■ विजिलेंस से ‘प्रकाशगढ़’ कनेक्शन की गहन जांच क्या करा पाएंगे CM फडणवीस
■ DPR बनाकर छोटे-छोटे कार्य सैंकड़ों करोड़ में तब्दील
चंद्रपुर.
“CSTPS” के नाम से परिचित चंद्रपुर का सुपर थर्मल पॉवर स्टेशन एशिया का सबसे बड़ा प्रकल्प माना जाता है। कोयले से चलने वाला थर्मल (उष्मा-आधारित) पावर प्लांट अब भ्रष्टाचार की चपेट में आ चुका है। यहां बरसों से स्थानीय ठेकेदारों और मजदूरों को मिलने वाला कार्य लगभग बंद हो गया है। क्योंकि इस प्लांट के अब सभी छोटे कार्यों को एकमुश्त संलग्न कर इसे बड़े ठेके में तब्दील कर चंद 7-8 बड़े ठेकेदारों के जेब भरने की नीति अपनाई गई है। इसके चलते छोटे और मध्यम ठेकेदारों का व्यवसाय ठप पड़ गया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस स्वयं इस विभाग के मंत्री है। बावजूद ठेका प्रणाली में हो रही गड़बड़ियों पर उनका ध्यान नहीं है। DPR बनाकर अधिक दरों से ठेका देने की नीति के कारण यहां भ्रष्टाचार की बू आ रही है।
CSTPS अब बड़े ठेकेदारों की जेब में
“CSTPS” के CE विजय राठौड़ को कर्तव्यदक्ष एवं साफ छवि वाले अधिकारी के रूप में पहचाना जाता है। परंतु उनकी मौजूदगी के बावजूद प्लांट से संबंधित विभिन्न छोटे ठेको को DPR के माध्यम से बड़े ठेकों में तब्दील कर यहां की व्यवस्था को चौपट किया जा रहा है। और वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि उन्हें 2 करोड़ रुपयों तक के ठेकों को अनुमति एवं मंजूरी देने का अधिकार है। परंतु हर छोटे ठेकों को बड़े ठेकेदारों के जेब में पहुचाने के लिए इसे संलग्नित कर मुंबई के ‘प्रकाशगढ़’ से ठेकों का आवंटन शुरू कर दिया गया है। यह नीति न केवल स्थानीय मजदूरों और रोजगार को खत्म कर रही है, बल्कि छोटे व मध्यम ठेकेदारों की कमर भी तोड़ रही है। इन्हें ठेके मिलना बंद सा हो गया है।
बड़े ठेकेदारों ने बना ली रिंग प्रणाली
“CSTPS” प्लांट में विभिन्न क्षेत्र हैं। इनमें कोल हैंडलिंग प्लांट, कूलिंग टॉवर प्लांट, वॉटर ट्रिटमेंट प्लांट, ऐश बाँड प्लांट, पाइप लाइन एरिया, डॅम एरिया, रिसायकलिंग पंप एरिया, कालोनी एरिया आदि से जुड़े विविध छोटे कार्यों को 7 से 8 की संख्या में मौजूद बड़े ठेकेदारों के झोली में ड़ाला जा रहा है। एन्यूअल कार्य, मेंटेनंस कार्य, लेबर सप्लाई, सफाई कार्य जैसे मामूली कार्यों को एकमुश्त प्रोजेक्ट बनाकर इसे बड़े ठेके में तब्दील कर दिया गया है। बड़े ठेकेदारों ने मिलकर अपनी रिंग बना ली है। वही-वही बड़े ठेकेदार रिपीट होने लगे है। आपस मिलकर, तय सौदेबाजी कर ठेके हासिल किए जा रहे हैं।
अधिक दरों पर ठेकों की खैरात
बड़े ठेकेदार अब अधिक दरों पर ठेके हासिल करने में कामयाब हो रहे है। चाहे शटडाउन का कार्य हो या रंगरोगन का कार्य, किसी भी छोटे काम को इकठ्ठा कर उसे बड़े ठेके में तब्दील करने का नुकसान यह हो रहा है कि जो रंगरोगन का कार्य पहले 300 रुपये के दर से हुआ करता था, उसे अब 700 रुपये से अधिक के दर से किया जाने लगा है।
घटिया कार्यों पर CSTPS का विजिलेंस नहीं
नियोजित ढंग से छोटे एवं ठेकेदारों के काम को छिने जाने के कारण अब वे बेरोजगारी का दंश झेलने के लिए मजबूर हो गए है। इनके पास बरसों से कार्य करने वाले मजदूरों को दिहाड़ी कार्य देने के लिए भी ठेका उपलब्ध नहीं है। ऐसे में यह मजदूर अब रोष जताने लगे है। शिकायत करने लगे है। काम मांगने लगे है। काम के अभाव में यहां की व्यवस्था चरमरा गई है। बड़े ठेकेदार जहां सरकार से अधिक दर वसूल रहे है, वहीं उनके कार्य की गुणवत्ता घटिया होने के बावजूद उसकी उचित जांच नहीं की जा रही है। इससे बड़े ठेकेदारों की मनमानी बढ़ गई है।
करोड़ों के ठेके और संदिग्ध भूमिका
100 से 1000 करोड़ के ठेके बड़े ठेकेदारों को अधिक मुनाफा पहुंचाने की नीयत से सौंपे जा रहे है। इसमें यकीनन संबंधित विभागों के कुछ अफसरों और जनप्रतिनिधियों की भूमिका संदिग्ध नजर आती है। इसलिए अब समय आ गया है कि ऐसे सभी बड़े ठेकों की मुंबई के ‘प्रकाशगढ़’ से कनेक्शन का पर्दाफाश करने की, विजिलेंस विभाग की ओर से उचित एवं उच्च स्तरीय जांच कराई जाएं। साथ ही छोटे ठेकेदारों पर हो रहे अन्याय को लेकर सही कदम उठाएं जाएं।
मुंबई मंत्रालय में पैठ जमा बैठे बड़े ठेकेदार
अब आवश्यकता है छोटे एवं मध्यम ठेकेदारों को एकजुट होकर इन बड़े ठेकेदारों के रिंग प्रणाली के खिलाफ आवाज उठाने, आंदोलन करने और सरकार से न्याय की गुहार लगाने की। समय रहते यदि यह हालात नहीं बदले तो एक दिन यह मसला उग्र रूप ले लेगा और संबंधित प्रशासन एवं सरकार हतबल हो जाएगी। “CSTPS” के चलते होने वाला प्रदूषण स्थानीय नागरिक झेल रहे है। और चेन्नई, मद्रास जैसे बड़े महानगरों में काम करने वाली कंपनियां मुंबई के ‘प्रकाशगढ़’ में अपनी पैठ जमाकर “CSTPS” के छोटे-छोटे कार्यों को बड़े ठेके में तब्दील कर वह ठेके हासिल कर रहे है।










