RSS विचारधारा की प्रयोगशाला बन गया गोंडवाना विश्वविद्यालय

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■ बड़े शहरों में गोंडवाना की डिग्री की कोई कीमत नहीं

■ सिनेट मेंबर दिलीप चौधरी ने आर्थिक लूट पर किया प्रहार

चंद्रपुर.
एक मीडिया रिपोर्ट में गोंडवाना विश्वविद्यालय को एक खास विचारधारा का समर्थक होने और उससे संबंधित आयोजनों में व्यस्त होने का दावा किया गया है। जब हमने पड़ताल की तो ज्ञात हुआ कि गोंडवाना विवि इन दिनों RSS और भाजपा की विचारधारा से संबंधित कार्यक्रमों में सहआयोजक बनकर अपने संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन करता हुआ नजर आ रहा है। वहीं दूसरी ओर गोंडवाना विवि की साख इतनी गिर चुकी है कि बड़े शहरों में इसकी डिग्री की कोई कीमत नहीं रह गई है। बड़ी संख्या में क्षेत्र के विद्यार्थी पलायन कर बड़े शहरों के कॉलेजों में दाखिला ले रहे हैं। वहीं स्थानीय कॉलेजों को अब एजेंट नियुक्त कर छात्र जुटाने की नौबत आ गई है। इस बीच सिनेट मेंबर एवं संभाजी ब्रिगेड के अध्यक्ष दिलीप चौधरी ने दावा किया है कि गोंडवाना के छात्रों के लिए सूझाये गये अनेक उपक्रमों को शुरू करने के लिए कुलगुरु के पास वक्त नहीं है। वहीं बेकार की गतिविधियों में वे समय गंवा रहे हैं। सिनेट में विरोध किया जाता है, किंतु संख्या बल के आधार पर गलत फैसले लिये जा रहे हैं। इस विवि को एक खास विचारधारा की प्रयोगशाला बनाने और आर्थिक लूट मचाने का स्थल बनाया गया है। विद्यार्थी, अभिभावक व शिक्षा क्षेत्र के लोगों को दखल लेकर इस विवि को बचाना होगा, वरना इसकी बर्बादी तय है।

🔹 विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर सवाल
गोंडवाना विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. प्रशांत बोकारे पर आरोप है कि वे शैक्षणिक गुणवत्ता और विद्यार्थियों की समस्याओं से अधिक, एक विशेष वैचारिक दिशा के कार्यक्रमों में व्यस्त हैं। मीडिया रिपोर्ट और गोंडवाना विवि के आयोजन RSS से संबंधित विचारधारा की ओर इशारा कर रही है। नियुक्तियों में अनियमितता, खेल स्पर्धाओं में भ्रष्टाचार, जमीन खरीद विवाद जैसे मुद्दों ने विश्वविद्यालय की छवि को और खराब किया है।

🔹 विश्वविद्यालय की डिग्री बड़े शहरों में अप्रासंगिक
मुंबई, पुणे, हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहरों में गोंडवाना विश्वविद्यालय की डिग्री को पर्याप्त महत्व नहीं दिया जा रहा। इसका सीधा असर यह हुआ है कि चंद्रपुर में 10वीं और 12वीं पास करने वाले विद्यार्थी अब स्थानीय कॉलेजों की बजाय बड़े शहरों की ओर रुख कर रहे हैं।

🔹 गोंडवाना विद्यापीठ संकट में : छात्र नहीं तो एजेंट सही !

चंद्रपुर जिले में उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। छात्रों की घटती संख्या ने कॉलेजों को अनोखे उपायों की ओर धकेल दिया है – अब छात्र जुटाने के लिए ‘कमिशन एजेंट’ घर-घर घूम रहे हैं। गोंडवाना विद्यापीठ की गिरती साख और प्रशासनिक निष्क्रियता इस संकट की जड़ मानी जा रही है।

🔹 छात्रों के लिए एजेंट नियुक्त — कॉलेजों की मजबूरी
गोंडवाना विश्वविद्यालय से जुड़े अभियांत्रिकी, बीएड, बीसीए, एमबीए, आयुर्वेद, पॉलिटेक्निक सहित कला, वाणिज्य और विज्ञान जैसे दर्जनों कोर्स वाले कॉलेज अब छात्रों के अभाव से जूझ रहे हैं। इन्हीं छात्रों को आकर्षित करने के लिए एजेंट नियुक्त किए जा रहे हैं, जो घर-घर जाकर छात्रों को प्रवेश दिलाने के लिए प्रेरित करते हैं – बदले में प्रति छात्र कमिशन दिया जाता है।

🔹 सीईटी पास छात्रों के लिए भी एजेंट सक्रिय
यह केवल साधारण कोर्स तक सीमित नहीं है। इंजीनियरिंग और आयुर्वेद कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए आवश्यक सीईटी जैसी परीक्षाएं पास करने वाले छात्रों तक पहुंचने के लिए भी कॉलेजों ने एजेंटों की मदद लेना शुरू कर दिया है।

🔹 छात्रों के लिए ऑफर की जा रही सुविधाएं भी बेअसर
छात्रों को लुभाने के लिए कई कॉलेजों ने बस सेवा, फीस माफी जैसी सुविधाएं देने की पेशकश की है। फिर भी, छात्रों की संख्या में गिरावट जारी है, जिससे प्राचार्य और शिक्षक वर्ग में गहरी चिंता व्याप्त है।

🔹 हर वार्ड में एजेंट सक्रिय – शिक्षा का व्यवसायीकरण?
अब स्थिति यह हो गई है कि हर प्रभाग और वार्ड में एजेंट कॉलेजों का प्रचार करते नजर आते हैं। एजुकेशन की गुणवत्ता की बजाय, एजेंट आधारित मॉडल कॉलेजों की प्राथमिकता बनता जा रहा है। इससे शिक्षा प्रणाली में गंभीर व्यावसायिककरण का संकेत मिलता है।

🔹 गोंडवाना विश्वविद्यालय की गिरती साख का असर स्थानीय कॉलेजों पर
विश्वविद्यालय की बिगड़ती छवि के कारण न केवल उसका अपना अस्तित्व संकट में है, बल्कि उससे जुड़े छोटे-बड़े कॉलेज भी अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह केवल शैक्षणिक गिरावट नहीं, बल्कि एक समूचे क्षेत्र की सामाजिक और शैक्षणिक प्रगति पर गंभीर प्रश्नचिन्ह है।

🔹 अंतिम बात :
गोंडवाना विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले कॉलेजों की यह स्थिति दर्शाती है कि शैक्षणिक गुणवत्ता और प्रशासनिक पारदर्शिता की अनदेखी किस हद तक शिक्षा व्यवस्था को डगमग कर सकती है। छात्रों को ‘कमिशन एजेंटों’ के भरोसे छोड़ देना एक विकृत व्यवस्था की निशानी है, जिसे समय रहते नहीं सुधारा गया तो यह संपूर्ण उच्च शिक्षा प्रणाली के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है।