■ भाजपा पदाधिकारियों के मोबाइल नंबरों का उपयोग
■ लोकतंत्र की जड़ों में ‘राजुरा’ के कीचड़ से खिला कमल
चंद्रपुर.
चंद्रपुर जिले का राजुरा विधानसभा क्षेत्र एक बार फिर राजनीतिक भूचाल के केंद्र में है। यहां हजारों फर्जी वोटर पंजीकरण का मामला सामने आया है। और इस पूरे खेल के पीछे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं का हाथ होने का सनसनीखेज आरोप लगाया गया है। यह आरोप किसी आम व्यक्ति ने नहीं, बल्कि शेतकरी संगठन के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक एडवोकेट वामनराव चटप ने सीधे जिला पुलिस अधीक्षक को लिखे पत्र में लगाए हैं। इसके पूर्व यही आरोप कांग्रेस के जिलाध्यक्ष एवं पूर्व विधायक सुभाष धोटे भी लगा चुके हैं।
किसान नेता चटप का दावा है कि राजुरा में फर्जी मतदाता बनवाने का पूरा ऑपरेशन सुनियोजित था, और इसके सूत्र भाजपा नेताओं से जुड़े हैं।
राहुल गांधी के बयान के बाद दोबारा खुला पिटारा
इस मुद्दे ने तब जोर पकड़ा जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपने भाषण में राजुरा विधानसभा का जिक्र करते हुए कहा कि यहां वोट चोरी और फर्जी मतदाता पंजीयन के गंभीर प्रमाण हैं। इसके बाद से यह क्षेत्र लगातार चर्चा में है। लेकिन पुलिस प्रशासन की रहस्यमयी खामोशी और भी चौंकाने वाली है।
भाजपाइयों के मोबाइल नंबर से हुआ कांड
पूर्व विधायक चटप ने अपने पत्र में पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठाते हुए बताया कि फर्जी मतदाता पंजीकरण में जिन मोबाइल नंबरों का उपयोग हुआ, उनमें से 2 सीधे भाजपा पदाधिकारियों से जुड़े हैं। फिर भी पुलिस ने अब तक उन्हें पूछताछ के लिए नहीं बुलाया। उनका बयान दर्ज नहीं किया, और न ही कोई गिरफ्तारी की। 6,853 फर्जी मतदाता पंजीकरण का आरोप सिर्फ कोई आंकड़ा नहीं, बल्कि लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ का प्रमाण है।
मोबाइल नंबरों से खुला बड़ा नेटवर्क
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक सूची में 15वें नंबर पर दर्ज मोबाइल नंबर अनिल झाड़े का है, जो गडचांदूर के भाजपा नेता नीलेश ताजणे के करीबी हैं। वहीं 16वें नंबर का मोबाइल प्रतीक दानपवार का है, जो भाजपा कार्यकर्ता हैं। उनके भाजपा के वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक सुधीर मुनगंटीवार व देवराव भोंगले के साथ फोटो भी मौजूद हैं। फिर भी पुलिस ने अब तक इन लोगों से पूछताछ नहीं की! क्या भाजपा के प्रभाव के आगे पुलिस झुक चुकी है ? यह सवाल अब जनता पूछ रही है।
रची साजिश : फर्जी मतदाता सूची – लोकतंत्र की हत्या
चटप ने बताया कि गंगाधर, बंडू और क्रिश जैसे कई नाम बाखरडी इलाके से हैं और इनका सीधा संबंध भाजपा से है। मतदान सूची में झूठी प्रविष्टियाँ जोड़कर चुनाव परिणाम प्रभावित करने की सीधी साजिश रची गई है। लेकिन पुलिस ने पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया और जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर डाल दी। क्या पुलिस का काम सिर्फ कागज़ों में जांच दिखाना है, या लोकतंत्र की रक्षा करना भी? यही सवाल अब राजुरा की जनता के मन में है।
मुख्य साजिशकर्ता को गिरफ्तार करो – चटप की मांग
एड. वामनराव चटप ने पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर मांग की है कि इस फर्जी मतदाता पंजीयन घोटाले में शामिल मुख्य मास्टरमाइंड को तुरंत गिरफ्तार किया जाए। जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए। सभी आरोपी भाजपा पदाधिकारियों पर फौजदारी कार्रवाई की जाए। अन्यत: वे अपने किसान संगठन और इससे जुड़े पदाधिकारियों के साथ आंदोलन करेंगे। वरिष्ठ नेता एड. मुरलीधर देवालकर, किसान संगठन युवा आघाड़ी के प्रदेशाध्यक्ष एड. दीपक चटप, स्वाभिमानी पार्टी जिलाध्यक्ष नीलकंठ कोरांगे, महिला आघाड़ी जिलाध्यक्ष पौर्णिमा निरंजने आदि ने आंदोलन की चेतावनी दी है।
कर्नाटक में SIT बनी, महाराष्ट्र में क्यों नहीं ?
