■ जातिगत जनगणना = अर्बन नक्सल सोच के बयान पर तब भी खामोश रहे सरकार समर्थक आंदोलनजीवी
देश में अजीब हालात चल रहे हैं। जो राष्ट्रीय दल और उनके समर्थक कल तक OBC की जातिगत जनगणना का विरोध करते रहे, वे ही आजकल खुद को OBC के रहनुमा होने का दिखावा करने के लिए अपनी छवि बनाने इवेंटजीवी हो गये हैं। एक सम्माननीय महोदय तो एक दल से दूसरे दल में छलांग इसलिए लगाते रहे ताकि उनके शैक्षणिक संस्थानों में चल रही करोड़ों की गड़बड़ी और सरकार को प्राप्त हुई शिकायतों पर कोई ठोस कार्रवाई न हो सकें। असंख्य शैक्षणिक गड़बड़ियों, धांधलियों, भ्रष्टाचार का लांछन झेलने के बावजूद इन्होंने अपने-आप को अर्थात स्वघोषित शिक्षण महर्षि ही समझ लिया। जनता ने जब नहीं माना तो इन्होंने OBC के हक की लड़ाई का आंदोलनजीवी खेल शुरू किया। लेकिन मजबूरन सत्ता पक्ष का दामन थामना पड़ा, क्योंकि शैक्षणिक जांच से बचना था। ऐसे में जब वर्तमान सरकार के प्रधानमंत्री की ओर से 28 अप्रैल 2024 को जातिगत जनगणना की मांग करने वालों को “अर्बन नक्सल” करार दिया था। तब यह सज्जन खामोश बैठ गये।
विदर्भवादी OBC रहनुमा की चुप्पी
ज्ञात हो कि इसी सरकार ने 20 जुलाई 2021 को जब संसद में कहा था कि “सरकार ने नीतिगत निर्णय लिया है कि जनगणना में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा अन्य किसी जाति की गणना नहीं की जाएगी।” तब भी OBC के लोकल (विदर्भवादी) रहनुमा चुप्पी साधे बैठे रहें।
OBC रहनुमा के जुबान पर ताला
और तो और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में 21 सितंबर 2021 को दाखिल हलफनामे में सरकार ने साफ तौर पर कहा था – “जनगणना 2021 के दायरे से किसी भी अन्य जाति की जानकारी को बाहर रखना केंद्र सरकार का एक सचेत नीतिगत निर्णय है।” दरअसल, सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से ओबीसी के लिए जाति जनगणना का आदेश न देने का स्पष्ट आग्रह किया था।
सरकार के उपरोक्त हलफनामे के समय भी OBC के लोकल (विदर्भवादी) रहनुमा ने अपनी जुबान को सिल लिया।
अवसरवादी, मौकापरस्त पर OBC समाज गंभीर नहीं
अब सवाल यह उठता है कि ऐसे OBC के रहनुमा बहुजन समाज को क्या मार्गदर्शन करेंगे ? अवसरवादी, मौकापरस्त इस सज्जन की बात को क्या OBC समाज गंभीरता से लेगा ? स्वयं OBC के आंदोलनों के टूकड़े करने का आरोप झेल रहे इनके आयोजनों में भले ही भीड़ इकठ्ठा हो जाएं, लेकिन दिल से चाहने वाले शागिर्द और कार्यकर्ताओं की इन्हें हमेशा कमी खलती रहेगी।
सरकार को 100 करोड़ का चूना
समय-समय पर अपना रूख बदलने वाले इस महोदय पर इनकी संस्था पर सरकार को 100 करोड़ का चूना लगाने का आरोप है। 20 सालों से जारी सरकारी लूट पर अनेक बार मीडिया में खबरें (मैनेज करने के बावजूद) प्रकाशित होती रही है। अभी हाल ही में औरंगाबाद से प्रकाशित (मुख्यालय) होने वाले एक मराठी अखबार ने पीन मारने वाली खबर प्रकाशित की थी। इनकी संस्था के अनेक सदस्यों के कारनामें भी बेहद दिलचस्प हैं।
महाराष्ट्र के 3 बड़े नेताओं ने भी उठाया था विधानसभा में मामला
शिकायतों, सबूतों, दस्तावेजों का पिटारा लेकर कुछ बुजुर्गों ने पत्रकार परिषद ली। लेकिन खबरें दबा दी गई। इसके पूर्व महाराष्ट्र के 3 बड़े नेताओं ने विधानसभा में भी मामला उठाया, परंतु सत्ता और पॉवर के आगे विपक्षी दलों के विधायकों की मांग दब ही जाती है।
छवि को तराशने के लिए जमीन-आसमान एक
ऐसे में विरोध के हर स्वर को दबाने में कामयाब स्वघोषित शिक्षण महर्षि के हौसले बुलंद होते चले गये। और अब वे OBC के लोकल (विदर्भवादी) रहनुमा बनने के लिए अपनी छवि को तराशने के लिए जमीन-आसमान एक करने लगे हैं।