प्रशासनिक अधिकारी कभी भी बिना निधि के कोई काम नहीं करते

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प्रा. सुरेश चोपणे का दावा

चंद्रपुर.
प्रशासनिक अधिकारी कभी भी बिना निधि के कोई काम नहीं करते, यह दावा किया है चंद्रपुर के मशहूर पर्यावरणवादी अध्ययनकर्ता प्रा. सुरेश चोपणे ने। वे स्वयं इरई नदी के प्रहरी भी है। इन्होंने 5 मई 2025 को इरई नदी के गहराईकरण मुहिम का खनन स्थल पर जाकर जायजा लिया। इसके बाद इन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी। जिसमें इन्होंने प्रशासन की कार्यप्रणाली को लेकर एक सनसनीखेज दावा कर यहां के जिला प्रशासन की पोल खोलकर रख दी। इस बाद तो जिला प्रशासन को शर्म से डूबकर मर जाना चाहिये। कड़ी मेहनत कर नि:शुल्क रूप से तैयार की गई इरई नदी उपाययोजना की रिपोर्ट और इसकी संपूर्ण जानकारियां अनेक प्रशासनिक बैठकों में दी गई। परंतु जिला प्रशासन ने वर्ष 2006 से इसे डस्टबिन में डाल रखा है। क्योंकि यह उपाय बिना निधि के भी संभव थे। इसलिए प्रा. चोपणे अपनी पोस्ट के अंतिम लाइनों में दावा करते हैं कि प्रशासनिक अधिकारी कभी भी निधि के बिना कोई काम नहीं करते। उनका यह बयान प्रशासन के लिए शर्मसार करने वाला है। अब प्रशासन को आत्मचिंतन करना चाहिये।

प्रा. सुरेश चोपणे की पोस्ट की मुख्य बातें :

1. निरीक्षण :
* नदी खोलीकरण का काम देखा गया, जिससे पता चला कि प्रशासन बाढ़ की समस्या को रोकने के लिए प्राथमिकता के आधार पर काम कर रहा है।

2. वर्तमान स्थिति :
* चंद्रपुर सुपर थर्मल पावर स्टेशन की राख अब भी नदी में देखी जा रही है।
* नदी को समतल करने के साथ-साथ 3 फुट और गहरा करने की जरूरत बताई गई है।

3. काम का कारण :
* नागरिकों, न्यायालयों और बाढ़ की लगातार समस्या को देखते हुए प्रशासन ने यह कार्य हाथ में लिया है।
* जब इरई बांध के 6–7 गेट खोले जाते हैं, तो बाढ़ से कुछ हद तक राहत मिलती है, लेकिन बैक वॉटर से पूरी तरह सुरक्षा नहीं मिलती।

4. इतिहास :
* 2006: ग्रीन प्लैनेट सोसाइटी ने सबसे पहले इरई नदी का अध्ययन कर खोलीकरण की मांग की।
* 2007: विभिन्न संस्थाओं के साथ मिलकर नदी के किनारे और बीच आंदोलन शुरू किया गया।

5. रुकावटें :
* CTPPS, कोयला खदानें और अतिक्रमण को नदी के बिगड़ते स्वरूप के लिए जिम्मेदार बताया गया।
* प्रशासन ने कई बैठकें कीं और कुछ प्रयास किए, परंतु कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।

6. पुनः प्रयास :
* पिछले 3 वर्षों में, महाराष्ट्र जल बिरादरी और तत्कालीन पालक मंत्री ने पहल की।
* “चला जाणूया नदीला” उपक्रम के तहत इरई और उमा नदी को शामिल किया गया।

7. अध्ययन कार्य :
* ग्रीन प्लैनेट सोसाइटी को इरई नदी के उद्गम से संगम तक अध्ययन कर सुझाव देने की जिम्मेदारी दी गई।
* अध्ययन मुफ्त में प्रस्तुत किया गया, जो आज भी जल बिरादरी की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
* यह रिपोर्ट अभी भी प्रशासन में लंबित है क्योंकि बजट जारी नहीं हुआ है।

8. भविष्य की राह :
* अब नागरिकों, सामाजिक और राजनीतिक संगठनों को एकजुट होकर पूरे नदी क्षेत्र को साफ और पुनर्जीवित करना होगा।
* महाराष्ट्र जल बिरादरी और जलपुरुष राजेंद्र सिंह जैसे लोगों का समर्थन इस मुहिम को मिला है।