■ 30 जून को ‘चंद्रपुर की बुलंद आवाज’ द्वारा किया गया दावा सच निकला
चंद्रपुर.
गड़चिरोली और चंद्रपुर जिले के लाखों विद्यार्थियों पर एक विशेष विचारधारा को थोपने की नीति गोंडवाना विश्वविद्यालय की ओर से अपनाए जाने की आशंका जताते हुए गत 30 जून 2025 को ‘चंद्रपुर की बुलंद आवाज’ डिजिटल मीडिया और अखबार के माध्यम से समाचार प्रकाशित कर शिक्षा क्षेत्र में खलबली मचा दी थी। इसके बाद अब ताजा मामले ने इस तथ्य को साबित कर दिया है कि गोंडवाना विद्यापीठ में ‘मनुवाद’ हावी हो चुका है। भले ही जागृत नागरिकों एवं शिक्षाविदों द्वारा किए गए विरोध के चलते गोंडवाना विवि को झूकना पड़ा और फिलहाल मनुवाद से संबंधित पाठ्यक्रम की सामग्री को हटाने का फैसला लेना पड़ा। इस संदर्भ में एक मराठी अखबार ने विस्तार से समाचार प्रकाशित कर ताजा मामले को उजागर किया है।
■ विद्यापीठ कर रहा संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन
ज्ञात हो कि गत 30 जून के पूर्व गोंडवाना विश्वविद्यालय को एक खास विचारधारा का समर्थक होने और उससे संबंधित आयोजनों में व्यस्त होने का दावा किया गया था। जब हमने पड़ताल की तो ज्ञात हुआ कि गोंडवाना विवि RSS और भाजपा की विचारधारा से संबंधित कार्यक्रमों में सहआयोजक बनकर अपने संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन करता हुआ नजर आ आया। इस बीच सिनेट मेंबर एवं संभाजी ब्रिगेड के अध्यक्ष दिलीप चौधरी ने दावा किया था कि गोंडवाना के छात्रों के लिए सूझाये गये अनेक उपक्रमों को शुरू करने के लिए कुलगुरु के पास वक्त नहीं है। वहीं बेकार की गतिविधियों में वे समय गंवा रहे हैं। सिनेट में विरोध किया जाता है, किंतु संख्या बल के आधार पर गलत फैसले लिये जा रहे हैं। इस विवि को एक खास विचारधारा की प्रयोगशाला बनाने और आर्थिक लूट मचाने का स्थल बनाया गया है। विद्यार्थी, अभिभावक व शिक्षा क्षेत्र के लोगों को दखल लेकर इस विवि को बचाना होगा, वरना इसकी बर्बादी तय है। वहीं दूसरी ओर गोंडवाना विवि की साख इतनी गिर चुकी है कि बड़े शहरों में इसकी डिग्री की कोई कीमत नहीं रह गई है। बड़ी संख्या में क्षेत्र के विद्यार्थी पलायन कर बड़े शहरों के कॉलेजों में दाखिला ले रहे हैं। वहीं स्थानीय कॉलेजों को अब एजेंट नियुक्त कर छात्र जुटाने की नौबत आ गई है।
■ अब ताजे मामले में ‘मनू’ ऋषि को बताया राजनीतिक विचारवंत
एक मराठी अखबार ने गोंडवाना विवि पर मनुवाद कैसे हावी हुआ, इसकी पोल खोल दी है। विस्तृत जानकारी के अनुसार –
📚 गोंडवाना विवि विवाद : विरोध के बाद बदलना पड़ा पाठ्यक्रम
➤ राज्यशास्त्र पाठ्यक्रम में बदलाव पर उठा बवंडर, कुलगुरु ने किया हस्तक्षेप
🔍 क्या था मामला ?
