करोड़ों का भ्रष्टाचार : 2 माह में कैसे उखड़ गई चंद्रपुर की मुख्य सड़कें ?

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■ सड़कें केवल डामर और बजरी नहीं, बल्कि सरकार की नीयत का है आईना

■ बजट हड़पने और ठेकेदारों-अफसरों के जेब भरने की नीति का हो पर्दाफाश

चंद्रपुर.
चंद्रपुर की मुख्य सड़कों को लेकर अब आम जनता का धैर्य टूटने लगा है। इन घटिया सड़कों को बनाने के लिए करोड़ों का फंड देने वाली सरकार और प्रशासन की जवाबदेही कहां है ? यह अहम सवाल नागरिक पूछने लगे है। चंद्रपुर शहर की मुख्य सड़कों के अलावा जिले के ग्रामीण इलाकों का भी यही हाल है। नागरिकों के गुस्से की वजह साफ है, लाखों करोड़ों रुपये खर्च कर बनाई गई सड़कें पहले ही मानसून में बह गईं। यह केवल खराब सड़कों का मुद्दा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार, निकम्मे प्रशासन और जनता के साथ किए जा रहे खुले धोखे का प्रतीक है।

निकृष्ट काम का नंगा सच
गर्मियों में चंद्रपुर के प्रियदर्शिनी चौक से कस्तुरबा मार्ग और जटपुरा गेट तक दिन-रात डांबरीकरण किया गया। अधिकारियों ने और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने अपना-अपना प्रचार कर बताया कि शहर को “गड्ढा मुक्त” बना दिया गया है। लेकिन कुछ ही हफ्तों की बारिश ने इन दावों की पोल खोल दी। सड़कें उखड़ गईं, गड्ढे फिर से मुंह बाए खड़े हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि सड़क निर्माण का काम केवल औपचारिकता निभाने और बजट हड़पने के लिए किया गया।

करोड़ों की बर्बादी, नागरिकों के लिए खतरा
लाखों-करोड़ों रुपये जनता के टैक्स से खर्च हुए, लेकिन जनता को बदले में क्या मिला ? टूटी सड़के, दुर्घटनाओं का खतरा और गड्ढों से गुजरते वाहन चालकों की जान पर खेल। सड़क निर्माण एजेंसियां और ठेकेदार मोटी कमाई कर सुरक्षित बैठे हैं, जबकि पीड़ा झेलने वाले आम लोग हैं।

प्रशासन का ढुलमुल रवैया
ग्रामीण रस्तों के लिए जिला परिषद, शहर के रस्तों के लिए नगर परिषद और महानगरपालिका, राज्य महामार्ग के लिए सार्वजनिक निर्माण कार्य विभाग, हर स्तर पर जिम्मेदारियां तय हैं। फिर भी जब सड़क टूटती है, जिम्मेदार विभाग शिकायतों को एक-दूसरे पर टालते रहते हैं। सड़कों के हालात और जनता के शिकायतों की अनदेखी ही बताता है कि तंत्र नागरिकों की सुविधा के बजाय खुद को बचाने के रास्ते खोजने में माहिर हो गया है।

जनता के धैर्य की परीक्षा
हर साल यही नाटक दोहराया जाता है। गर्मियों में निर्माण, बारिश में बर्बादी। यह केवल बदइंतजामी नहीं बल्कि लोकतांत्रिक जवाबदेही की हत्या है। जब प्रशासन और ठेकेदार बिना डर के ऐसा घटिया काम कर सकते हैं, तो यह साफ है कि उन पर कोई निगरानी या सख्त दंड का डर नहीं।

अब समय है कठोर कार्रवाई का
1. जिम्मेदारी तय हो – हर टूटी सड़क के लिए ठेकेदार और विभागीय अधिकारी के नाम सार्वजनिक किए जाएं।
2. दंड और वसूली – दोषी ठेकेदारों पर भारी जुर्माना लगे, और बर्बाद हुए धन की वसूली हो।
3. जनता की भागीदारी – नागरिकों को ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से सीधी शिकायत और ट्रैकिंग की सुविधा मिले।
4. गुणवत्ता की स्वतंत्र जांच – हर बड़े निर्माण कार्य की थर्ड-पार्टी ऑडिट अनिवार्य हो।

जनता का हक, जवाबदेही की मांग
चंद्रपुर की सड़कें केवल डामर और बजरी नहीं, बल्कि शासन की नीयत का आईना हैं। जब “ग्रीष्मकाल में सड़क बनती है और बारिश में बह जाती है” जैसी कहावत सच्चाई बन जाए, तो यह केवल मौसम की मार नहीं, बल्कि व्यवस्था की नाकामी है। अगर जनता का रोष अब भी अनसुना रहा, तो यह खामोशी भ्रष्टाचारियों के लिए हरी झंडी साबित होगी। लोकतंत्र में जनता ही सर्वोच्च है, अब समय है कि नागरिक अपनी आवाज और अधिकारों के बल पर प्रशासन को कठघरे में खड़ा करें।

