न्यू इंडिया का विचार यही है कि देश में वीआईपी की जगह हर व्यक्ति को महत्वपूर्ण माना जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2017 में घोषणा की थी कि वीआईपी कल्चर समाप्त कर दिया जाएगा और इसके स्थान पर ‘ईपीआई’ यानी ‘एवरी पर्सन इज इंपॉर्टेंट’ का महत्व बढ़ेगा। लेकिन हकीकत इससे उलट दिखाई देती है।
2017 में प्रधानमंत्री ने वीआईपी संस्कृति को खत्म करने की बात कही थी, और 2024 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसकी पुनः घोषणा की। इसके बावजूद, प्रयागराज महाकुंभ में वीआईपी और वीवीआईपी पास जारी किए गए, जिससे आम जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। मीडिया ने भी इस मुद्दे को नजरअंदाज किया और प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
महाकुंभ के दौरान तीन स्थानों पर भगदड़ हुई, लेकिन प्रशासन और सीसीटीवी निगरानी प्रणाली इसे रोकने में नाकाम रही। मीडिया ने भी इस मामले को उठाने के बजाय चुप्पी साध ली। सवाल उठता है कि क्या मीडिया पर किसी प्रकार का दबाव था? क्या इस घटना को जानबूझकर दबाया गया? अगर यह हादसा किसी अन्य राज्य में हुआ होता, तो क्या गोदी मीडिया इतनी ही चुप्पी साधे रहता?
सरकार द्वारा अब वीआईपी पास रद्द किए जाने की घोषणा की गई है और कुंभ को नो व्हीकल जोन घोषित कर दिया गया है, लेकिन यह आदेश केवल 4 फरवरी तक प्रभावी रहेगा। संयोग से, 5 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी संगम में स्नान करेंगे, और उस दिन दिल्ली में मतदान भी होगा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मीडिया किस प्रकार इस घटना को कवर करता है और क्या मृतकों व पीड़ितों की चर्चा होती है या नहीं।
इस गंभीर मामले पर वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने बाकायदा एक स्टोरी पेश की है। इसमें उन्होंने अनेक तथ्यों पर प्रकाश डाला है। बहरहाल महत्वपूर्ण सवाल यह है कि कितने वीआईपी पास जारी किए गए और कितने रद्द किए गए? वीआईपी स्नान के दौरान आम जनता को होने वाली असुविधा पर कोई चर्चा क्यों नहीं हुई? वीआईपी संस्कृति समाप्त करने की घोषणा के बावजूद, इसे बार-बार लागू क्यों नहीं किया जा सका?
कुंभ के दौरान सबसे महत्वपूर्ण श्रद्धालु वे लोग हैं, जो अपनी आस्था और भक्ति के साथ वहां पहुंचते हैं। लेकिन उनकी सुविधा के लिए पर्याप्त प्रबंध नहीं किए गए। अशक्त और वृद्धजनों के लिए लंबे पैदल मार्ग तय किए गए, जबकि वीआईपी के लिए विशेष व्यवस्था की गई। मीडिया ने भी इन मुद्दों को नजरअंदाज किया।
यह भी देखा गया कि सरकार द्वारा बार-बार वीआईपी संस्कृति को समाप्त करने की घोषणाओं के बावजूद, इसे लागू नहीं किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, 8 जून 2024 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि वीआईपी कल्चर स्वीकार्य नहीं होगा, लेकिन इसके बावजूद कुंभ में वीआईपी संस्कृति जारी रही। अयोध्या में भी वीआईपी मूवमेंट के कारण आम लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
मीडिया और सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वीआईपी पास जारी करने का निर्णय किसने लिया? क्या मुख्यमंत्री को इसकी जानकारी थी? क्या प्रधानमंत्री को याद नहीं कि उन्होंने 2017 में खुद घोषणा की थी कि वीआईपी संस्कृति समाप्त कर दी जाएगी? क्या यह सब केवल हेडलाइन मैनेजमेंट के लिए किया गया था?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 54 कैबिनेट मंत्रियों के साथ कुंभ में स्नान करने गए थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि आम लोगों की सुविधा से अधिक महत्व वीआईपी संस्कृति को दिया गया। क्या यही ‘ईपीआई’ की परिभाषा है? वीआईपी संस्कृति समाप्त करने के नारे केवल चुनावी मुद्दे बनकर रह गए हैं, जबकि वास्तविकता इससे अलग है।
