सीजफायर पर क्यों आई इंदिरा गांधी की याद ?

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संपादकीय

पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान में भारतीय सेना की कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और फिर पाकिस्तान की गोलाबारी से दोनों देशों के बीच संघर्ष बढ़ता ही जा रहा था. तभी 10 मई की शाम क़रीब पांच बजे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा, “अमेरिका की मध्यस्थता में हुई एक लंबी बातचीत के बाद, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारत और पाकिस्तान ने पूर्ण और तत्काल सीजफ़ायर पर सहमति जताई है.” ट्रंप के ऐसा लिखने के बाद भारत और पाकिस्तान की सरकार ने भी इस बारे में ऐलान किया। कांग्रेस, कांग्रेस समर्थक और कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स इस मौक़े पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का ज़िक्र कर रहे हैं।

कांग्रेस के आधिकारिक एक्स हैंडल से इंदिरा गांधी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की तस्वीर साझा की गई है। इस तस्वीर के साथ कांग्रेस ने लिखा है, ”इंदिरा गांधी ने निक्सन से कहा था- हमारी रीढ़ की हड्डी सीधी है। हमारे पास इच्छाशक्ति और संसाधन हैं कि हम हर अत्याचार का सामना कर सकते हैं। वो वक़्त चला गया जब कोई देश तीन-चार हज़ार मील दूर बैठकर ये आदेश दे कि भारतीय उसकी मर्ज़ी के हिसाब से चलें।”

कांग्रेस ने ट्वीट में लिखा, ”ये थी हिम्मत. यही था भारत के लिए डटकर खड़ा होना और देश की गरिमा के साथ कोई समझौता ना करना.”

एक महिला प्रधानमंत्री बनी और उन्होंने पाकिस्तान के दो हिस्से कर दिए। बाक़ी लोग बोलते रहते हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक कर दूंगा, उन्होंने बोला नहीं, दो कर दिए। अमेरिका की धमकियाँ थीं, ज़मीनी हालात मुश्किल थे, मगर इंदिरा गांधी नहीं डरीं। 1971 में उन्होंने न सिर्फ़ भारत की गरिमा बचाई, बल्कि पाकिस्तान के दो टुकड़े करके एक नया देश बनवाकर इतिहास रच दिया। वो सिर्फ़ प्रधानमंत्री नहीं थीं, एक जज़्बा थीं, एक इरादा थीं।

12 दिसंबर 1971 को इंदिरा गांधी ने एक ख़त अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को लिखा था। चार दिन बाद पाकिस्तान ने सरेंडर कर दिया।

पिछले सप्ताह भर से पाकिस्तान के साथ चल रहे कथित युद्ध में भारतीय सेना के जवानों ने अद्वितीय शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन किया है। इसके लिए हम भारतीय सेना का हार्दिक अभिनंदन करते हैं। इस युद्ध में हमने अपने कुछ वीर जवानों को युद्धभूमि में खो दिया, जिन्होंने वीरगति प्राप्त की। उन सभी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके परिवारजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं।

शनिवार शाम लगभग 5 बजे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया मंच ‘X’ पर एक ट्वीट करते हुए यह घोषणा की कि अमेरिका की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम (सीज़फायर) होने जा रहा है और इस युद्ध को रोका जाएगा। इसके तुरंत बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी ‘X’ पर ट्वीट कर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का इस मुद्दे में मध्यस्थता करने के लिए आभार व्यक्त किया।

वास्तव में देखा जाए तो किसी तीसरे देश द्वारा भारत-पाकिस्तान विवाद में मध्यस्थता करना 1972 में दोनों देशों के बीच हुए शिमला समझौते के मार्गदर्शक सिद्धांतों का उल्लंघन है। यह समझौता भारत के लिए कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और रणनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि हम स्वयं इस समझौते को लागू नहीं करेंगे, तो पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की खुली छूट मिल सकती है, जो हमें किसी भी परिस्थिति में नहीं देनी चाहिए।

