5 साल में 173 लोग मरे और वन मंत्री चंद्रपुर आए-चले गये

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■ बाघ के हमलों में मारे गये मृतकों के परिवारों से मिलने की फुर्सत कहां ?

■ घटनाएं घटित होने के बाद की मलम-पट्‌टी पर फोकस !

चंद्रपुर.
Tiger Attack in Chandrapur : चंद्रपुर जिले में 173 परिवार उजड़ गये। बाघों ने हमला कर बीते 5 सालों में इन्हें मौत के घाट उतार दिया। बीते दिनों में 22 लोगों को बाघ ने निवाला बनाया। पर्यावरण दिवस पर महाराष्ट्र के वन मंत्री गणेश नाईक चंद्रपुर आये। लेकिन उन्होंने 173 मृतकों के परिवारों से मिलकर उनका दु:ख-दर्द, ग्राउंड लेवल के हालत, परिवार की स्थिति, उनकी मजबूरियों को जानने की कोशिश तक नहीं की। घटनाएं-वारदातें होने के बाद की जाने वाली मलम-पट्‌टीनुमा उपाय योजनाओं को साकार कर वाहवाही बटोरकर वे चंद्रपुर से चले गये। वन मंत्री नाईक की इन परिवारों से की गई उपेक्षा सरकार, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की असंवेदनशीलता को दर्शा गई है।

पीड़ित परिवारों से क्यों नहीं मिले वन मंत्री ?
महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में जहां एक ओर बाघों की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर जिले में बाघों के हमलों में जान गंवाने वालों की संख्या भी खतरनाक रूप से बढ़ रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले महीने मई में ही बाघों के हमलों में चंद्रपुर में 11 लोगों की जान चली गई। जिससे ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। वन विभाग के ताजा आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 से मई 2025 तक चंद्रपुर जिले में कुल 173 लोगों की जान वन्यजीव हमलों में गई, जिनमें से 150 मौतें केवल बाघों के कारण हुईं। 2022 सबसे भयावह साल रहा जब बाघ के हमलों में 50 से ज्यादा लोगों की जान गई, जबकि 2025 में अब तक 22 लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन वन मंत्री पीड़ित परिवारों से मिलना भी जायज नहीं समझे होंगे।

रोजगार नहीं तो तेंदूपत्ता ही सहारा
मई के महीने में तेंदू पत्ता इकट्ठा करने के लिए लगभग 50,000 से 60,000 लोग उस जंगल में जाते हैं, जहां 150 से अधिक बाघ हैं। तेंदूपत्ता का उपयोग ‘बीड़ी’ बनाने के लिए किया जाता है और इन पत्तों को इकट्ठा करना इस क्षेत्र में आय का एक प्रमुख स्रोत है। पेट की आग बुझाने गांव से सटे जंगल में जाकर तेंदूपत्ता इकठ्‌ठा करना इन ग्रामीणों की मजबूरी है। स्थानीय ग्रामीणों को पर्यायी रोजगार उपलब्ध कराने में सरकार बुरी तरह से नाकाम साबित हुई है।

10,000 से अधिक मवेशी बने शिकार
मनुष्यों के साथ-साथ मवेशियों पर भी बाघों के हमले बढ़ गए हैं, जो चिंता का विषय बना हुआ है। वर्ष 2021 से 2025 तक अब तक 10,000 से अधिक मवेशी जंगली जानवरों के हमले में मारे गए हैं। इस अवधि में सरकार ने मुआवज़े के रूप में 122 करोड़ रुपये से अधिक की राशि दी है, जिसमें अकेले 2024-25 में 31.39 करोड़ दिए गए।

PRT टीम भी यहां हो रही नाकाम !
चंद्रपुर जिला 4,845 वर्ग किलोमीटर में फैले घने जंगलों के लिए जाना जाता है। चंद्रपुर के करीब 200 गांवों में प्राथमिक प्रतिक्रिया टीम (PRT) बनाई गई है, जिसमें स्थानीय ग्रामीण शामिल हैं। हर टीम में 5 सदस्य हैं जिन्हें सुरक्षा किट और प्रशिक्षण दिया गया है। वन विभाग की ओर से उन्हें बाघ के मूवमेंट की जानकारी दी जाती है, जो खतरा होने पर ग्रामीणों को सतर्क करते हैं। इसके बावजूद PRT टीम ग्रामीणों की जान बचाने में सफल नहीं हो पा रही है।

सम्मेलन और उद्धाटनों का मंत्री को आकर्षण ?
पर्यावरण दिवस पर 5 जून 2025 को वन मंत्री गणेश नाईक ने चंद्रपुर में आकर वन नियंत्रण कक्ष और सायबर सेल का उद्घाटन किया। वन अकादमी में महिलाओं की राष्ट्रीय परिषद वन शक्ति 2025 का भी उन्होंने उद्घाटन किया। मानव-वन्य जीव संघर्ष पर लंबे-चौड़े भाषण दिये गये। परंतु असल जंगलों के किनारे बसे गांवों में वन्य जीवों के हमलों में मारे जा रहे लोगों के परिवारों का दु:ख जानने के लिए किसी पीड़ित परिवार को यहां आमंत्रित कर उनकी व्यथा सुनने के लिए मंच उपलब्ध नहीं कराया गया। ऐसा लगता है मानो यह तालियां बटोरने और सम्मेलन की चकाचौंध दिखाने का महज एक प्रयास रहा हो। इस सम्मेलन में वन मंत्री नाईक ने अलार्मिंग सिस्टम को अधिक प्रभावशाली करने का दावा किया। लेकिन बीते अनेक वर्षों का अनुभव यही रहा है कि सरकार के अनेक दावे चंद्रपुर के जंगलों से सटे गांवों में बुरी तरह से फेल हुए है।