■ चाहिए 2,204 डॉक्टर और है महज 666
चंद्रपुर.
औद्योगिक जिले के रूप में प्रसिद्ध चंद्रपुर जिले में जहां एक ओर कृषि मुख्य व्यवसाय है, वहीं दूसरी ओर उद्योगों की भरमार के कारण मजदूरों की संख्या भी अधिक हैं। गरीब, ग्रामीण, किसान, खेत मजदूर, औद्योगिक मजदूर आदि नागरिक आज भी सरकारी अस्पतालों के इलाज पर निर्भर हैं। इनके लिए महंगा और निजी अस्पतालों का इलाज ले पाना संभाव नहीं है। हैरत की बात यह है कि चंद्रपुर जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले जनप्रतिनिधि, नेता, स्थानीय विधायक, सांसद, जिला परिषद सदस्य, महानगर पालिका के पार्षद, नगर परिषदों के नगरसेवक आदि गरीब जनता को उत्तम स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में नाकाम साबित हो रहे हैं। इन जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते आज भी चंद्रपुर जिले में बड़ी संख्या में चिकित्सकों की कमी है। सरकार से पर्याप्त संख्या में डॉक्टरों को नियुक्त कराने में जिले के नेतागण फेल ही साबित हो रहे हैं। वर्तमान में जिले में 1538 डॉक्टरों की कमी है। इस विषय पर कोई नेता मुखर होकर आवाज नहीं उठा पा रहा है।
■ WHO के मापदंड से कोसों दूर हैं हम
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानदंड के अनुसार हर 1,000 जनसंख्या पर कम से कम 1 डॉक्टर होना चाहिए। यानी 1:1000 का अनुपात आदर्श माना जाता है। इसका अर्थ है कि 1,000 लोगों की स्वास्थ्य सेवा के लिए कम से कम 1 डॉक्टर होना आवश्यक है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार चंद्रपुर जिले की कुल जनसंख्या 22 लाख 04 हजार 307 हैं। इस हिसाब से तो जिले में करीब 2,204 डॉक्टरों की संख्या होनी चाहिये। परंतु हमारे जिले में वर्तमान में डॉक्टर और वैद्य मिलाकर कुल 666 चिकित्सक ही मौजूद हैं। अर्थात आज भी 1538 डॉक्टरों की यहां कमी हैं।
■ साल भर में मर जाते हैं 418 बच्चे
हमने गत वर्ष शून्य से 5 उम्र के बच्चों की मरने की रिपोर्ट पर गौर किया तो ज्ञात हुआ कि यहां तो साल भर में 418 बच्चे दम तोड़ देते हैं। अब जब हमारे जनप्रतिनिधि हर समय मीडिया और बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर चमकते रहते हैं तो इस जरूरी मुद्दे पर उनका ध्यानाकर्षण कराना जरूरी बन जाता है। जिले की जर्जर हो चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था और डॉक्टरों की कमी के चलते हजारों-लाखों मरीजों का जो बुरा हाल हो रहा है, उसे देखते हुए जनप्रतिनिधियों की कार्य कुशलता पर सवाल उठना लाजिम है।
■ डॉक्टरों के अभाव में मरीज बेहाल
जितनी संख्या में चंद्रपुर जिले में डॉक्टर होने चाहिए, उतने हैं नहीं। ऐसे में गरीब और बीमार मरीजों को समय पर उचित इलाज मिल नहीं पाता है। डॉक्टर और उपचार के इंतजार का खामियाजा यहां की जनता को भुगतना पड़ रहा है। मरीजों की लंबी कतार के चलते डॉक्टर भी हर मरीज पर अपना ध्यान केंद्रीत नहीं कर पाते हैं। समय पर कार्य निपटाने के दबाव के चलते चंद पलों में ही मरीजों का स्वास्थ्य देखकर उनका इलाज किया जाता है। नतीजा यह होता है कि अक्सर गरीब मरीजों का सही ढंग से इलाज नहीं हो पाता है। उपयुक्त इलाज नहीं मिलने पर अनेक मरीज दम तोड़ देते हैं। प्रशासनिक खामियों और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के चलते मरने वाले मरीजों की मौत के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है ? इस बात को जिले के जनप्रतिनिधियों ने गंभीरता से सोचना चाहिए।
■ प्राइवेट अस्पतालों की संख्या बढ़ रही फिर भी जनप्रतिनिधि खामोश
आम गरीब जनता को आज भी जिले के सरकारी अस्पतालों में उचित स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। यही वजह है कि दिन-ब-दिन प्राइवेट अस्पतालों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। मरता क्या न करता, इसी तर्ज पर लोग कर्ज में डूबकर अपने प्रियजनों के प्राण बचाने के लिए निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं। जिले में जहां सरकारी अस्पतालों में संख्या महज 14 हैं, वहीं निजी अस्पतालों की संख्या 173 हैं। सरकारी दवाखाने जिले में केवल 32 है और जबकि प्राइवेट डॉक्टरों के दवाखानों की संख्या 116 से अधिक हो गये हैं। निजी डॉक्टरों की अर्थ पूर्ण सेवा के बावजूद उनके पास 3662 बेड की सुविधाओं पर मरीज अपना इलाज करा रहे हैं, जबकि लाखों गरीब मरीजों के लिए चंद्रपुर जिले में केवल 2590 बेड ही उपलब्ध हैं। ऐसी बदहाली को देखकर हमें शर्म आनी चाहिये कि हम, हमारी सरकार, हमारा प्रशासन गरीबों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में कितना पिछड़ रहा है। इन हालातों को देखते हुए जिले के जनप्रतिनिधि चुप्पी साधे बैठे हैं। ऐसे में इनकी निष्क्रियता पर सवाल क्यों नहीं उठाया जाना चाहिये ?