महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला: 3 महीने, 767 जिंदगियां खत्म, और सरकार की चुप्पी…

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◼️महाराष्ट्र: 3 महीने में 767 किसानों की आत्महत्या, सरकार खामोश…

महाराष्ट्र, 3 जुलाई 2025: महाराष्ट्र के खेतों से एक बार फिर दिल दहलाने वाली खबरें सामने आ रही हैं। पिछले तीन महीनों में 767 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। यह सिर्फ एक ठंडा आंकड़ा नहीं, बल्कि 767 उजड़े हुए परिवारों की कहानी है—वे परिवार जो अब कभी पहले जैसे नहीं रह पाएंगे। कर्ज के बोझ, महंगी खेती, और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी न मिलने की वजह से किसान हर दिन टूट रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार की नींद टूटेगी?

किसानों का दर्द: खेती बनी कर्ज का फंदा  

महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों से लेकर विदर्भ और मराठवाड़ा तक, किसान कर्ज के दलदल में फंसते जा रहे हैं। बीज, खाद, और डीजल की बढ़ती कीमतों ने खेती को घाटे का सौदा बना दिया है। MSP की मांग को सरकार लगातार नजरअंदाज कर रही है। एक किसान ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हम मेहनत करते हैं, फसल उगाते हैं, लेकिन बाजार में हमें लागत भी नहीं मिलती। कर्ज लेते हैं, और फिर उसे चुकाने के लिए और कर्ज। ये जिंदगी नहीं, सजा है।”

कर्जमाफी का दोहरा मापदंड?  

जब किसान कर्जमाफी की मांग करते हैं, तो उनकी आवाज अनसुनी रहती है। लेकिन दूसरी तरफ, बड़े कॉरपोरेट्स के लिए सरकार का दिल खुला है। ताजा मामला अनिल अंबानी की कंपनी से जुड़ा है, जिसके ₹48,000 करोड़ के SBI लोन को “फ्रॉड” घोषित किया गया। सवाल उठता है—क्या सरकार की प्राथमिकता सिर्फ बड़े उद्योगपतियों के लिए है? क्या अन्नदाता की तकलीफें इतनी छोटी हैं कि उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है?

वादों का जाल, टूटते सपने 

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। लेकिन 2025 आ चुका है, और किसानों की हालत बद से बदतर हो रही है। विदर्भ के एक किसान संगठन के नेता रामराव पाटिल ने कहा, “मोदी जी के वादे सिर्फ हवा में उड़ रहे हैं। हमारी जिंदगी आधी हो रही है, और सरकार अपनी पीठ थपथपाने में व्यस्त है।”

क्या है समाधान?  

किसान संगठनों ने मांग की है कि सरकार MSP को कानूनी गारंटी दे, कर्जमाफी को तत्काल लागू करे, और खेती के खर्चों को कम करने के लिए ठोस कदम उठाए। लेकिन सरकार की चुप्पी और नीतियों का अभाव किसानों को और निराश कर रहा है।

आगे क्या?  

महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्याओं का यह सिलसिला कोई नई बात नहीं है, लेकिन हर बार यह सवाल और गहरा होता है—आखिर कब तक? 767 परिवारों का दर्द, टूटे हुए सपने, और खेतों में बिखरा हुआ खून क्या सरकार को झकझोर पाएगा? या फिर यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा, और अन्नदाता की चीखें अनसुनी रहेंगी?