भारत की स्वतंत्रता और आत्मसम्मान का सवाल

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संपादकीय:

“अबकी बार ट्रंप सरकार” का नारा सिर्फ एक जुमला नहीं था। यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को कमजोर करने वाला एक प्रहार था। यह नारा उस सोच को दिखाता है, जो भारत को एक स्वाभिमानी और संप्रभु राष्ट्र की बजाय किसी विदेशी ताकत के सामने झुकने को मजबूर करती है। यह सिर्फ एक विदेशी नेता का समर्थन नहीं था, बल्कि भारत की उस नीति पर हमला था, जिसने हमें कभी किसी के सामने नहीं झुकने दिया। इस नारे ने भारत के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई और सवाल उठाया कि क्या हम वाकई उस स्वतंत्र भारत के लिए लड़ रहे हैं, जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने बलिदान दिया था?

भारत की विदेश नीति हमेशा से गुटनिरपेक्षता पर आधारित रही है। स्वतंत्रता के बाद, जब दुनिया अमेरिका और सोवियत संघ के बीच बंटी थी, तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई। इस नीति ने भारत को दोनों महाशक्तियों के दबाव से बचाया। इसने हमें वैश्विक मंच पर एक अलग और सम्मानित पहचान दी। हम न तो अमेरिका के साथ थे, न सोवियत संघ के। हम अपने फैसले खुद लेते थे।

आज जब “नेहरू-विरोध” की बात होती है3, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति का विरोध नहीं है। यह उस सोच का विरोध है, जो भारत को आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी बनाना चाहती थी। यह उस नीति का विरोध है, जिसने हमें 1962 में चीन के खिलाफ युद्ध हारने के बावजूद झुकने से रोका। हम हारे, लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी। हम लड़े, और फिर उठ खड़े हुए। लेकिन आज, हम बिना लड़े ही कुछ विदेशी ताकतों के सामने झुक रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप का भारत के लिए “सीज़फायर” की बात करना सिर्फ एक बयान नहीं था। यह हमारे संविधान पर हमला था, जिसमें लिखा है कि भारत एक “संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न” राष्ट्र है। इसका मतलब है कि कोई दूसरा देश हमें यह नहीं बता सकता कि हमें क्या करना है।

सवाल यह है कि ट्रंप को इतनी हिम्मत कैसे मिली? क्यों वह बार-बार भारत के आत्मसम्मान का मजाक उड़ा सका? जवाब उस तस्वीर में है, जहां भारत का नेतृत्व एक विदेशी नेता के प्रचार का हिस्सा बन गया। यह दृश्य भारत के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है। यह दिखाता है कि हम अपनी स्वतंत्रता को कितनी हल्के में लेने लगे हैं। क्या हम वही भारत हैं, जिसके लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने बलिदान दिया था? या हम ऐसी राह पर हैं, जहां हमारे फैसले किसी विदेशी ताकत के इशारे पर होने लगे हैं?

ट्रंप का बयान सिर्फ एक बयान नहीं था। यह हमारी कमजोरी को दिखाता है। यह बताता है कि हमने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को कमजोर होने दिया। हमारी गुटनिरपेक्षता, जो हमारी ताकत थी, आज कमजोर पड़ती दिख रही है। यह वह नीति थी, जिसने हमें कभी किसी के सामने झुकने नहीं दिया। लेकिन आज, जब एक विदेशी नेता हमारे देश की नीतियों पर टिप्पणी करता है, और हम चुप रहते हैं, तो यह हमारी स्वतंत्रता पर सवाल उठाता है।

जब हमारा संविधान बना, तो उसमें लिखा गया कि भारत एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र है। इसका मतलब है कि हम अपने फैसले खुद लेंगे। कोई दूसरा देश हमें नहीं बता सकता कि हमें क्या करना है। लेकिन जब ट्रंप जैसे नेता हमारी नीतियों पर टिप्पणी करते हैं, और हम कुछ नहीं कहते, तो यह उस संकल्प का अपमान है। यह दिखाता है कि हम अपनी स्वतंत्रता को हल्के में ले रहे हैं।

1962 का युद्ध हमारी हार का प्रतीक हो सकता है, लेकिन यह हमारी हिम्मत का भी प्रतीक है। हमने उस हार से सबक लिया। हमने अपनी सेना को मजबूत किया और 1971 में बांग्लादेश युद्ध में अपनी ताकत दिखाई। यह हमारी इच्छाशक्ति थी। लेकिन आज, जब हम बिना लड़े झुक रहे हैं, तो यह हमारी उस इच्छाशक्ति पर सवाल उठाता है।

