■ वेकोलि के AGM हर्षद दातार, सबएरिया मैनेजर तरुण कुमार देवरा, नांदगांव मैनेजर के. श्रीनिवास की अनदेखी
■ 10000 टन से अधिक का स्टॉक, लेकिन ऑक्शन करवाने में नाकाम
■ CSTPS भेजा जा रहा कोयला अब राख मिश्रित, पानी से धुलाई के बावजूद धधक रही आग
चंद्रपुर :
चंद्रपुर और शहर से सटे इलाकों में अब केवल 2 ही भूमिगत कोयला खदानें कार्यरत है। शेष खदानें बंद कर दी गई है। नांदगांव कोयला खदान को भी अब घाटे के सौदे का ग्रहण लगता दिखाई पड़ रहा है। क्योंकि यहां बीते 4 माह से हजारों टन कोयला स्टॉक कर रखा गया है। इस कोयले में आग धधक रही है। इसे बुझाने में नांदगांव मैनेजर के. श्रीनिवास, सब एरिया मैनेजर तरुण कुमार देवरा एवं AGM हर्षद दातार बुरी तरह से नाकाम हैं। के. श्रीनिवास तो कोयले के ढेर पर मोबाइल से बतियाते हुए पे-लोडर द्वारा आग बुझवाते देखे गये। यही राख मिश्रित कोयला WCL की ओर से CSTPS को भेजा जा रहा है। लंबे समय तक नांदगांव में स्टॉक करने की नौबत के चलते यह आग लगी हुई है। इस समस्या को जड़ से मिटाने अर्थात ऑक्शन देकर कोयले को यहां से हटावाने के बजाय पानी डालकर इसे संजोने की नीति अपनाने के चलते WCL को करोड़ों का नुकसान हो रहा है। इस नुकसान पर AGM हर्षद दातार चुप्पी साधे बैठें हैं। तमाशबीन अफसरों के चलते कोयले के ढेर राख में तब्दील होने लगे हैं।
10,000 टन कोयला आया कहां से ?
वेकोलि चंद्रपुर के अधिकारी AGM हर्षद दातार की निष्क्रियता के चलते नांदगांव अंडरग्राउंड में कोयले का ऑक्शन बीते 4 माह से नहीं हो पाया। यहां का कोयला तय अनुसार CSTPS के लिए आवंटित है। प्रतिदिन करीब 250 टन कोयले का उत्पादन किया जा रहा है। इसमें से करीब 100 से 150 टन कोयला ही CSTPS को लालपेठ के रेल साइडिंग के माध्यम से भेजा जा रहा है। कागजों में चल रहे वेकोलि अधिकारियों के खेल का नतीजा यह हुआ कि आज नांदगांव परिसर में 10,000 टन से अधिक का कोयले का स्टॉक निर्माण हो गया। ग्रीष्मकाल की भीषण गर्मी के चलते इस संग्रहित करोड़ों के कीमत वाले कोयले में जहां-तहां आग लग गई। मैनेजर के. श्रीनिवास कोयले के ढेर पर खड़े रहकर पे-लोडर के माध्यम से आग बुझाने का नाकाम प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह प्रयास ऊंट के मुंह में झिरा समान है। कोयला अब राख में तब्दील हो रहा है। और इसी कोयले को CSTPS भी भेजा जा रहा है।
करोड़ों की क्षति के लिए आखिर WCL का कौनसा अफसर जिम्मेदार ?
आमतौर पर CSTPS को नांदगांव की कोयला खदान से करीब 200 टन प्रतिदिन के हिसाब से कोयला भेजे जाने के दावे किये जा रहे हैं। यदि इस बात को सच मान भी लिया जाएं तो हजारों टन कोयला स्टॉक करने की नौबत वेकोलि प्रशासन पर क्यों आ गई है। कोयले को जलने के लिए खुला छोड़ देने से करोड़ों का नुकसान हो रहा है। इस नुकसान की भरपाई आखिर वेकोलि के अधिकारी कैसे कर पाएंगे ? बताया जाता है कि CSTPS को यह कोयला करीब 25 से 27 सौ रुपये प्रति टन के दर से दिया जाता है। जबकि स्टॉक हो चुके कोयले को यदि खुले बाजार के लिए वेकोलि के माध्यम से ऑक्शन किया जाता तो इसी कोयले का दर 5000 रुपयों से अधिक का मिल जाता। परंतु दोगुने दर से कोयले को बेचकर मुनाफा कमाने के बजाय WCL इसे स्टॉक का पहाड़ बनाकर आग लगने और राख बनाने पर तुली हुई है। सरकारी संपत्ति की इस क्षति के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है ?