इस पूरे मामले में अब कर्नाटक की मिसाल दी जा रही है। कर्नाटक के आलंद विधानसभा क्षेत्र में जब इसी तरह की वोट चोरी पकड़ी गई, तो वहां की सरकार ने विशेष जांच दल (SIT) गठित कर दी। परंतु महाराष्ट्र में ऐसा कोई कदम अब तक नहीं उठाया गया। कर्नाटक राज्य नीति व नियोजन आयोग के उपाध्यक्ष और आलंद के विधायक बी. आर. पाटिल ने पत्रकार परिषद में तीखे शब्दों में कहा कि भाजपा ने वोट चोरी के लिए तकनीक का सुनियोजित इस्तेमाल किया। कर्नाटक में SIT बनी, तो महाराष्ट्र में भाजपा के खिलाफ ऐसा कदम क्यों नहीं ?
लोकतांत्रिक व्यवस्था के चरित्र की परीक्षा
राजुरा का यह मामला कोई स्थानीय विवाद नहीं, यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के चरित्र की परीक्षा है। अगर 6,853 फर्जी मतदाता बनाना और अधिकारियों का मौन रहना सामान्य घटना बन गई है, तो यह देश के चुनावी तंत्र पर सबसे बड़ा कलंक है। वोट चोरी, प्रशासन की चुप्पी, और पुलिस की निष्क्रियता ये तीनों मिलकर लोकतंत्र की नींव हिला रहे हैं। अगर अदालत या चुनाव आयोग ने हस्तक्षेप नहीं किया, तो राजुरा मॉडल कल किसी और विधानसभा की सच्चाई बन जाएगा।
भाजपा कार्यकर्ता को दिया ‘OTP’
राजुरा विधानसभा क्षेत्र में फर्जी मतदाता पंजीकरण का मामला अब और भी गहराता जा रहा है। बीबीसी मराठी द्वारा किए गए पड़ताल में पता चला है कि यह फर्जी मतदाता पंजीकरण एक व्यक्ति के निजी मोबाइल नंबर से नहीं किया गया था, लेकिन इसके लिए उसे OTP (वन टाइम पासवर्ड) देने के लिए कहा गया और उसने वह दे दिया। यह घटना विधानसभा चुनाव से लगभग एक साल पहले हुई थी। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि राजुरा विधानसभा में किसी राजनीतिक पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता को OTP दिया गया, जिसका खुलासा एक गुमनाम स्रोत ने बीबीसी को किया। इस गुमनाम व्यक्ति ने यह भी साफ किया कि वह किस पार्टी से संबंधित है या किसकी ओर से काम करता है, इसका नाम नहीं बताएगा। लेकिन अब विरोधी दल इसमें भाजपा पदाधिकारियों का हाथ होने का दावा कर रहे हैं।
11 माह में नहीं हुई कोई कार्रवाई
बीबीसी मराठी की पड़ताल में यह भी सामने आया कि फर्जी मतदाता पंजीकरण के बाद पुलिस ने संबंधित गाँव जाकर कोई ठोस जांच नहीं की। यह मामला तब फिर से सुर्खियों में आया जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजुरा विधानसभा क्षेत्र में फर्जी मतदाता पंजीकरण के मामले का उल्लेख किया। बीबीसी के संवाददाताओं ने जब स्थानीय ग्रामीणों से बातचीत की, तो उन्हें धक्कादायक जानकारी मिली। यह स्पष्ट हो गया कि पुलिस का रवैया पूरी तरह से निष्क्रिय और ढीला है, जबकि लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया वोटिंग और मतदाता सूची की शुद्धता सीधे प्रभावित हो रही है। राजुरा पुलिस थाने में इस मामले में 19 अक्टूबर 2024 को FIR दर्ज हुई थी, लेकिन मामले की जाँच के 11 महीने बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
फर्जी मतदाता पंजीकरण किसने किया ?
