुष्परिणाम विधानसभा के चुनावों पर न होने पाएं, इसलिए मुनगंटीवार अब अनेक मुद्दों पर ज्यादा सजग दिखाई पड़ रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के अलावा अन्य दल भी उन्हें घेरने के लिए तैयार बैठे हैं। उनके खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस में उम्मीदवारों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। कांग्रेस नेता विश्वास झाडे, राजू झोडे, घनश्याम मुलचंदानी, डॉ. अभिलाषा गावतूरे, संतोष रावत, संजय घाटे, नंदू नागरकर, रोशनलाल बिट्‌टू के अलावा अनेक इच्छुक उम्मीदवारों की तैयारियां मंत्री मुनगंटीवार को इस बार पराजित करने की है। शिवसेना से संदीप गिर्हे भी तैयारियां कर रहे हैं। और भी नये चेहरे उभरकर सामने आ सकते हैं। इसलिए मंत्री मुनगंटीवार की चुनौतियां बढ़ने का आभास है।

राजनीतिक अंत का इतिहास

बल्लारपुर, वर्ष 2009 में निर्वाचन क्षेत्र पुनर्गठन के बाद अस्तित्व में आया एक नया निर्वाचन क्षेत्र है। इस क्षेत्र के गठन के कारण चंद्रपुर जिले में शोभाताई फडणवीस का नेतृत्व खत्म हो गया और सुधीर मुनगंटीवार का नेतृत्व उभर कर सामने आया। 2009 में, शोभाताई फडणवीस के सावली निर्वाचन क्षेत्र को विभाजित कर इसे ब्रह्मपुरी और नवगठित बल्लारपुर निर्वाचन क्षेत्र में विलय कर दिया गया। उसी समय, चंद्रपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र को आरक्षित कर दिया गया और चंद्रपुर निर्वाचन क्षेत्र का कुछ हिस्सा बल्लारपुर में जोड़ दिया गया, जिसके कारण सुधीर मुनगंटीवार ने बल्लारपुर पर दावा किया। शोभाताई फडणवीस के सावली निर्वाचन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा भी नए बल्लारपुर निर्वाचन क्षेत्र में आ गया, उन्होंने भी बल्लारपुर पर दावा किया। हालांकि, नितिन गडकरी ने सुधीर मुनगंटीवार के पक्ष में फैसला किया और उन्हें उम्मीदवार बनाया गया।

जातिगत समीकरण पर OBC भारी

जातीय समीकरण के दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस निर्वाचन क्षेत्र में किसी एक जाति का प्रभुत्व नहीं है। इस क्षेत्र में तेली, माली, कुर्मी, आदिवासी, दलित और हिंदी भाषी लोग लगभग समान संख्या में हैं, यानी 35 से 40 हजार के करीब। इसलिए, किसी विशेष जाति का कार्ड खेलकर यहां कोई भी उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर सकता। जातीय कार्ड प्रभावी नहीं होने के कारण इस बार सुधीर मुनगंटीवार के विरोधी बल्लारपुर सीट पर जीत हासिल करने के लिए OBC कार्ड खेलने की प्रबल संभावना है।

कांग्रेसवासी बने झोडे व गावतुरे की रणनीति
वर्ष 2019 के बहुजन-वंचित आघाड़ी के उम्मीदवार राजू झोडे ने दलित और मुस्लिम समाज में अपना बड़ा जनाधार बना लिया था, लेकिन वे बीते लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी में प्रवेश कर गये। इस बार राजू झोड़े 2 नावों में पैर रखकर नैया पार करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके चलते उनका फोकस बल्लारपुर के अलावा चंद्रपुर पर भी आ गया है। झोड़े काफी समय से आक्रामक दिखाई नहीं पड़ रहे। वहीं डॉ. अभिलाषा गवतुरे ने भी भले ही कांग्रेस में पक्ष प्रवेश किया हो, लेकिन उन्होंने अपने सामाजिक और धार्मिक संगठनों के माध्यम से बल्लारपुर विधानसभा के अनेक दुर्गम गांवों में जाकर अपनी पैठ बनाती हुई दिखाई पड़ रही है।

पुगलिया और मुनगंटीवार साथ-साथ !

