पोल-खोल : पालकमंत्री डॉ. उईके ने फिर खोली अपने ही सरकार की पोल

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■ राष्ट्रीयकृत बैंक समय पर किसानों को फसल ऋण नहीं देते

■ बीज व खादों की बढ़ती कीमतों पर पालकमंत्री की चुप्पी

चंद्रपुर.
पिछली बार जिले के पालकमंत्री डॉ. अशोक उईके ने अपने ही सरकार और सत्तापक्ष भाजपा के नेताओं की ओर बरसों से संचालित किये जा रहे चंद्रपुर जिला परिषद की पोल खोल दी थी। यहां के ZP स्कूलों में छात्रों की संख्या घट रही, यह दावा स्वयं मंत्री उईके ने किया था। अब पालकमंत्री ने एक और पोल खोल दी है। राष्ट्रीयकृत बैंक समय पर किसानों को फसल ऋण नहीं देते, और तो और किसानों की ढेरों शिकायतें मिलती है। अब तक केवल 68 प्रतिशत ही फसल ऋण बांटा गया है। इन मुद्दों पर डॉ. उईके ने अधिकारियों की खिंचाई तो की लेकिन हैरत की बात यह है कि बीजों और खादों के बढ़ते कीमतों पर किसान वर्ग जो बेहद परेशान हैं, इस गंभीर मुद्दे पर पालकमंत्री ने चुप्पी साध दी। किसानों की हितों का दिखावा करने वाले यदि बीज व खाद के बढ़ते कीमतों पर चुप रहेंगे, तो अन्नदाता किसान किनसे उम्मीद करें, यह सवाल अब उठने लगा है।

🌾 एक ओर फसल ऋण की आस, दूसरी ओर बढ़ती लागत से किसान बेहाल

📉 बीजों की कीमतों में बढ़ोतरी, मजदूरी दर में उछाल, और ऋण वितरण की असमंजसता ने बढ़ाई किसानों की चिंता

 🔹 समय पर फसल ऋण जरूरी : मंत्री डॉ. अशोक उईके का निर्देश

किसानों की खरीफ तैयारी के बीच फसल ऋण की समय पर उपलब्धता सबसे अहम

पालक मंत्री डॉ. अशोक उईके ने बैंकों को दिया स्पष्ट आदेश

अब तक जिले में 68% लक्ष्य के साथ 776.57 करोड़ रुपये का वितरण 

मुख्य बिंदु :

▪️खरीफ के लिए लक्ष्य 1150 करोड़, रबी के लिए 100 करोड़, कुल लक्ष्य 1250 करोड़ रुपये

▪️अब तक 71,033 किसानों को ऋण, सबसे ज्यादा वितरण चंद्रपुर जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक द्वारा

▪️ बैंकों को निर्देश :

▪️कोई भी पात्र किसान फसल ऋण से वंचित न हो

▪️DBT योजनाओं की राशि से ऋण की कटौती न की जाए

▪️राष्ट्रीयकृत बैंकों को समय पर ऋण न देने की शिकायतें रोकें 

💸 10 % महंगे हुए बीज : किसान आर्थिक संकट में उलझे

🌱 फसल की लागत बढ़ी, लाभ घटा, किसान हताश 

प्रमुख पहलू :

▪️बीजों की कीमत में 10 % की वृद्धि

▪️धान के बाजार मूल्य में गिरावट: पिछले वर्ष ₹3,000, इस बार ₹2,700–2,800

▪️न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में केवल ₹69 की बढ़ोतरी, किसानों में नाराज़गी

▪️आर्थिक संतुलन बनाने के प्रयास में किसान बैंक और स्वयं सहायता समूहों पर निर्भर 

⚠️ बीज वितरण में धोखाधड़ी : किसानों की लूट

📉 महंगे बीज भी नहीं दे रहे भरोसा, गुणवत्ताहीन बीजों से फसल उत्पादन पर असर

▪️महंगे और लाइसेंस प्राप्त कृषि केंद्रों से खरीदे बीज भी निकल रहे खराब

▪️मूल तहसील में पिछले वर्ष सामने आईं कई धोखाधड़ी की घटनाएं

▪️किसानों को सिर्फ मानसिक पीड़ा, कोई ठोस समाधान नहीं 

📈 मजदूरी और कीटनाशक महंगे : खेती बनी घाटे का सौदा

▪️मजदूरी दर में दोगुनी वृद्धि, ऊपर से मजदूर मिलना भी मुश्किल

▪️कीटनाशकों और अन्य कृषि सामग्रियों की कीमतें बढ़ीं

▪️लागत में बढ़ोतरी, मुनाफा घटा – खेती अब फायदे का सौदा नहीं रही

▪️किसान मजबूरी में खेती कर रहे हैं, क्योंकि विकल्प नहीं

🖥️ ‘साथी पोर्टल’ बना कृषि केंद्रों की नई चुनौती

▪️अनुदान पर वितरित बीजों की जानकारी अब साथी पोर्टल पर दर्ज करना अनिवार्य

▪️कृषि सेवा केंद्र, सहकारी संस्थाएं और उत्पादक कंपनियां प्रशासनिक बोझ से परेशान

▪️योजनाओं के प्रबंधन में पारदर्शिता की कोशिश, पर ज़मीनी स्तर पर जटिलताएं बढ़ीं 

📝 अंतिम बात :

जहाँ एक ओर शासन किसानों को ऋण योजना और प्रोत्साहन से राहत देने की बात कर रहा है, वहीं दूसरी ओर बढ़ती लागत, प्रशासनिक बोझ और बाजार की अनिश्चितता ने किसानों की स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया है। खरीफ सीजन की शुरुआत से ही यह स्पष्ट हो गया है कि किसानों को इस बार फसल जितनी नहीं, उससे कहीं अधिक प्रणालीगत संघर्षों की फसल काटनी होगी।