➤ गडचिरोली स्थित गोंडवाना विश्वविद्यालय में बी.ए. तृतीय सत्र के राज्यशास्त्र (Political Science) विषय के नए पाठ्यक्रम में प्राचीन विचारकों में – मनू, भीष्म, और बृहस्पति के राजनीतिक विचारों को शामिल किया गया था।
➤ जैसे ही यह बात सामने आई, बीते शुक्रवार को दिनभर विरोध की लहर उठी
➤ सोशल मीडिया से लेकर शिक्षाविदों और सामाजिक संगठनों तक से।
➤ आलोचना इतनी तीव्र थी कि कुलगुरु डॉ. प्रशांत बोकारे ने अपने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए विवादित भागों को पाठ्यक्रम से हटाने का निर्णय लिया।
📌 पाठ्यक्रम में किन विचारों को शामिल किया गया था ?
➤ मनु स्मृति के लेखक मनु को राज्य की स्थापना, न्याय और राजधर्म से संबंधित विचारों के लिए पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था।
➤ महाभारत के भीष्म के शांति पर्व में वर्णित राजनीतिक दर्शन और राजधर्म को पढ़ाया जाना था।
➤ बृहस्पति स्मृति और शुक्रनीति के लेखक बृहस्पति और शुक्र के राजनीतिक सिद्धांत, सत्ता की आलोचना और शासकीय कर्तव्यों पर विचार भी पाठ्यक्रम का हिस्सा थे।
⚡ क्यों हुआ विरोध ?
🔹 मनुस्मृति को भारत के बहुजन समाज, दलित और आदिवासी वर्ग लंबे समय से जातिगत भेदभाव और अमानवीय व्यवस्था का प्रतीक मानते हैं।
🔹 विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में ऐसे विचारकों को “राजनीतिक विचारक” के रूप में शामिल करना, भारतीय संविधान के मूल्यों के खिलाफ बताया गया।
🔹 शिक्षा के विशेषज्ञों और समाज के जागरूक वर्ग ने यह कहा कि शिक्षा आने वाली पीढ़ियों का निर्माण करती है, ऐसे में विभाजनकारी विचारों को पढ़ाना उचित नहीं है।
📣 प्रमुख प्रतिक्रियाएं
🗣️ डॉ. दिलीप चौधरी, अधिसभा सदस्य, गोंडवाना विश्वविद्यालय :
➤ “किसी भी विषय का पाठ्यक्रम आने वाली पीढ़ियों का भविष्य बनाता है। ऐसे में जो विचार बहुसंख्यक नागरिकों की मानवता को नकारते हैं, उनका समावेश करना गलत है। यह भारतीय संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।”
🗣️ डॉ. प्रशांत बोकारे, कुलगुरु, गोंडवाना विश्वविद्यालय :
➤ “पाठ्यक्रम अध्ययन मंडल द्वारा बनाया गया था, लेकिन जैसे ही विश्वविद्यालय प्रशासन को इस पर आपत्ति की जानकारी मिली, विशेषाधिकार का उपयोग कर विवादित हिस्सों को तुरंत हटा दिया गया।”
🧾 पृष्ठभूमि : नया शैक्षणिक ढांचा
✔️ महाराष्ट्र के सभी गैर-कृषि विश्वविद्यालयों में 2024 से नया शैक्षणिक ढांचा लागू किया जा रहा है।
✔️ इसी के तहत, गोंडवाना विश्वविद्यालय के राज्यशास्त्र विभाग ने बी.ए. तृतीय सत्र के लिए नया पाठ्यक्रम तैयार किया था।
✔️ परंतु, सामाजिक संवेदनशीलता और संविधान की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण नामों को पाठ्यक्रम में शामिल करना भारी पड़ गया।
🔚 अंतिम बात :
➤ यह मामला यह स्पष्ट करता है कि पाठ्यक्रम का निर्माण केवल विद्वता का नहीं, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व का भी विषय है।
➤ जिस शिक्षा से संविधानिक मूल्यों, समता, और न्याय की भावना पैदा होनी चाहिए, यदि उसमें विवादास्पद और भेदभावपूर्ण विचारकों को शामिल किया जाए तो यह समाज की एकता और शिक्षा की गरिमा पर सीधा प्रहार है।
➤ गोंडवाना विश्वविद्यालय का यह कदम सावधानी और जवाबदेही का उदाहरण है, जो अन्य विश्वविद्यालयों के लिए भी एक संदेश हो सकता है।