गड्ढों का शहर – चंद्रपुर
चंद्रपुर के नागरिकों की नाराज़गी बेवजह नहीं है। जिन सड़कों पर लाखों रुपये खर्च किए गए, वे केवल दो महीनों में ही गड्ढों में तब्दील हो गईं। यह केवल एक खराब सड़क का मामला नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही, ठेकेदारों की बेईमानी और व्यवस्था की नाकामी का जीता-जागता प्रमाण है।

नई सड़कों पर गिट्‌टी कैसे बिखर गई ?
रस्तों की दुर्दशा ऐसी है कि हर कदम पर खतरा महसूस होता है। दोपहिया और चारपहिया वाहन चालकों को हर रोज़ गिट्टी और गड्ढों से जूझना पड़ रहा है। पैदल चलने वालों के लिए रास्ते अब सुरक्षित नहीं रहे। उन्हें भी गंदे पानी और टूटी सतहों के बीच रास्ता तलाशना पड़ रहा है। इस बरसात के मौसम में स्थिति और भी भयावह हो गई है। छोटे गड्ढे जानलेवा जाल बन गए हैं।

जवाबदेही कहाँ है ?
नागरिकों का सीधा सवाल है कि काम का कॉन्ट्रैक्ट देते समय गुणवत्ता की जांच किसने की ? निगरानी तंत्र क्या कर रहा था ? जब डांबरीकरण दिन-रात किया जा रहा था, तब अधिकारी कहाँ थे ? क्या उन्होंने मौके पर काम की निगरानी की, या केवल फाइलों पर दस्तखत कर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान ली ? हर विभाग जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालता है, लेकिन ठेकेदार और अधिकारी दोनों ही जवाबदेही से बचते हैं।

खानापूर्ति वाले काम का नतीजा
नागरिकों का आरोप है कि डांबर का कम इस्तेमाल किया गया और तकनीकी मानकों की पूरी तरह अनदेखी की गई। कुछ सड़कों का डांबरीकरण तो बारिश की पहली धार में ही बह गया। यह किसी दुर्घटना का नतीजा नहीं बल्कि सोची-समझी लापरवाही का सबूत है। नाली का पानी सड़कों पर जमा हो रहा है, जिससे सड़कें और जल्दी टूट रही हैं। यह दर्शाता है कि ड्रेनेज सिस्टम तक की योजना सही नहीं बनाई गई।

लाखों रुपये पानी में
चंद्रपुर के 2 मुख्य मार्गों पर हुए लाखों रुपये के काम अब गड्ढों का ढेर बन गए हैं। कस्तूरबा मार्ग और जटपुरा मार्ग इन दिनों गड्‌ढे और गिट्‌टी से पटा है। रेत-मिट्‌टी मिश्रित गिट्‌टी बिछाकर इसे पाटने का प्रयास किया जा रहा है। परंतु यह मरम्मत भी बेहद कच्चा है। एक दिन में ही वाहनों के पहिये इस मलबे को पुन: सड़क पर बिखरा देते हैं। यह केवल पैसों की बर्बादी नहीं, बल्कि जनता के विश्वास की भी हत्या है। यदि ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो भ्रष्टाचारियों को यह संकेत जाएगा कि वे बिना डर के जनता के धन से खिलवाड़ कर सकते हैं।

सुधार के लिए ठोस कदम जरूरी
दोषियों के नाम उजागर करें – जिस ठेकेदार और अधिकारी की लापरवाही से सड़कें टूटीं, उनके नाम सार्वजनिक किए जाएं। आर्थिक वसूल और दंड – खर्च हुए धन की वसूली दोषियों से की जाए और उनके भविष्य के कॉन्ट्रैक्ट रद्द हों। जनता की निगरानी – नागरिक समितियों को सड़क निर्माण के निरीक्षण का अधिकार दिया जाए। गुणवत्ता की स्वतंत्र जाँच – हर बड़े निर्माण कार्य की थर्ड-पार्टी ऑडिट अनिवार्य हो। प्रशासनिक सुधार – ड्रेनेज और तकनीकी मानकों को अनदेखा करने वाले अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई हो।

जनता की चुप्पी ही भ्रष्टाचार की ताकत है
चंद्रपुर की सड़कों की यह हालत केवल बरसात या किस्मत का खेल नहीं, बल्कि सिस्टम की मिलीभगत और जवाबदेही की कमी का नतीजा है। अगर आज इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ नहीं उठी, तो कल और बड़े पैमाने पर जनता के धन की लूट होगी। यह समय है जब नागरिक अपने हक के लिए सवाल पूछें और जवाबदेही की मांग करें। क्योंकि लोकतंत्र में असली ताकत जनता के हाथों में होती है, और अगर जनता जागी तो हर बेईमान व्यवस्था झुकने पर मजबूर होगी।