■ घुग्घुस भूस्खलन : अधर में अटकें आशियाने
■ भूल गए तमाम वादें, WCL व जिला प्रशासन बेफिक्र
चंद्रपुर.
दिन था 26 अगस्त 2022। अचानक एक मकान धंस गया। 70 फीट गहरे गड्ढे में समा गया। भूस्खलन से समूची बस्ती थर्राई। घुग्घुस के अमराई वार्ड में घटित इस भयावह हादसे ने WCL प्रशासन के लापरवाही की पोल खोल दी। भूमिगत खदानों में रेत व मिट्टी से सुरंगों को भरने में बरती गई लापरवाही के चलते सैंकड़ों नागरिकों का जीवन संकट में ला दिया। आनन-फानन में तमाम दलों ने नेता घटना स्थल पर पहुंच गये। पीड़ित परिवार को सहायता राशि दिलाई गई। 6 माह तक 169 परिवारों को स्थलांतरण और किराया दिलाने की खबरों से मीडिया में सुर्खियां बटोरी गई। प्रकरण ठंडा पड़ गया और सभी चीरनिद्रा में चले गए। अब न तो पीड़ित परिवारों को आवास मिला है और न ही स्थलांतरण का किराया जारी है। लगता है कि प्रशासन 3 साल बाद इतना बेफिक्र हो गया है कि पुन: किसी नये हादसे की प्रतीक्षा कर रहा हो।
नहीं मिला घुग्घुस भूस्खलन पीड़ितों को हक़ का घर
हादसे के चंद माह बाद अर्थात 14 फरवरी 2022 के दौरान घुग्घुस के आमराई वार्ड के वासियों की दखल लेते हुए भूस्खलन के कारण विस्थापित हुए 169 परिवारों को स्थायी आशियाना दिलाने के लिए एक विशेष बैठक आयोजित की गई। पूर्व पालकमंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने जिलाधिकारी को निर्देश दिए हैं कि प्रभावित परिवारों को तुरंत वैकल्पिक ज़मीन उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। लेकिन हैरत की बात है कि 3 साल बीतने के बावजूद जिला प्रशासन इन विस्थापित 169 परिवारों को उनके हक का घर नहीं दिला पाया।
भूस्खलन की घटना को भूल गया प्रशासन
26 अगस्त 2022 को आमराई वार्ड में भूस्खलन हुआ था। सौभाग्य से इसमें कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन कोयला खदानों के चलते इलाके में घरों पर आज भी खतरा हमेशा बना रहता है। इसी वजह से हादसे के तुरंत बाद 169 परिवारों को अन्यत्र शिफ्ट किया गया था। परंतु इन परिवारों का स्थायी समाधान आज तक नहीं निकाला जा सका।
बैठक में लिए गए बड़े फैसले नदारद
पुनर्वास की समीक्षा बैठक जिला प्रशासन के नियोजन सभागार में हुई। निर्णय लिया गया कि इन परिवारों को वेकोलि(Western Coalfields Limited) की ओर से तुरंत छह महीने का घरभाड़ा दिया जाएगा। यदि राशि देने में टालमटोल हुई तो प्रशासन कंपनी का काम बंद करने का आदेश देगा। प्रभावित परिवारों के लिए ज़िला प्रशासन घर के लिए ज़मीन का ले-आउट तय करेगा और उसमें सड़क, पानी, बिजली जैसी सुविधाएं दी जाएंगी। इस बस्ती को एक आदर्श नगरी के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई है। कितने परिवार रमाई आवास, शबरी आवास, महाप्रीत योजना और यशवंतराव चव्हाण मुक्त वसाहत योजना के तहत पात्र हैं, इसकी भी जांच होगी।
पहले दी मदद, बाद में की उपेक्षा
घटना के महज़ 8 दिन बाद ही पूर्व पालकमंत्री की पहल पर प्रत्येक परिवार को मुख्यमंत्री सहायता निधि से 10 हज़ार रुपये की आर्थिक सहायता और ज़रूरी सामान की किट दी गई थी। बैठक में मौजूद प्रमुख लोगों ने वाहवाही बटोरी। मीडिया ने खबरें प्रकाशित हुई। लोगों ने राहत की सांस ली। परंतु कुछ ही माह में सब हवा-हवाई हो गया। अब इस बैठक में शामिल भाजपा के पूर्व ज़िलाध्यक्ष देवराव भोंगले राजुरा के विधायक बन चुके हैं। पूर्व महानगर ज़िलाध्यक्ष डॉ. मंगेश गुलवाडे भी इस विषय पर खामोश है। ज़िलाधिकारी विनय गौड़ा इस मसले पर कोई बैठक लेते हुए नजर नहीं आते। जबकि पूर्व पालकमंत्री मुनगंटीवार ने स्पष्ट चेतावनी दी थी कि “भूस्खलन पीड़ितों के पुनर्वास में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
70 फीट गहरे गड्ढे में समा जाएगा फिर कोई आशियाना ?
अमराई वार्ड निवासी गजानन मडावी का घर 26 अगस्त 2022 को हुए हादसे में पूरे सामान सहित करीब 70 फीट गहरे गड्ढे में समा गया था। सौभाग्य से उस वक्त घर में कोई मौजूद नहीं था, जिससे जनहानि नहीं हुई। लेकिन हादसे के बाद बेघर हुए मडावी को आज 3 साल बीत जाने पर भी अपना घर नसीब नहीं हुआ।
आश्वासन बहुत, हकीकत कुछ नहीं
हादसे के बाद पूर्व पालकमंत्री सुधीर मुनगंटीवार, विधायक किशोर जोरगेवार, वेकोलि के वरिष्ठ अधिकारी और प्रशासनिक अमला मौके पर पहुंचा था। मुआयना कर पीड़ित को मुआवज़ा और घर दिलाने का आश्वासन दिया गया था। नाम के लिए परिवार को वेकोलि के क्वार्टर में शिफ्ट कर दिया गया, लेकिन स्थायी घर अब तक नहीं मिला। शासन और प्रशासन के वादों से परिवार की उम्मीदें टूटी पड़ी हैं।
कहां गायब हो गई ‘आप’ की चेतावनी ?
आम आदमी पार्टी (आप) ने तत्कालीन नायब तहसीलदार राजू धांडे से मुलाकात कर मांग की कि मडावी को तुरंत घर उपलब्ध कराया जाए। आप पदाधिकारियों ने साफ कहा था कि – “एक साल बाद भी पीड़ित को ठोस मदद न मिलना निंदनीय है। यदि प्रशासन ने कदम नहीं उठाया तो आंदोलन किया जाएगा।” लेकिन अब तो 3 साल बीत गए, आप पार्टी के पदाधिकारी अब इस विषय पर चुप्पी साधकर बैठ गए हैं। पदाधिकारी मयूर राइकवार, भीवराज सोनी, सुनील मुसले, राजू कुडे, अमित बोरकर, विकास खाडे, सिरसागर, संदीप पथाडे, आशीष पाझारे, रवि शांतलावार, प्रशांत सेना, पूनम वर्मा आदि की मौजूदगी में किए गए दावे आज नदारद हैं।
क्या वादे कैमरे के सामने ही चमते है ?
सरकार और प्रशासन की लापरवाही से पीड़ित परिवारों को आज भी बेघर रहना पड़ रहा है। सवाल उठता है कि क्या वादे सिर्फ कैमरे के सामने किए जाते हैं? या वाकई बेघर परिवारों को कभी इंसाफ मिलेगा ?










