दुकानदारों की कमाई करोड़ों की, फिर भी नहीं करते फायर ऑडिट

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■ चंद्रपुर के इमारत मालिक कर रहे आगरोधी सिस्टम की अनदेखी

■ दुकानें, होटल, दवाखाने हर संस्थान में नियमों का धड़ल्ले से उल्लंघन

चंद्रपुर.
बीते वर्ष भर में चंद्रपुर में आग लगने के कारण करोड़ों का नुकसान हुआ। 25 से अधिक व्यापारी प्रतिष्ठान राख में तब्दील हो गए। लेकिन न तो करोड़ों की कमाई करने वाले इमारतों के मालिकों ने फॉयर ऑडिट को गंभीरता से लिया और न ही चंद्रपुर महानगर पालिका प्रशासन की ओर से इस मसले को गंभीरता से लिया जा रहा है। केवल नोटिस थमाने के इस खेल के कारण करोड़पति व्यापारी वर्ग अपने इमारतों की सुरक्षा को लेकर घोर अनदेखी कर रहे हैं। यदि यही आलम रहा तो एक दिन भयावह हादसे से चंद्रपुर दहल उठेगा, बेकसूर ग्राहकों एवं नागरिकों के जान पर बन आएगी। समय रहते यदि चंद्रपुर के व्यापारियों पर प्रशासनिक शिकंजा कसकर उन्हें आगरोधी सिस्टम बिठाने के लिए मजबूर नहीं किया गया तो दलकल विभाग के वाहन भी आग बुझाने में नाकाम साबित हो जाएंगे। 1,200 से अधिक प्रतिष्ठानों को मनपा प्रशासन ने नोटिस थमाया है, लेकिन इन प्रतिष्ठानों के मालिकों द्वारा मनपा के नोटिस को डस्टबिन भी डाल दिया है। केवल 33 प्रतिष्ठानों ने ही मनपा का एनओसी लिया है, इससे लगता है कि केवल इन्हें ही अपने इमारतों की सुरक्षा की चिंता है। शेष हजारों दुकानें और प्रतिष्ठान तो मानो मनपा को ठेंगा दिखा रहे हैं।

नोटिसों की राजनीति या सचमुच की जिम्मेदारी ?
चंद्रपुर शहर का सच बेहद चौंकाने वाला है। यहां हजारों इमारतें, मॉल, होटल, सिनेमा हॉल और अस्पताल बिना अग्निशमन सुरक्षा के धड़ल्ले से चल रहे हैं। चंद्रपुर महानगर पालिका ने आखिरकार 1,200 प्रतिष्ठानों को नोटिस थमा दिया। लेकिन सवाल यही है कि क्या केवल नोटिस से लोगों की जान बच जाएगी ?

नियम ताक पर, आग से खेलते मालिक
महाराष्ट्र अग्निशमन प्रतिबंधक कानून साफ कहता है कि 15 मीटर ऊँची इमारत हो या 150 वर्ग मीटर से बड़ा प्रतिष्ठान, फायर NOC लेना अनिवार्य है। इसके बावजूद होटल मालिकों, अस्पताल प्रबंधकों और कारोबारी वर्ग ने इस नियम को ठेंगा दिखाया।

महाराष्ट्र अग्निशमन प्रतिबंधक कानून 2006 व 2009 के प्रावधान क्या क्या है ?
महाराष्ट्र अग्निशमन प्रतिबंधक तथा जीवन सुरक्षा उपाय अधिनियम, 2006 और उसके 2009 संशोधन में नागरिक सुरक्षा के लिए कई प्रावधान तय किए गए हैं। इसका उद्देश्य है कि आग लगने से पहले रोकथाम करना और बड़े हादसों को टालना। इसमें आग से सुरक्षा अनिवार्य किया गया है। सभी व्यावसायिक, सार्वजनिक और ऊँची इमारतों में फायर प्रोटेक्शन सिस्टम लगाना ज़रूरी। इसमें स्प्रिंकलर, फायर अलार्म, फायर एक्सटिंग्विशर, आपातकालीन निकासी व्यवस्था, पानी की टंकी और पंप जैसी व्यवस्था शामिल है। साथ ही नई इमारत का नक्शा पास कराने से पहले फायर विभाग से अनुमति (NOC) लेना अनिवार्य है। 15 मीटर से ऊँची या 150 वर्ग मीटर से बड़ी इमारत को NOC लेना ही पड़ेगा। फायर ऑडिट (निरीक्षण) में हर 6 महीने या सालाना आधार पर संबंधित इमारत का फायर सेफ्टी ऑडिट करना ज़रूरी है। ऑडिट रिपोर्ट फायर विभाग को सौंपी जानी चाहिए। इमारत मालिकों की जिम्मेदारी तय की गई है। आग से सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी भवन/संस्थान के मालिक या प्रबंधक की है। लापरवाही पाए जाने पर वही दोषी ठहराया जाएगा।

जुर्माना और दंड का भी है प्रावधान
महाराष्ट्र अग्निशमन प्रतिबंधक तथा जीवन सुरक्षा उपाय अधिनियम, 2006 और उसके 2009 संशोधन में नियम तोड़ने पर जुर्माना और गंभीर लापरवाही पर संस्थान बंद करने तक का प्रावधान है। आग लगने पर यदि सुरक्षा उपकरण न हों तो मालिक पर आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है। वर्ष 2006 के बाद कई हादसों और खामियों को देखते हुए इस कानून में वर्ष 2009 में संशोधन किया गया। इसमें खास तौर पर सख्त दंड का प्रावधान किया गया है। यदि कोई संस्थान सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करता तो उस पर भारी जुर्माना और कारावास का प्रावधान जोड़ा गया है। एनओसी न लेने पर सीधी कार्रवाई का भी प्रावधान है। अगर किसी इमारत ने फायर NOC नहीं ली है, तो नगर निगम/प्राधिकरण को बिजली-पानी काटने और प्रतिष्ठान बंद करने का अधिकार दिया गया। पारदर्शिता के लिए फायर NOC को ऑनलाइन आवेदन और नवीनीकरण प्रक्रिया से जोड़ा गया है। विशेष निगरानी के तहत अस्पताल, मॉल, थिएटर, स्कूल-कॉलेज, गैस गोदाम और आतिशबाज़ी की दुकानों पर विशेष निगरानी की व्यवस्था का प्रावधान है।

