■ सोशल मीडिया पर अवमानना की ट्रोलिंग या बेतूकी सलाह ?
चंद्रपुर.
यह बेहद चिंताजनक, आर्श्चकारक, दुखद और खेदपूर्ण बात है कि विदर्भ के सबसे वरिष्ठ ख्यातनाम पर्यावरणवादी, वन्यजीव प्रेमी, कृषि विशेषज्ञ, बीज अनुसंधानकर्ता और 34 वर्षों तक वन विभाग में नौकरी करते हुए 9 जिलों के जंगलों में खाक छानने वाले रिटायर्ड DFO को आज जंगल का पाठ पढ़ने की सलाह दी जा रही है। सोशल मीडिया पर मौजूद एक पोस्ट में उन्हें दी गई यह सलाह उनकी अवमानना समझी जाएं या ट्रोलिंग ? यह प्रश्न निर्माण हो रहा है। चंद्रपुर के एक प्रसिद्ध पर्यावरणवादी के पोस्ट पर उन्हें वनों का, वन्यजीव-मानव संघर्ष का अध्ययन करने की दी गई सलाह पर चंद्रपुर के तमाम पर्यावरणप्रेमियों ने चुप्पी साध ली है। यह बेहद चिंताजनक और संबंधितों के भयभित रवैये को दर्शा रहा है। स्थानीय किसी पर्यावरणप्रेमी ने इस बात पर ऐतराज नहीं जताया। यह भी अपने-आप में आश्चर्य की बात बन गई है।
27 मई 2025 को चंद्रपुर के मशहूर पर्यावरणवादी प्रा. योगेश दुधपचारे ने अपने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की। इस पोस्ट में 14 पर्यावरणवादियों की एक ग्रृप फोटो भी दर्शायी गई है। इस पोस्ट में प्रा. दुधपचारे लिखते हैं कि –
“बाघों का कारखाना अच्छा बना रहे, आसपास के लोगों को रोजगार मिले, और मानव तथा वन्यजीवों के बीच संघर्ष कम हो – ऐसे कई विषयों पर आज ताडोबा अंधारी टाइगर प्रोजेक्ट के क्षेत्र संचालक श्री शुक्ला सर के कार्यालय में चंद्रपुर जिले के पर्यावरण कार्यकर्ताओं की बैठक संपन्न हुई।
बैठक के बाद यह तय किया गया कि 1912 में बनी इस वन विभाग की इमारत के सामने हम सभी एक फोटो खिंचवाएँगे।
और यह रहा वह फोटो।”
इस पोस्ट पर गोंदिया निवासी और वर्ष 1982 से 2015 तक वन विभाग में सेवारत रहे रिटायर्ड DFO अशोक श्रीराम खुणे ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कमेंट लिखा कि – “सामान्य व्यक्ति बाघ से कैसे बचे, ऐसा कोई उपकरण दीजिए।”
बुजुर्ग पर्यावरणवादी खुणे के इस कमेंट पर अपेक्षित था कि प्रा. योगेश दुधपचारे कोई प्रतिक्रिया दें। लेकिन इस सवाल के जवाब में धर्मेंद्र लुनावत नामक एक सम्माननिय महोदय बीच में ही कूच पड़े और अपनी राय थोपने की कोशिश करने लगे। इस पर सेवानिवृत्त DFO ने उन्हें जवाब देते हुए सलाह दी कि – ‘जिनकी मौत हुई हैं, उनके परिवारों से भेंट करें, सारी जानकारियां ज्ञात हो जाएगी।’ आखिरकार यह बहस यहां तक पहुंच गई कि धर्मेंद्र लुनावत नामक सज्जन ने सीधे रिटायर्ड DFO खुणे को ही कह दिया कि –‘मानव-वन्यजीव संघर्ष के मुद्दे की पढ़ाई करें ताकि जानकारी और वस्तुस्थिति आपको पता चले।’
अब इस मसले पर सवाल यह उठता है कि जिस वरिष्ठ पर्यावरणवादी और रिटायर्ड DFO ने अपने जीवन के 34 साल जंगलों में बीताये हो, जंगल के हर संघर्ष को करीब से देखा हो, संपूर्ण महाराष्ट्र के प्रत्येक पेड़ की पहचान रखने में निपुण हो, अनुसंधान, कृषि, बीज आदि पर काम करते करते जिनके बाल सफेद पड़ गये हो, क्या अब उन्हें पढ़ाई करने की सलाह इस तरह से देना उनकी अवमानना है या इसे ट्रोलिंग कहा जाएं ?
मसला चाहे जो भी हो इस मशहूर एवं वरिष्ठ पर्यावरणवादी पर इस तरह की टिपण्णी और पढ़ाई करने की सलाह देने वाले कमेंट पर चंद्रपुर शहर के 14 नामी गिरामी पर्यावरणवादियों की ओर से कोई आपत्ति जाहिर नहीं की गई। अपने वरिष्ठ साथी पर किये गये कमेंट पर चंद्रपुर के पर्यावरणप्रेमियों की ओर से इस तरह से चुप्पी साध लेना न केवल आश्चर्य की बात है बल्कि यह एक प्रकार से मुक सहमति को दर्शा रहा है। या तो फिर तस्वीर में शामिल 14 पर्यावरणवादियों की राय मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले में लुनावत के विचारों से मेल खाते है। या तो यह भी हो सकता है कि वे किसी तरह की आपत्ति जताकर ट्रोलिंग के पचड़े में पड़ना नहीं चाहते। या यह भी हो सकता है कि किसी ने वरिष्ठ पर्यावरणवादी खुणे पर की गई टिपण्णी को पढ़ा ही न हो या पढ़ाकर अनदेखी करना ही उचित समझ लिया हो। खैर बात चाहे जो भी हो, विदर्भ के बुजुर्ग पर्यावरणवादी खुणे के लिए चंद्रपुर के सभी पर्यावरणवादियों ने एकजुट होकर सम्मानजनक राय को अभिव्यक्त करना ही चाहिये।