हालांकि यह फर्जी पंजीकरण बाद में रद्द कर दिया गया, लेकिन यह प्रश्न अब भी बना हुआ है, किसने और किस मकसद से यह फर्जी पंजीकरण कराया ? पुलिस ने पिछले 11 महीनों में इसका कोई ठोस पता नहीं लगाया। FIR में केवल कुछ नाम और फॉर्म सबमिट करने वाले मोबाइल नंबर दर्ज हैं। बीबीसी की पड़ताल में यह सामने आया कि रद्द की गई सूची में लालाजी केवत नामक मतदाता का फॉर्म ‘बंडू’ नामक व्यक्ति ने भरा। इस पंजीकरण के नीचे लिखा है बंडू सबमिटेड धीस फॉर्म। इसी तरह दूसरे नामों के नीचे गंगाधर सबमिटेड धीस फॉर्म लिखा गया है, और इनके साथ संबंधित मोबाइल नंबर भी दर्ज हैं। बीबीसी ने इन नंबरों पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन सूचना देने वाले व्यक्ति ने अपनी पहचान उजागर न करने की शर्त पर जानकारी साझा की।
राजनीतिक साजिश की खुली छूट
यह मामला केवल एक फर्जी पंजीकरण का नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के मूलाधार पर हमला है। अगर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को OTP देकर फर्जी पंजीकरण कराया जा सकता है, और पुलिस इतने गंभीर मामले में पूरी तरह निष्क्रिय रही, तो इसका मतलब है कि मतदाता सूची में हेरफेर और चुनाव परिणाम प्रभावित करना राजनीतिक स्तर पर संगठित रूप से हो रहा है। राजुरा का यह मामला न केवल स्थानीय लोकतंत्र की परीक्षा है, बल्कि पूरे राज्य के चुनावी तंत्र पर भी सवाल खड़े करता है। यदि पुलिस और प्रशासन सक्रिय नहीं हुए, तो यह केवल राजनीतिक साजिश की खुली छूट है, और जनता के विश्वास को ठेस पहुँचाती है।
चुनाव आयोग की टाल-मटोल से जांच अटकी
राजुरा विधानसभा क्षेत्र में 6,861 फर्जी मतदाता पंजीकरण का मामला अब राजनीतिक और प्रशासनिक घमासान में बदल गया है। यह मामला केवल स्थानीय विवाद नहीं, बल्कि राज्य चुनाव आयोग की निष्क्रियता और लोकतंत्र की कमजोरी को उजागर करता है। चंद्रपुर पुलिस प्रशासन ने मामले की गहन जांच करने के लिए राज्य चुनाव आयोग से पांच-छह बार डेटा मांगा, जिसमें शामिल थे – ऑनलाइन आवेदन के तकनीकी विवरण, संबंधित मोबाइल नंबर, IP एड्रेस, सर्वर लॉग। लेकिन अब तक चुनाव आयोग ने पुलिस को कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई। इससे पुलिस के सामने गंभीर प्रश्न खड़ा हो गया है कि जब तक आयोग आवश्यक डेटा नहीं देगा, आरोपियों तक कैसे पहुँचा जाए? और असली मास्टरमाइंड तक पहुंचना कितना मुश्किल होगा। पुलिस का कहना है कि बिना आयोग की मदद के फर्जी पंजीकरण के जाल का पूरा खुलासा करना लगभग असंभव है।
चंद्रपुर पुलिस का संघर्ष
चंद्रपुर के जिला चुनाव अधिकारी के माध्यम से राज्य चुनाव आयोग को पत्र लिखकर डेटा मांगा गया, लेकिन जानकारी अब तक नहीं मिली। इस कारण जांच की गति बेहद धीमी रही है, और मामले के आरोपी अभी तक कानून के शिकंजे में नहीं आए हैं। राजुरा फर्जी मतदाता पंजीकरण का मामला पिछले 11 महीनों से चर्चा में है। अक्टूबर 2024 में जिला चुनाव अधिकारी और तहसीलदार की शिकायत के आधार पर राजुरा पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज हुई। तब से चंद्रपुर पुलिस विभाग लगातार इस मामले का पीछा कर रहा है, लेकिन चुनाव आयोग की टाल-मटोल और अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण जांच धीमी गति से चल रही है।
आरोपी क्यों बचे हुए हैं ?