वीआईपी कल्चर को जड़ से समाप्त करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे और मीडिया को भी निष्पक्ष होकर इस पर सवाल उठाने होंगे। अन्यथा, यह समस्या हर बड़े आयोजन में आम जनता के लिए परेशानी का सबब बनती रहेगी।
राजमार्ग पर जाम की स्थिति भयावह बनी हुई है। लाखों लोग इसमें फंसे हुए हैं और यह खबर प्रमुख समाचार पत्रों के अंदरूनी पृष्ठों पर प्रकाशित की गई है। यह स्थिति मीडिया की प्राथमिकताओं पर भी सवाल उठाती है। कल्पना कीजिए प्रयागराज की सीमा पर गाड़ियों में फंसे लोगों की क्या हालत हो रही होगी। लेकिन मुख्यधारा के मीडिया चैनलों पर इसकी रिपोर्टिंग न के बराबर है।
कुंभ अभी समाप्त नहीं हुआ है, लेकिन पहले ही दिन से इसके इंतजाम को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए थे। अब इन दावों की पोल खुलने लगी है। जिलों की सीमाओं पर कार और बसों में फंसे लोग घंटों तक जाम में फंसे रहे, मगर यह तस्वीर मीडिया से ओझल रही।
एक बड़े अंग्रेजी अखबार के संपादकीय ने 30 जनवरी को “ट्रेजेडी एंड कॉन्टेक्स्ट” शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया। इसमें लिखा गया कि “इतने बड़े आयोजन में कुछ अव्यवस्था स्वाभाविक है।” यह तर्क दिया गया कि हादसों की तुलना अन्य कारणों से होने वाली मौतों से की जानी चाहिए। यह सवाल उठता है कि क्या इस आधार पर दुर्घटनाओं की रिपोर्टिंग बंद कर दी जाएगी? यदि बालेश्वर रेल दुर्घटना में 200 लोग मारे गए, लेकिन 400 लोग बच भी गए, तो क्या इस तर्क से दुर्घटनाओं की गंभीरता कम हो जाती है? कुंभ में भगदड़ से जो मौत हुई है, वह अन्य कारणों से होने वाली मौतों की तुलना में बहुत कम है। संपादकीय में तर्क दिया गया कि अल्जाइमर से भी लाखों लोग मरते हैं, लेकिन वह खबर पहले पृष्ठ पर नहीं छपती। यह सवाल उठता है कि अखबार का कार्य खबर देना है या संदर्भ समझाना? क्या मीडिया अब यह तय करेगा कि कौन सी मौत अधिक महत्वपूर्ण है?
31 जनवरी को एक हिंदी अखबार में यह खबर छपी कि कुंभ में तीन जगह भगदड़ मची थी। मगर इसे प्रमुखता नहीं दी गई। संगम तट, सेक्टर 18 और सेक्टर 21 में भगदड़ की घटनाएं हुईं। उल्टा किला के पास से दरभंगा निवासी रमा देवी लापता हो गईं, उनके बेटे बलराम और रणजीत उन्हें खोजते रहे, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। इंटरनेट मीडिया पर इन घटनाओं के कई वीडियो प्रसारित हुए, लेकिन प्रशासन और पुलिस मौन रहे।
क्या यह खबर पहले पृष्ठ पर प्रमुखता से नहीं छपनी चाहिए थी? लेकिन अखबार में 30 जनवरी को यह खबर अंदरूनी पन्नों पर सीमित कर दी गई। बड़े-बड़े अक्षरों में अखाड़ों के स्नान की भव्य तस्वीरें प्रकाशित की गईं, मगर भगदड़ की खबर गौण कर दी गई।
उत्तर प्रदेश सूचना और जनसंपर्क विभाग के निदेशक शिशिर के दस्तखत के साथ लखनऊ के संपादकों को एक बुकलेट दी गई थी। इसमें महाकुंभ की रिपोर्टिंग के लिए 70 स्टोरी आइडिया दिए गए थे और यह निर्देश दिया गया था कि मीडिया को इन्हीं विषयों पर ध्यान देना चाहिए। इसका अर्थ है कि मीडिया को पहले से ही यह बता दिया गया कि उन्हें क्या लिखना है और क्या नहीं लिखना है।
इसके अलावा, विज्ञापनों के नाम पर बड़े-बड़े चैनलों और अखबारों को करोड़ों रुपये दिए गए, जिससे उनकी रिपोर्टिंग प्रभावित हुई। प्रशासन ने अपनी कहानी पहले ही मीडिया को सौंप दी, जिसमें बताया गया कि महाकुंभ का आयोजन कितना भव्य और सफल रहा।
यह स्पष्ट है कि मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सत्ता और प्रशासन के प्रभाव में काम कर रहा है। बड़ी घटनाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है और वास्तविक मुद्दों पर पर्दा डालने का प्रयास किया जाता है। यह स्थिति लोकतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए खतरा बन चुकी है।
जरूरत इस बात की है कि जनता सतर्क रहे और केवल एकतरफा रिपोर्टिंग पर भरोसा न करे। मीडिया को निष्पक्षता से कार्य करना चाहिए और हर खबर को समान महत्व देना चाहिए, ताकि जनता को वास्तविकता से अवगत कराया जा सके।