बीते अनेक दिनों से कांग्रेस के पूर्व सांसद नरेशबाबू पुगलिया और भाजपा मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को साथ-साथ चंद कार्यक्रमों देखा गया है। उनके करीब आने की चर्चाओं से राजनीतिक खेमों में चर्चाएं गर्म है। बल्लारपुर पेपर मिल की समस्याओं पर भी वे साथ-साथ दिखे। मंत्री मुनगंटीवार ने भले ही बल्लारपुर इस क्षेत्र में सैनिक स्कूल और बॉटनिकल गार्डन जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाएं पूरी की हो, लेकिन लेकिन बल्लारपुर पेपर मिल की हालत, रोजगार महोत्सव से 5 हजार युवाओं को रोजगार दिलाने का असफल दावा, डायमंड कटिंग प्रशिक्षण से नौकरियां न मिल पाना, टूथ-पीक प्रकल्प का बंद हो जाना, ईको पार्क व क्रीड़ा संकुलों की बदहाली के साथ-साथ अन्य उद्योगों की स्थिति चिंता का विषय बनी हुई है। पेपरमिल की समस्या के लिए खुद पुगलिया का मंत्री मुनगंटीवार के साथ दिखाई पड़ना, यहां के उद्योगों की दयनीय अवस्था को दर्शाता है। लोकसभा चुनावों के पूर्व आयोजित उद्योग सम्मेलन में करोड़ों के MOU समझौतों के बाद नये उद्योग कितने लगे या इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया गया या नहीं, यह बताना काफी मुश्किल है।

राजनीतिक कुशलता में मुनगंटीवार आगे
विकास के मामले में क्या हुआ और क्या नहीं हुआ, इस पर चर्चा अंतहीन हो सकती है, लेकिन एक मामले में सुधीर मुनगंटीवार को 100 में से 100 अंक देने पड़ेंगे और वह है उनका राजनीतिक कौशल। अपने निर्वाचन क्षेत्र में अनुकूल परिस्थितियां न होते हुए भी उन्होंने अपने खिलाफ एक भी सक्षम विकल्प खड़ा नहीं होने दिया। लेकिन अब उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की लिस्ट और उनकी बढ़ती हिम्मत को देखते हुए लगता है कि मंत्री मुनगंटीवार को अपनी रणनीतियों का चिंतन करना पड़ेगा।

बंजर पड़े MIDC पर देना होगा ध्यान

वर्ष 2019 में सामाजिक कार्यकर्ता पारोमिता गोस्वामी का समर्थन मंत्री मुनगंटीवार को मिला था। श्रमिक एल्गार संगठन का सहयोग एक बड़ी ताकत साबित हुई थी। सैनिक स्कूल, बॉटनिकल गार्डन, और अन्य परियोजनाएं, बल्लारपुर विधानसभा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर इमारतों, सड़कों, नाट्यगृहों, खेल के मैदानों और उद्यानों का निर्माण, अगरबत्ती निर्माण, बांस कला और मधुमक्खी पालन जैसे प्रयासों ने रोजगार देने का प्रयास किया। वे कितने सफल हुए इसका आकलन जनता कर रही है। लेकिन फिलहाल बल्लारपुर पेपर मिल जैसे बड़े उद्योग की हालत खराब है। मूल MIDC में नए उद्योग नहीं आए हैं और पोंभुर्णा MIDC की केवल घोषणा ही की गई है। सिंचाई के क्षेत्र में भी किए गए कार्य को बहुत संतोषजनक नहीं कहा जा सकता।

  • विधानसभा 2014 के परिणाम
    सुधीर मुनगंटीवार (भाजपा) – 103251 – जीत का अंतर – 43334
    घनश्याम मुलचंदानी (कांग्रेस) – 59927
    मनोज आत्राम (गोंडवाना गणतंत्र पार्टी) – 10299
  • विधानसभा 2019 के परिणाम
    सुधीर मुनगंटीवार (भाजपा) 86002
    डॉ. विश्वास झाड़े (कांग्रेस) 52762
    राजू झोड़े (बहुजन-वंचित आघाड़ी) 39,958
  • लोकसभा 2019 के परिणाम
    बालू धानोरकर (कांग्रेस) – 96541 – जीत का अंतर – 31061
    हंसराज अहिर (भाजपा) – 65480
    राजेंद्र महाडोले (वंचित बहुजन) – 33759
  • लोकसभा 2024 के परिणाम
    प्रतिभा धानोरकर (कांग्रेस) – 7,18,410 -जीत का अंतर 2 लाख 60 हजार 406
    सुधीर मुनगंटीवार (भाजपा) – 4,58,004