यह मामला केवल फर्जी पंजीकरण का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मूलभूत प्रक्रियाओं पर हमला है। अगर चुनाव आयोग और संबंधित अधिकारी जानकारी देने में ढिलाई दिखाते हैं, तो यह सीधे सत्ताधारी दल के प्रभाव और प्रशासनिक असमानता की ओर इशारा करता है। राजुरा फर्जी मतदाता पंजीकरण का यह प्रकरण यह दर्शाता है कि लोकतांत्रिक संस्थानों की निष्क्रियता से भ्रष्टाचार और चुनावी गड़बड़ी को बढ़ावा मिलता है। जब तक चुनाव आयोग पुलिस को आवश्यक डेटा नहीं देगा, आरोपी और असली मास्टरमाइंड सुरक्षित रहेंगे और न्याय से बचते रहेंगे।
मास्टरमाइंड कौन ? कांग्रेस का तीखा हमला
राजुरा विधानसभा क्षेत्र में 6,861 फर्जी मतदाता पंजीकरण का मामला पिछले कुछ समय से सुर्खियों में है। महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने इसे तुरंत रद्द किया और कार्रवाई की, जिसे सभी ओर से स्वागत मिला। लेकिन सवाल यह है इस फर्जी मतदाता पंजीकरण का मास्टरमाइंड कौन है ? कांग्रेस जिलाध्यक्ष और पूर्व विधायक सुभाष धोटे ने इस पर सीधे सवाल उठाया है। उन्होंने जिला चुनाव अधिकारी, राज्य और केंद्रीय चुनाव आयोग को पत्र लिखकर पूछा कि क्यों आरोपी अभी तक गिरफ्तार नहीं हुए हैं।
चुनाव आयोग : जनता के साथ छल
धोटे ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग झूठ बोलकर जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहा है। फर्जी पंजीकरण किसने कराया, इसका कोई ठोस खुलासा नहीं किया गया। आयोग ने आंकड़े पेश किए, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि इतने बड़े पैमाने पर फर्जी आवेदन किसके निर्देश पर और किसने सबमिट किए। क्या इतने आवेदन किसी एक व्यक्ति या छोटे समूह ने किए? या इसके पीछे कोई संगठित समूह और बड़ा राजनीतिक उद्देश्य है? धोटे का कहना है कि चुनाव आयोग मौन क्यों है, यह सबसे बड़ा सवाल है।
11 महीने में कोई ठोस कार्रवाई नहीं
धोटे ने यह भी बताया कि 11 महीने हो गए, लेकिन दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उनका कहना है कि चुनाव आयोग को इस पूरे प्रकरण पर स्पष्ट और पारदर्शी जवाब देना चाहिए, ताकि जनता को विश्वास हो कि लोकतंत्र की प्रक्रिया सुरक्षित है।
अॅड. चटप का भी आरोप – 29,000 फर्जी मतदाता
शेतकरी संगठन के पूर्व विधायक अॅड. वामनराव चटप ने भी इस मामले में गंभीर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि पूरे मतदाता क्षेत्र में 29,000 फर्जी मतदाता पंजीकृत किए गए, जिनमें से 6,861 मतदाताओं की नामावली को हटा दिया गया। लेकिन अन्य 20,000 नाम फर्जी पंजीकरण में अब भी मौजूद हैं। चटप का दावा है कि यह मामला केवल कुछ फर्जी नामों का नहीं, बल्कि राजनीतिक साजिश और संगठित मतदाता हेरफेर का संकेत है।
… तो मास्टरमाइंड सुरक्षित रहेंगे
राजुरा का यह मामला सिर्फ फर्जी मतदाता पंजीकरण का नहीं है। यह लोकतंत्र की जड़ों पर हमला, चुनाव आयोग की निष्क्रियता, और राजनीतिक साजिश की पुष्टि करता है। अगर चुनाव आयोग दोषियों की पहचान और गिरफ्तारी में ढिलाई करता है, तो मास्टरमाइंड सुरक्षित रहेंगे और लोकतंत्र पर यह छाया बनती रहेगी।









