सिंचाई का बैकलॉग 60,000 करोड़ !

19

 —– 318 करोड़ की परियोजना का दाम बढ़कर 22,000 करोड़ हुआ बावजूद विदर्भ के 131 में से महज 43 छोटे सिंचाई प्रकल्प हुए पूर्ण

— 6,000 करोड़ रुपये की राशि खर्च न कर सकीं सरकार

— सरकारी वादों और हकीकत के बीच पिस रहा किसान

 

चंद्रपुर:

विदर्भ के सिंचाई प्रकल्पों की अधूरी कहानी बड़ी ही दयनीय है। यहां के सिंचाई प्रकल्पों की स्थिति वर्षों से सरकार की अनदेखी और प्रशासनिक लापरवाही का शिकार रही है। करोड़ों की लागत वाले प्रकल्प अधूरे पड़े हैं। इससे किसानों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। वैनगंगा-नलगंगा नदी जोड़ो प्रोजेक्ट को मंजूरी मिलने के बावजूद, विदर्भ के छोटे-बड़े सिंचाई प्रकल्पों की दशा और दिशा जस की तस है। आइए इस समस्या को गहराई से समझते हैं।

सरकार की निष्क्रियता और प्रकल्पों में देरी ने विदर्भ के किसानों की समस्याओं को और जटिल बना दिया है। जब तक प्रशासन और राजनीति में इच्छाशक्ति का विकास नहीं होगा, तब तक विदर्भ की सिंचाई समस्याएं यूं ही बनी रहेंगी। विदर्भ के किसानों के सपनों पर पानी फिरता रहेगा। अधूरे प्रकल्पों की लंबी फेहरिस्त से आप किसानों की उपेक्षा को समझ सकते हैं।

विदर्भ की सिंचाई योजनाएं अधूरी  

विदर्भ क्षेत्र के किसानों को सिंचाई की बेहतर सुविधाएं देने के उद्देश्य से सरकार ने कई प्रकल्प शुरू किए। हाल ही में वैनगंगा-नलगंगा नदी जोड़ो प्रोजेक्ट के लिए 80,000 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई, जो ऐतिहासिक है। लेकिन पिछले कई दशकों से छोटे, मध्यम और बड़े सिंचाई प्रकल्प अधूरे पड़े हैं। यदि ये प्रकल्प समय पर पूरे हो जाते, तो लाखों हेक्टेयर भूमि सिंचित हो सकती थी।

पुरानी रिपोर्ट ने खोली पोल  

सिंचन के विशेषज्ञ मधुकर किंमतकर ने एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि विदर्भ का सिंचाई बैकलॉग 60,000 करोड़ रुपये है। हालांकि, 2012-2023 के बीच सरकार ने 20,618 करोड़ रुपये मंजूर किए, लेकिन इनमें से केवल 14,324 करोड़ रुपये खर्च हुए। शेष 6,000 करोड़ रुपये उपयोग ही नहीं हो सके।

बड़े प्रकल्प अधूरे  

विदर्भ में गोसीखुर्द, जिगांव, निम्न पैनगंगा, निम्न पेढ़ी और बेंबाल जैसे बड़े प्रकल्प आज भी अधूरे हैं।

– गोसीखुर्द प्रकल्प की लागत 318 करोड़ रुपये से बढ़कर 20-22 हजार करोड़ रुपये हो चुकी है।

– जिगांव प्रकल्प से 1 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकती थी, लेकिन कार्य रुका हुआ है।

– बेंबला और वर्धा प्रकल्पों में पानी है, पर किसानों तक नहीं पहुंच पा रहा।

सरकार की दलीलें और सच्चाई  

सरकार का कहना है कि जंगलों और मंजूरी की अड़चनों के कारण ये प्रकल्प पूरे नहीं हो पाए। लेकिन विदर्भ के नागरिकों का तर्क है कि इन अड़चनों को दूर करना सरकार का ही काम है।

– 131 प्रकल्पों में से केवल 43 छोटे प्रकल्प पूरे हुए।

– राज्य और केंद्र सरकार एक-दूसरे पर असफलता का ठीकरा फोड़ती रही।

वैनगंगा-नलगंगा प्रोजेक्ट पर सवाल  

हाल ही में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले 80,000 करोड़ रुपये की लागत वाले वैनगंगा-नलगंगा प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई। विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल एक चुनावी स्टंट था।

– पहले इस प्रोजेक्ट की लागत 65,000 करोड़ रुपये आंकी गई थी, लेकिन मंजूरी तक यह बढ़कर 80,000 करोड़ हो गई।

– जब पुराने प्रकल्पों के लिए धनराशि का प्रबंधन नहीं हो पाया, तो इस प्रोजेक्ट को पूरा करना कैसे संभव होगा?