ट्रंप का दुस्साहस सिर्फ एक व्यक्ति की हिम्मत नहीं है। यह हमारी कमजोरियों का परिणाम है। हमने अपनी विदेश नीति को कमजोर होने दिया। हमने गुटनिरपेक्षता को “पुराना” और “बेकार” समझना शुरू कर दिया। लेकिन सच्चाई यह है कि गुटनिरपेक्षता आज भी उतनी ही जरूरी है। आज का विश्व भले ही शीत युद्ध के दौर से अलग हो, लेकिन वैश्विक शक्तियों का दबदबा अब भी है। अमेरिका, चीन और अन्य ताकतें आज भी अपने हितों को थोपने की कोशिश करती हैं। ऐसे में, भारत जैसे देश के लिए अपनी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान की रक्षा करना और भी जरूरी है।

यह समय आत्ममंथन का है। भारत को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को फिर से मजबूत करना होगा। हमें गुटनिरपेक्षता और आत्मनिर्भरता को अपनाना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी संप्रभुता पर कोई सवाल न उठे। इसके लिए हमें कुछ कदम उठाने होंगे। पहला, हमें अपनी विदेश नीति में अपने हितों को प्राथमिकता देनी होगी। किसी विदेशी देश के एजेंडे को नहीं अपनाना होगा। दूसरा, हमें रक्षा, प्रौद्योगिकी और नीतियों में आत्मनिर्भर बनना होगा। हमें अपनी ताकत पर भरोसा करना होगा। तीसरा, हमें संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर अपनी आवाज को और सशक्त करना होगा। हमें उन देशों के साथ गठबंधन करना होगा, जो हमारी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं। चौथा, जनता को यह समझना होगा कि स्वतंत्रता सिर्फ कानूनी स्थिति नहीं है। यह हमारा आत्मसम्मान है। हमें अपने नेतृत्व से यह अपेक्षा करनी होगी कि वे हमारी संप्रभुता की रक्षा करें।

भारत का भविष्य हमारी इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। हमें यह तय करना होगा कि हम कैसा भारत चाहते हैं। क्या हम एक ऐसा भारत चाहते हैं, जो विदेशी ताकतों के सामने झुके? या हम एक ऐसा भारत चाहते हैं, जो स्वतंत्र, स्वाभिमानी और सशक्त हो? यह सवाल केवल नेतृत्व के लिए नहीं, बल्कि हर भारतीय के लिए है। हमें अपनी स्वतंत्रता के मूल्यों को फिर से याद करना होगा। हमें उस भारत को फिर से बनाना होगा, जो न केवल स्वतंत्र हो, बल्कि वैश्विक मंच पर सम्मानित भी हो। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी विदेशी नेता हमारे आत्मसम्मान का मजाक न उड़ा सके। इसके लिए हमें अपनी नीतियों को मजबूत करना होगा, अपनी इच्छाशक्ति को जागृत करना होगा, और अपनी स्वतंत्रता को सबसे ऊपर रखना होगा।

“अबकी बार ट्रंप सरकार” का नारा एक चेतावनी है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान को हल्के में नहीं लिया जा सकता। ट्रंप का दुस्साहस हमारी कमजोरियों का परिणाम है। हमें यह पूछना होगा कि हमने उन्हें ऐसा कहने की हिम्मत क्यों दी? जवाब हमारी नीतियों और नेतृत्व में है। यह समय है कि हम अपने संविधान को फिर से पढ़ें। हमें उस स्वतंत्र, स्वाभिमानी भारत का निर्माण करना है, जो न केवल वैश्विक मंच पर सम्मानित हो, बल्कि अपनी संप्रभुता की रक्षा भी कर सके। यह हमारा अधिकार है, और इसे हासिल करने के लिए हमें फिर से अपनी इच्छाशक्ति को जागृत करना होगा। हमें उस भारत को फिर से बनाना है, जो न केवल अपने इतिहास पर गर्व करे, बल्कि अपने भविष्य को भी अपने हाथों में ले। यह समय है कि हम अपनी स्वतंत्रता को सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि अपने कार्यों में भी साबित करें।