शिमला समझौते के अनुसार, भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी युद्ध जैसी स्थिति में दोनों देशों को आपसी द्विपक्षीय संवाद द्वारा समस्याओं का समाधान करना है। इस प्रक्रिया में किसी तीसरे देश या शक्ति की भूमिका स्वीकार्य नहीं है, यह इस समझौते का प्रमुख मार्गदर्शक सिद्धांत है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने की सार्वजनिक घोषणा, और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री द्वारा उसके लिए ट्रंप को धन्यवाद देना, इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कश्मीर अब केवल भारत और पाकिस्तान के बीच का आंतरिक मामला नहीं रहा। इससे हमारी वैश्विक कूटनीतिक स्थिति को गहरा आघात पहुँचा है।

इस घटनाक्रम से भविष्य में यह संभावना बन सकती है कि अमेरिका कश्मीर और उससे जुड़े आतंकवाद के मुद्दे में मध्यस्थ के रूप में भूमिका निभाने का प्रयास करे।

सन् 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दृढ़ और आक्रामक नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में पराजित कर उसके दो टुकड़े कर दिए थे, जिससे बांग्लादेश का निर्माण हुआ। इसके बाद, 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ। इस समझौते में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान का आंतरिक मामला है और किसी भी अन्य देश को इसमें हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है, यह शर्त इंदिरा गांधी ने विशेष रूप से शामिल करवाई थी।

इसी शर्त के कारण पाकिस्तान कभी भी कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नहीं ले जा सका। लेकिन आज, अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा कश्मीर में आतंकवाद के कारण उत्पन्न युद्ध जैसी स्थिति में अपनी मध्यस्थता से युद्धविराम की घोषणा कर दी गई, और वह भी भारत की आधिकारिक स्थिति घोषित होने से पहले। यह हमारे देश की कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण के लिए एक गहरा झटका है।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को लिखे पत्र में कहा था : = “हमारे देश की रीढ़ मजबूत है। हमारे पास सभी अत्याचारों से लड़ने की पर्याप्त इच्छाशक्ति और आवश्यक संसाधन हैं। अब वह समय चला गया जब कोई भी राष्ट्र, जो हमसे तीन या चार हजार मील दूर बैठा है, केवल अपनी नस्लीय श्रेष्ठता के आधार पर भारतीयों को अपनी इच्छा अनुसार निर्देश दे सकता था।”

आज इस परिस्थिति में इंदिरा गांधी के मजबूत नेतृत्व की याद आना स्वाभाविक है। पिछले 75 वर्षों में जब दुनिया भर में कई देश विभाजित हुए, तब कांग्रेस पार्टी की सरकार ने भारत की एकता और संप्रभुता को सदा सुरक्षित रखा। कांग्रेस पार्टी ने कश्मीर को भारत में सम्मिलित किया, इंदिरा गांधी ने पंजाब समस्या का समाधान किया, पाकिस्तान को विभाजित किया, सिक्किम को भारत में शामिल किया, और इससे पहले गोवा को भी भारत का हिस्सा बनाया, यह सब करते समय पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने आवश्यकता पड़ने पर अपने प्राण तक जोखिम में डाले, लेकिन कभी भी देश की एकता से समझौता नहीं किया।

आज यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि भारत सरकार यह स्पष्ट करें कि क्या उसने कश्मीर मुद्दे में अमेरिका के हस्तक्षेप को मान्यता दी है? इस विषय में सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। इस विषय पर संसद का विशेष सत्र बुलाया जाना चाहिये और सरकार संसद में अपनी स्पष्ट भूमिका पेश करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सभी दलों की बैठक बुलाकर स्वयं उसमें उपस्थित रहकर इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी सभी राजनीतिक दलों को विश्वास में लेकर साझा करनी चाहिए। भारत सरकार को स्वतंत्र भारत की ऐतिहासिक और स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय नीतियों, और भारत की संप्रभुता से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहिए, जैसा कि कभी इंदिरा गांधी ने किया था।