-कोयला तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र पर उठे सवाल, उच्चस्तरीय जांच की मांग
चंद्रपुर :
कोल फील्ड के सीएलडी सतर्कता मंत्रालय के संचालक को अनुरोध किया गया है कि वे तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र (रेफरी विश्लेषण प्रणाली) की गहन जांच करें। आरोप है कि यह प्रणाली कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) के आर्थिक हितों के लिए बाधक बन रही है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
देश भर के कोयला व्यापारियों में इस तंत्र को लेकर गहरी नाराजगी देखी जा रही है। उनका आरोप है कि भारतीय गुणवत्ता परिषद (QCI), कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) और केंद्रीय कोयला मंत्रालय के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने बड़े कोयला माफियाओं के साथ मिलकर इस तंत्र को लागू किया है। व्यापारियों का कहना है कि इस व्यवस्था से देश का कोयला व्यापार प्रभावित होगा, कालाबाजारी बढ़ेगी, कोयला आयात जैसी स्थिति उत्पन्न होगी और कोयला उत्पादन में गिरावट आएगी।
व्यापारियों का यह भी कहना है कि इससे कोयला चोरी और तस्करी को बढ़ावा मिलेगा तथा भ्रष्ट अधिकारियों की अवैध कमाई के रास्ते खुल जाएंगे। न तो उत्पादन बढ़ेगा, न लागत घटेगी और न ही कोयला गुणवत्ता में सुधार आएगा। इससे अंततः कोल इंडिया और देश दोनों का नुकसान होगा। व्यापारियों ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब इतने बड़े खतरे सिर्फ एक तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र से उत्पन्न हो रहे हैं तो उसे जबरन जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने इस पूरे मामले की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की मांग की है ताकि दोषी अधिकारियों और कोयला माफियाओं की अवैध गतिविधियों का पर्दाफाश किया जा सके।
साथ ही, कोल फील्ड के सीएलडी सतर्कता मंत्रालय के संचालक से अपील की गई है कि वे इस तंत्र की पूरी सच्चाई उजागर करें और अगर यह वाकई देशहित के खिलाफ पाया जाए तो केंद्र सरकार से इसे रद्द करने की सिफारिश करें।
भ्रष्टाचार और घाटे के साये में कोल इंडिया
कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) द्वारा अपनाया गया ‘तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र’ (रेफरी नमूनों की कोडिंग) अब सवालों के घेरे में आ गया है। दावा किया गया था कि इस व्यवस्था से कोयले की गुणवत्ता सुधरेगी और भारत को कोयला आयात पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कोल इंडिया की साख फिर से मजबूत होगी। मगर हकीकत इसके बिल्कुल उलट दिखाई दे रही है।
जानकारों के अनुसार, सबसे पहले इस प्रणाली को सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) में लागू किया गया था, लेकिन वहां कोई विशेष सुधार देखने को नहीं मिला। कोयले की गुणवत्ता जस की तस बनी रही और स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यूसीआई) और कोल इंडिया के अधिकारी बड़े-बड़े दावे करते रहे, लेकिन धरातल पर नतीजे निराशाजनक रहे।
विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा भारतीय माहौल में यह तंत्र कारगर नहीं हो सकता। उल्टा, इसने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। आरोप हैं कि सीआईएल और क्यूसीआई के कुछ भ्रष्ट अधिकारी कोयला माफियाओं के साथ मिलकर कोयला चोरी, तस्करी और हेराफेरी को अंजाम दे रहे हैं। इसका नतीजा यह है कि सीसीएल घाटे में चल रही है और भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) की समस्याएं और बढ़ गई हैं।
सरकार ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को पूरा करने के लिए कोल इंडिया पर बड़ी जिम्मेदारी डाल रही है, लेकिन ऐसे भ्रष्टाचार के माहौल में यह लक्ष्य मुश्किल होता नजर आ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोयला देश की राष्ट्रीय संपत्ति है और तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र के नाम पर इसके साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।
देशहित में, इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की जा रही है।
तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र पर उठे सवाल
कभी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की ई-नीलामी पद्धति विवादों में थी, अब वही हाल तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र (रेफरी नमूनों की कोडिंग) का हो गया है। पहले कहा गया था कि ई-नीलामी से केवल बड़े व्यापारियों को फायदा होगा, अब तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र को भ्रष्ट अधिकारियों के हित में बताया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि कोल इंडिया के आम निवेशक और मेहनतकश मजदूरों को क्या मिलेगा?