जीवन सुरक्षा उपाय है अनिवार्य
कानून में 2009 संशोधन के तहत दंड और कार्रवाई और अधिक सख्त की, साथ ही ऑनलाइन NOC प्रक्रिया शुरू की गई है। अगर किसी इमारत में फायर सेफ्टी नहीं है और हादसा होता है, तो मालिक पर कानूनी केस, भारी जुर्माना और जेल तक का प्रावधान है।

साल भर में 25 आग की घटनाएं और कोई दोषी नहीं ?
चंद्रपुर में बीते साल भर में प्रतिष्ठानों को आग लगने की 25 से अधिक घटनाएं हुई, लेकिन इसे मनपा प्रशासन की लापरहवाही ही कही जा सकती है कि संबंधित कानून के तहत किसी भी व्यापारी के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की गई। किसी को इस आग की घटनाओं के लिए दोषी करार नहीं दिया गया। हालांकि यह गनीमत रही कि किसी की जान नहीं गई, लेकिन संपत्ति का नुकसान तो हुआ ही है। यह घटनाएँ इस लापरवाही की पोल खोलती हैं कि व्यापारी वर्ग को सिर्फ मुनाफा चाहिए, नागरिकों की सुरक्षा नहीं।

प्रशासन भी बराबर का दोषी
चंद्रपुर महानगर पालिका ने अब जाकर केवल नोटिस थमा रहे है। सवाल उठता है कि इतने सालों तक प्रशासन सो रहा था क्या ? जब केवल 33 संस्थानों ने ही NOC ली, तो बाकियों पर कार्रवाई पहले क्यों नहीं हुई ? ऑनलाइन सुविधा देने के बाद भी प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं कराया गया ? यह साफ है कि प्रशासन भी अपने कर्तव्य से बचता रहा। और जब हादसे बढ़ने लगे तो नोटिस थमाकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।

मौत का इंतज़ार मत कीजिए
क्या हम हमेशा यही चाहेंगे कि कोई बड़ी आग लगे, लोग दम तोड़ें और फिर शासन-प्रशासन जागे? स्थानीय निजी अस्पतालों में हजारों की संख्या में मरीज भर्ती रहते हैं। सिनेमा हॉल में हजारों की संख्या में दर्शक मौजूद रहते हैं। मॉल में भी हजारों की संख्या में ग्राहक मौजूद रहते हैं। होटलों और लॉजों में लोग अपने परिवारों के साथ नजर आते हैं। इन सबकी जान हर पल खतरे में है। फायर सुरक्षा का अभाव किसी भी दिन सामूहिक त्रासदी को जन्म दे सकता है।

नोटिस से आगे बढ़कर कार्रवाई ज़रूरी
नोटिसें सिर्फ कागज़ी कार्रवाई हैं। अब वक्त है कि जिन प्रतिष्ठानों ने NOC नहीं ली है, उनकी बिजली-पानी तुरंत काटी जाए। बिना अग्निशमन उपकरण वाले अस्पताल, होटल और मॉल पर ताला जड़ा जाए। भारी-भरकम जुर्माना वसूलकर इसे नज़ीर बनाया जाए। चंद्रपुर की तस्वीर सिर्फ चंद्रपुर तक सीमित नहीं है, यह पूरे देश की बीमारी है। सुरक्षा नियम बनाए जाते हैं, लेकिन पालन कोई नहीं करता। प्रशासन आंख मूंदे बैठा रहता है और व्यापारी मुनाफे के नशे में चूर रहते हैं। यह सीधी-सीधी नागरिक सुरक्षा से खिलवाड़ है। यदि प्रशासन ने सख्ती नहीं दिखाई, तो चंद्रपुर की अगली आग किसी बड़ी त्रासदी में बदल सकती है। सवाल साफ है – क्या हम तब तक इंतजार करेंगे जब तक किसी के शव राख में तब्दील न हो जाएँ ?

प्रशासन की चेतावनी और उदासीन व्यवस्था
चंद्रपुर शहर में आग सुरक्षा को लेकर हालात चिंताजनक हैं। मनपा ने हाल ही में 1,200 से अधिक प्रतिष्ठानों को नोटिस जारी किया है, क्योंकि उन्होंने अग्निशमन विभाग की अनुमति (No Objection Certificate – NOC) और आवश्यक सुरक्षा उपकरण लगाने की अनिवार्यता को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया।

नियम ताक पर, जान जोखिम में
महाराष्ट्र अग्निशमन प्रतिबंधक कानून 2006 और 2009 के तहत किसी भी इमारत, मॉल, अस्पताल, होटल, लॉज, सिनेमा हॉल, मंगल कार्यालय, गैस गोदाम और आतिशबाज़ी की दुकानों में अग्निशमन यंत्रणा लगाना और हर छह महीने पर फायर ऑडिट कराना अनिवार्य है। 15 मीटर से ऊँची इमारतें और 150 वर्ग मीटर से बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को फायर NOC लेना ही पड़ता है। लेकिन सिर्फ 33 संस्थानों ने ही पिछले साल एनओसी ली, जबकि हजारों आस्थापन बिना सुरक्षा उपायों के चल रहे हैं।