किसानों के त्यौहार बने मातम, सरकार उदासीन

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चंद्रपुर.
जिले के तमाम तहसीलों के अलावा गोंडपिपरी तहसील में भी अतिवृष्टि के कारण तबाही का मंजर था। बीते दिनों की बारिश कहर बनकर टूटी थी। अतिवृष्टि ने तबाही मचा दी थी। हजारों एकड़ में फैली फसलों पर पानी भर गया, जिससे सोयाबीन और कपास जैसी नगदी फसलें सड़ गईं। और कपास की कलियां काली पड़ गईं। किसानों के लिए दिवाली और भाईदूज जैसे त्यौहार मातम में बदल गए। इस बीच सरकार की वादाखिलाफी, मुआवजे की घोषणा केवल और केवल उदासिनता में बदल गई। एक ओर खेत में खड़ी फसलें डूब गईं, तो दूसरी ओर बाघों की दहशत ने किसानों को घर से बाहर निकलना मुश्किल बना दिया। वहीं एक तरफ प्रकृति का प्रकोप, दूसरी तरफ शासन की उदासीनता।
बीते दिनों की अतिवृष्टि के कारण, खरीफ मौसम में पसीना बहाकर तैयार की गई फसलें किसानों की आँखों के सामने नष्ट हो गई। कई गाँवों में किसान दिवाली नहीं मना पाएं।

कागज़ों पर मदद, जमीन पर निराशा
सरकार ने अतिवृष्टि राहत और फसल बीमा की घोषणाएँ तो कीं, पर एक रुपया भी किसानों तक नहीं पहुँचा। अधिकांश तहसीलों में राजस्व विभाग के अधिकारियों के पंचनामे अधूरे हैं। कई किसानों के आवेदन महीनों से लंबित पड़े हैं। मदद पाने के लिए किसान, तहसील कार्यालयों के चक्कर काटते-काटते थक चुके हैं।

गोंडपिपरी की विडंबना
सबसे बड़ी विडंबना यह कि 9 अक्टूबर को गोंडपिपरी तहसील को “अतिवृष्टि प्रभावित क्षेत्र” में शामिल किया गया था, पर रातोंरात उसका नाम सूची से हटा दिया गया। स्थानीय विधायक ने मुख्यमंत्री से पुनः समावेशन की मांग की, लेकिन अब तक निर्णय नहीं हुआ।

कांग्रेस तहसील अध्यक्ष अशोक रेचनकर ने कहा –
“जब कपास की कलियां फुटने को थीं, तब बारिश ने सब चौपट कर दिया। सरकार को किसानों के साथ खड़े होकर तत्काल आर्थिक मदद और संपूर्ण कर्जमाफी करनी चाहिए।” 24 अक्टूबर को दोबारा बारिश हुई, जिससे किसानों की पहले से बिगड़ी हालत और दयनीय हो गई है।

महाराष्ट्र का व्यापक संकट
महाराष्ट्र राज्य की अर्थव्यवस्था में लगभग 11.9 % योगदान कृषि देती है, और इसमें 63 % से अधिक हिस्सेदारी खेती व उससे जुड़े कार्यों की है। लेकिन इन आँकड़ों के बावजूद किसानों की हालत सुधरी नहीं। 2012-13 से 2018-19 के बीच किसानों की घरेलू आमदनी में गिरावट दर्ज की गई है।

किसान आत्महत्याएँ
2023 में महाराष्ट्र में 2,851 किसानों ने आत्महत्या की। 2024 में यह संख्या 2,635 रही। इनमें से अधिकांश घटनाएँ कर्ज, फसल नुकसान और मौसमीय अस्थिरता से जुड़ी थीं। मार्च 2025 तक सिर्फ तीन महीनों में 767 किसान आत्महत्याओं के मामले दर्ज हुए।

उत्पादन और जलवायु अस्थिरता
महाराष्ट्र में 2023 के दौरान 16.73 मिलियन टन अन्न उत्पादन हुआ था। यह ऐतिहासिक स्तर था। मगर यह वृद्धि जलवायु परिवर्तन, अनियमित वर्षा, और सूखा-अतिवृष्टि के चक्र के कारण स्थायी नहीं है। छोटे और सीमांत किसान, जिनकी संख्या 80 % से अधिक है, सबसे अधिक प्रभावित हैं।

सरकार की उदासीनता और किसानों की पुकार
शहरों में त्यौहारों की जगमग रोशनी है, वहीं गाँवों में किसान रोज़ चूल्हा जलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कागज़ों में सहायता योजनाएँ हैं, लेकिन धरातल पर किसानों तक ना बीमा रकम पहुँचती है, ना मुआवज़ा। किसान संगठनों और विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को चाहिए कि तात्कालिक मुआवज़ा वितरण, संपूर्ण कर्जमाफी, और जल-सिंचन, फसल बीमा, एवं जलवायु अनुकूल कृषि नीतियों को प्राथमिकता दे।

अंतिम बात
गोंडपिपरी का संकट केवल एक जिले के एक तहसील की कहानी नहीं है, बल्कि यह पूरे महाराष्ट्र के कृषि-तंत्र की असलियत है – जहाँ प्रकृति का प्रकोप, सरकारी उपेक्षा और आर्थिक असुरक्षा मिलकर किसान के जीवन को बुझा रहे हैं। जब तक शासन किसानों के आँसू मिटाने की ठोस नीति नहीं बनाता, “जय जवान, जय किसान” केवल नारा रह जाएगा – हकीकत नहीं।