कोयला देश की ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, इसलिए उसकी गुणवत्ता पर ध्यान देना बेहद जरूरी है। लेकिन फिलहाल कोयले की गुणवत्ता को लेकर गंभीर चिंताएं बनी हुई हैं। पॉवर सेक्टर से भी लगातार इसकी शिकायतें सामने आ रही हैं। केवल चिंता जाहिर करने से काम नहीं चलेगा, अब इस समस्या का ठोस हल ढूंढ़ना होगा।
भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यूसीआई) द्वारा सुझाया गया ‘तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र’ पारदर्शिता लाने के लिए लाया गया था, लेकिन इसकी भी निष्पक्ष जांच की मांग उठ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे बड़े व्यापारी और अधिकारी तो लाभ उठा रहे हैं, लेकिन गरीब किसान, खदान मजदूर और आम उपभोक्ता फिर से नुकसान में हैं।
बताया गया है कि सीआईएल देश के कुल कोयला उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा देता है और इसका करीब 10 प्रतिशत कोयला ई-नीलामी के जरिये बेचा जाता है। लेकिन इस व्यवस्था में भी बड़े गुटों द्वारा सस्ता कोयला खरीदकर ऊंचे दामों पर छोटे ग्राहकों को बेचा जाता है, जिससे भारी अनियमितता हो रही है।
देश को कोयला आयात जैसी शर्मनाक स्थिति से बचाने और आत्मनिर्भर बनने के लिए उत्पादन बढ़ाना जरूरी है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है कोयले की गुणवत्ता में सुधार। तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र इस लक्ष्य को पूरा करने में नाकाम साबित हो रहा है। इसलिए अब कोयला मंत्रालय और सीआईएल को इस पूरे सिस्टम की गहन समीक्षा कर पारदर्शिता बढ़ाने के ठोस कदम उठाने चाहिए।
भ्रष्टाचार का नया जरिया, CIL और QCI पर गंभीर आरोप
कोयला क्षेत्र में भ्रष्टाचार एक बार फिर चर्चा में है। अब तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र (रेफरी नमूनों की कोडिंग) को लेकर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। आरोप है कि भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यूसीआई), कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के भ्रष्ट अधिकारी और कोयला माफिया, तीनों मिलकर मिलकर कोल इंडिया को लूट रहे हैं। पहले ई-नीलामी के नाम पर घोटाले हुए और अब तृतीय पक्ष नमूनाकरण को नया हथियार बना लिया गया है।
बताया जा रहा है कि सीआईएल की सभी सातों अनुषंगी कंपनियों पर रेफरी नमूनों की कोडिंग का जहर फैलाने की कोशिश हो रही है, जिसकी शुरुआत सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) से हुई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस तंत्र को नहीं रोका गया तो भविष्य में देश का कोयला उत्पादन प्रभावित होगा और चोरी, तस्करी व कालाबाजारी में भारी बढ़ोतरी होगी, जो कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
आरोप है कि क्यूसीआई, सीआईएल के बेईमान अधिकारी और कोयला माफिया मिलकर एक बड़ा सिंडिकेट चला रहे हैं, जो कोयले की गुणवत्ता के नाम पर भारी लूट मचा रहे हैं। इस षड्यंत्र की गहन जांच और दोषियों को बेनकाब करने की मांग तेज हो गई है। सीबीआई और केंद्रीय सतर्कता आयोग (विजिलेंस) से इस घोटाले की जांच कराने की मांग की जा रही है। साथ ही, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग से भी भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्ति और बैंक खातों की जांच करने की अपील की गई है।
आरोपों के अनुसार, तृतीय पक्ष नमूनाकरण तंत्र सीआईएल और देश के कोयला उद्योग के विकास के लिए नहीं, बल्कि अधिकारियों और माफियाओं के निजी स्वार्थ पूर्ति का जरिया बन गया है। अगर समय रहते इस भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगाई गई तो देश को कोयला आयात जैसी शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ेगा और घरेलू कोयला उद्योग का भारी नुकसान होगा।