किसानों को हो रही समस्याएं  

– अधूरे प्रकल्पों की वजह से लाखों हेक्टेयर भूमि सिंचित नहीं हो पाई।

– सिंचाई के अभाव में किसानों की आय और रोजगार के अवसर सीमित हैं।

– यदि 1 हेक्टेयर भूमि सिंचित हो, तो 4 लोगों को सालभर का रोजगार मिलता है।

सरकारी आंकड़े और हकीकत  

सरकार का दावा है कि विदर्भ के सिंचाई बैकलॉग को खत्म करने के लिए 6,800 करोड़ रुपये चाहिए।

– 2023-24 के बजट में 2,192 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया।

– गोसीखुर्द प्रकल्प के लिए 1,500 करोड़ रुपये का प्रावधान था, लेकिन काम अभी भी अधूरा है।

– पिछली सरकारों ने भी योजनाओं को पूरा करने का वादा किया, लेकिन वे भी सफल नहीं हुईं।

अंतिम बात

विदर्भ के सिंचाई प्रकल्प सरकार की योजनाओं और उनकी असफलताओं की कहानी बयां करते हैं। किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए जरूरी है कि इन प्रकल्पों को प्राथमिकता दी जाए और समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाए। जब तक प्रशासनिक इच्छाशक्ति नहीं आएगी, तब तक किसानों की समस्याएं बनी रहेंगी।

1. वैनगंगा-नलगंगा प्रोजेक्ट को मंजूरी :  

– राज्यपाल ने 80,000 करोड़ रुपये के खर्च को दी मंजूरी।

– लेकिन, यह प्रोजेक्ट कई सवाल खड़े कर रहा है क्योंकि पुराने प्रकल्प अभी तक अधूरे हैं।

2. पुराने सिंचाई प्रकल्पों की स्थिति :  

– विदर्भ के 131 सिंचाई प्रकल्पों में से सिर्फ 43 छोटे प्रकल्प पूरे हो पाए हैं।

– बड़े प्रकल्प जैसे गोसीखुर्द, जिगांव, निम्न पैनगंगा और बेंबला आज भी अधूरे।

– लेटलतीफी से लागत कई गुना बढ़ गई है, जैसे गोसीखुर्द की लागत 318 करोड़ से 22,000 करोड़ तक पहुंच गई।

3. पिछले 10 वर्षों का बजट और खर्च :  

– 2012-2023 के बीच 20,618 करोड़ रुपये की मंजूरी, लेकिन खर्च सिर्फ 14,324 करोड़।

– 6,000 करोड़ रुपये की राशि खर्च नहीं की गई।

– विदर्भ का सिंचाई बैकलॉग 60,000 करोड़ रुपये का है, लेकिन क्षेत्र को पर्याप्त निधि नहीं मिली।

4. सरकारी दावे और हकीकत :  

– सरकार का दावा: बैकलॉग खत्म करने के लिए 6,800 करोड़ रुपये की जरूरत।

– बजट 2023-24 में 2,192 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया।

– गोसीखुर्द के लिए 1,500 करोड़ रुपये की मंजूरी, लेकिन अब तक काम अधूरा।

5. राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी :  

– राज्य सरकार ने देरी का कारण “जंगल और मंजूरी संबंधी बाधाएं” बताया।

– विदर्भवादियों का तर्क: सरकार का काम है बाधाओं को दूर करना।

– प्रकल्पों की देरी को लेकर केंद्र और राज्य सरकार एक-दूसरे पर आरोप लगाती रहीं।

6. किसानों की समस्याएं :

– अधूरे प्रकल्पों से लाखों हेक्टेयर खेतों की सिंचाई नहीं हो पा रही।

– यदि सिंचाई होती, तो हजारों किसानों को रोजगार मिलता।

– जलाशयों में पानी होने के बावजूद किसान तक नहीं पहुंच रहा।

7. चुनावी राजनीति का असर :  

– वैनगंगा-नलगंगा परियोजना को चुनावी स्टंट करार दिया जा रहा है।

– विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं।