■ राष्ट्रीय कोयला खदान मजदूर संघ (इंटक) हुआ आक्रामक
■ केंद्रीय कोयला मंत्री को सबूतों के साथ भेजी शिकायत
■ सुरक्षा और कल्याण के दावों की पोल खोलती जमीनी तस्वीर
चंद्रपुर.
भारत सरकार की मिनी महारत्न दर्जे की कंपनी वेस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड के चंद्रपुर क्षेत्र की खदानें भ्रष्टाचार में डूबी हैं। जिस कारण यहां के कामगारों का न केवल शोषण हो रहा है बल्कि उनकी और उनके परिवार की जिंदगी खतरे में डाली जा रही है। ऐसे मामलों में आवाज उठाने पर प्रबंधन के कुछ अधिकारी बदले की भावना और गलत नीयत से शिकायतकर्ताओं पर ही कार्रवाई करते हैं, ताकि कोई दोबारा बोलने और शिकायत करने की हिम्मत न कर सकें। यहां भ्रष्टाचार का गंदा खेल खेला जा रहा है। कुछ अधिकारियों ने अपनी नैतिकता, प्रतिष्ठा, इज्जत सभी कुछ नष्ट कर दिया है। कुर्सी की ताकत पर केवल और केवल भ्रष्टाचार में अपने आपको झोंक दिया है। सुधार की सभी कोशिशें अब व्यर्थ हो गई। हालातों को देखते हुए राष्ट्रीय कोयला खदान मजदूर संघ (इंटक) और इस संगठन के महामंत्री के. के. सिंह ने भारत सरकार के कोयला मंत्री और संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों को शिकायत पत्र, वीडियो और तस्वीरें भेजकर इस प्रकरण की शिकायत की है। इसका निराकरण करने एवं दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग भी की है।
प्रमाणों के साथ शिकायत
राष्ट्रीय कोयला खदान मजदूर संघ (इंटक) की ओर से देश के कोयला मंत्री किशन रेड्डी को भेजे गए शिकायत में अनेक गंभीर आरोप लगाए गए है। इस शिकायत पत्र को इंटक नेता के.के. सिंह ने संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा है। नई दिल्ली के कोयला सचिव विक्रम देवदत्त, कोल इंडिया लिमिटेड कोलकाता के अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक पी.एम. प्रसाद, मानव संसाधन निदेशक विजय रंजन, सांसद प्रतीभा धानोरकर, सांसद श्यामकुमार बर्वे, कोल इस्टेट नागपुर के अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक, एच आर निदेशक आदि को प्रमाणों के साथ शिकायत भेजी गई है।
चंद्रपुर की खदानों में कामगारों की दुर्दशा
कोल इंडिया, जिसे देश की “मिनी महारत्न कंपनी” कहा जाता है, करोड़ों रुपये CSR पर खर्च करती है। आसपास के गाँवों, पंचायतों, नगर परिषदों और सरकारों को टैक्स व रॉयल्टी के नाम पर भारी भरकम रकम चुकाती है। कंपनी हर साल सुरक्षा और कामगार कल्याण पर करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा भी करती है। लेकिन वास्तविकता यह है कि खदानों में कार्यरत कामगार और उनके परिवार आज भी असुरक्षित और नारकीय हालात में जी रहे हैं।
भटाड़ी उपक्षेत्र : सबसे बड़ा उत्पादन, सबसे खराब हालात
शिकायत पत्र में विशेष तौर पर वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (WCL) की चंद्रपुर क्षेत्र की भटाड़ी उपक्षेत्र खदान का उल्लेख है। यह क्षेत्र सबसे अधिक कोयला उत्पादन करने वाला है और यहां सबसे बड़ी संख्या में कामगार कार्यरत हैं। लेकिन यहां की कार्य परिस्थितियाँ और सुविधाओं का स्तर इतना खराब है कि इसे “कामगारों की कब्रगाह” कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
कामगारों की सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न
▪ कार्यस्थल तक सुरक्षित रास्ता तक नहीं – सीएचपी के कामगारों के लिए कभी रास्ता बनाया ही नहीं गया। बारिश में लोहे के ड्रम काटकर तात्कालिक रास्ता बना दिया गया है। उस पर से चलते हुए गिरकर चोट लगना आम बात है।
▪ सीढ़ियों से मौत का खतरा – सीएचपी की सीढ़ियों के नीचे 6 फीट का गड्ढा बना है। कभी भी दुर्घटना घट सकती है।
▪ ब्लास्टिंग और रेस्ट शेल्टर की हालत – कामगारों के लिए बने शेल्टर 4×4 फीट के लोहे के पिंजरे जैसे हैं। उनमें बैठने या पानी की कोई व्यवस्था नहीं। इसे कामगार ‘मानवता का अपमान’ बताते हैं।
▪ वर्कशॉप का दलदल – बरसात के दिनों में आधा से तीन-चौथाई फीट तक कीचड़ और पानी भर जाता है। कामगार गिरते-फिसलते रहते हैं, फिर भी उन्हें उसी में काम करना पड़ता है।
▪ असुरक्षित मशीनरी कार्य – डंपरों के डाले का कार्य बिना किसी सुरक्षा सपोर्ट के कराया जाता है।
▪ रोशनी और सुरक्षा का अभाव – खदान में कई जगह अंधेरा रहता है। जहां करोड़ों की मशीनें खड़ी होती हैं, वहां तक कोई सुरक्षा गार्ड मौजूद नहीं होता। चोरी की घटनाएँ लगातार सामने आती हैं।
शौचालय और स्वच्छता का शर्मनाक सच
▪ पुरुषों के लिए बना शौचालय भ्रष्टाचार का शिकार होकर झुक गया और बेकार हो गया।
▪ पुरुष और महिला शौचालय एक ही जगह हैं, लेकिन न वहां रोशनी है और न साफ-सफाई। गंदगी का आलम ऐसा है कि कोई भी वहां जाने से पहले सौ बार सोचता है।
▪ महिलाएँ और पुरुष एक ही रेस्ट शेल्टर का इस्तेमाल करते हैं। महिलाओं की जगह पीछे रखी गई है, जो असुरक्षित और अनुचित है।
महिला कामगारों की पीड़ा
▪ खदान में 50 से अधिक महिलाएँ कार्यरत हैं, लेकिन उनके लिए चेंजिंग रूम तक उपलब्ध नहीं।
▪ मासिक धर्म के दौरान उपयोग के लिए किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं है।
▪ मूवेबल यूरिनल खरीदे तो गए हैं, लेकिन उन्हें लगाया नहीं गया।
▪ इस स्थिति ने महिला कामगारों को शारीरिक और मानसिक रूप से कष्टकारी माहौल में धकेल दिया है।
वर्षों की लड़ाई और प्रबंधन की चुप्पी
कामगार संगठन पिछले पांच साल से इन मुद्दों को प्रबंधन के सामने उठाता आ रहा है। बार-बार निवेदन करने के बावजूद न तो कोई सुधार हुआ और न ही प्रबंधन ने संवेदनशीलता दिखाई। शिकायतकर्ता इंटक नेता के. के. सिंह का कहना है कि 40 वर्षों तक संगठन ने अंदरूनी स्तर पर समाधान खोजने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहने पर मजबूरन भारत सरकार के कोयला मंत्री तक शिकायत ले जानी पड़ी है।
CSR में करोड़ों, लेकिन कामगारों के लिए कुछ नहीं
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब वेकोलि CSR के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, टैक्स और रॉयल्टी भर रही है, तो कामगारों को बुनियादी सुरक्षा और सुविधाएँ क्यों नहीं मिल पा रहीं ?
▪ क्या CSR का पैसा वास्तव में मजदूरों तक पहुँच रहा है या कागजों पर ही खर्च दिखाया जा रहा है ?
▪ क्या उत्पादन और मुनाफा ही कंपनी का एकमात्र मकसद है?
सरकार और प्रशासन की भूमिका संदिग्ध
कामगारों की दुर्दशा केवल कंपनी की लापरवाही से नहीं, बल्कि स्थानीय प्रशासन, ग्राम पंचायत, नगर परिषद, महानगर पालिका और जिला परिषद की निष्क्रियता से भी जुड़ी है। यदि इतना बड़ा उद्योग क्षेत्र के विकास और कल्याण पर खर्च कर रहा है, तो उसका असर मजदूरों की ज़िंदगी में क्यों नहीं दिखता ?
बड़ा सवाल
▪ क्या उत्पादन की अंधी दौड़ में कामगारों की जान दांव पर लगाना जायज़ है ?
▪ क्या भारत सरकार और कोयला मंत्रालय इस मामले में ठोस कदम उठाएंगे ?
▪ क्या भ्रष्टाचार और लापरवाही की परतें खोलकर जिम्मेदारों पर कार्रवाई होगी ?
अंतिम बात
भटाड़ी उपक्षेत्र खदान का यह हाल केवल एक उदाहरण है। यह पूरे कोल सेक्टर की जमीनी हकीकत को सामने लाता है। जिस मजदूर के पसीने से देश की ऊर्जा की जरूरतें पूरी होती हैं, उसे बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं मिलतीं। अब यह सरकार और मंत्रालय की जिम्मेदारी है कि वह केवल कागजों पर नहीं, बल्कि वास्तविकता में सुधार लाए। कामगारों की सुरक्षा और गरिमा के बिना “मिनी महारत्न” का तमगा किसी मायने में सम्मानजनक नहीं ठहर सकता।










