मुसलमानों के बाद अब बुलडोज़र की चपेट में जैन मंदिर !

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संपादकीय

मशहूर शायर राहत इंदौरी का एक प्रसिद्ध शेर है : “लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पर सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।’ यह शेर अब एक सच्चाई बन चुका है। पिछले कुछ सालों में बुलडोजर के नाम पर जो अन्याय हुए हैं, उन्होंने कानून की मर्यादाओं को ताक पर रख दिया है। अदालत के आदेशों के बिना, सत्ता में बैठे लोगों ने खास तौर पर अल्पसंख्यक समुदायों के घरों को ढहा दिया। विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के घरों को, बिना किसी कानूनी प्रक्रिया को पूरा किए।

जो लोग पहले इन कार्रवाइयों पर ताली बजाते थे, उन्हें अब यह समझ में आने लगा है कि अन्याय सिर्फ एक वर्ग के साथ नहीं होता, कल को यह उनके साथ भी हो सकता है। मुंबई में ऐसा ही कुछ हुआ, जब विले पार्ले इलाके में 90 साल पुराना पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर बीएमसी द्वारा बुलडोजर से तोड़ दिया गया। यह कार्रवाई 16 अप्रैल को की गई, और कहा जा रहा है कि यह बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के, अदालत की सुनवाई से पहले ही कर दी गई।

आज हजारों जैन समुदाय के लोग मुंबई में प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है कि इतने पुराने मंदिर को इस तरह से गिराना बेहद गलत है। इसके विरोध में अन्य समुदायों और राजनीतिक लोगों ने भी हिस्सा लिया है। महाराष्ट्र में इस समय भाजपा और शिवसेना की सरकार है, और इसी सरकार के तहत यह घटना हुई।

इस संदर्भ में कवियत्री अनामिका जैन अंबर का नाम भी चर्चा में है। अनामिका अंबर की कविताएं अक्सर हिंदुत्व, सनातन संस्कृति और मोदी-योगी की तारीफों से भरी होती हैं। उन्होंने अतीत में बुलडोजर की कार्रवाइयों पर कविताएं लिखी हैं, जिनमें उन्होंने इन घटनाओं का समर्थन किया है। उन्होंने बुलडोजर का शान से गुणगान किया।

लेकिन अब जब जैन समाज के मंदिर को ढहा दिया गया, तो वही अनामिका जैन अंबर ट्विटर पर सवाल उठा रही हैं। उन्होंने ट्वीट किया –”मुंबई में जैन मंदिर को कोर्ट की सुनवाई से पहले तोड़ दिया गया। क्या बीएमसी अब अदालत से ऊपर हो गई है? उन्होंने यह भी लिखा कि जहां बड़े-बड़े बिल्डरों की अवैध इमारतें फल-फूल रही हैं, वहां एक शांतिप्रिय मंदिर को गिरा दिया गया। बीएमसी सिर्फ कमजोरों पर ही बुलडोजर चलाती है, न कि बिल्डरों या घोटालेबाजों पर। उन्होंने पूछा – ये आदेश किसके इशारे पर चला? और इंसाफ को कुचलने की जिम्मेदारी कौन लेगा?

अब लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं और सवाल कर रहे हैं कि जब यही बुलडोजर मुस्लिम इलाकों में चला था, तब आप तालियां क्यों बजा रही थीं? तब तो आपने इसे इंसाफ बताया था। अब जब जैन समुदाय के साथ यही हुआ, तो यह अन्याय कैसे हो गया?

सच यही है कि पिछले कुछ सालों में जिस तरह से बुलडोजर की राजनीति हुई है, चाहे वह महाराष्ट्र हो, मध्य प्रदेश हो या उत्तर प्रदेश। हर जगह मुसलमानों के घर बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के तोड़े गए हैं। यही नज़ारा हरियाणा, नूंह और मेवात जैसे इलाकों में भी देखने को मिला।

पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस गवई की बेंच ने एक स्पष्ट गाइडलाइन जारी की थी। उसमें कहा गया कि किसी का घर बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के बुलडोजर से नहीं गिराया जा सकता। अगर ऐसा होता है, तो इसे गाइडलाइन का उल्लंघन माना जाएगा और जो अधिकारी ऐसा करेंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इतना ही नहीं, जिनका घर गिराया गया है, वह अधिकारी अपने निजी खर्चे से वह घर दोबारा बनवाने के लिए भी जिम्मेदार होंगे।

हाल ही में ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुआ, जहाँ बिना कानूनी प्रक्रिया के एक घर को गिराया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संबंधित अधिकारियों को दोषी ठहराया और जिनके घर टूटे थे, उन्हें 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।

जब तक यह बुलडोजर कार्रवाई न्याय के नाम पर केवल एक खास समुदाय के खिलाफ होती रही, तब तक बहुत से लोग इसे सही ठहराते रहे। लेकिन अब जब वही बुलडोजर जैन समाज के एक पुराने मंदिर पर चला है, तो सवाल उठ रहे हैं।

मुंबई के विले पार्ले इलाके में स्थित पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर को बीएमसी ने 16 अप्रैल को गिरा दिया। कुछ रिपोर्टों के अनुसार यह मंदिर 90 साल पुराना था, जबकि कुछ जगहों पर इसे 1960 के दशक का बताया गया है। बीएमसी ने मंदिर को गिराने से पहले नोटिस जारी किया था, जिसके खिलाफ जैन समाज ने अदालत में याचिका दायर की थी। इस याचिका पर 17 अप्रैल को सुनवाई होनी थी, लेकिन सुनवाई से पहले ही 16 अप्रैल को मंदिर तोड़ दिया गया।

इस घटना के बाद जैन समाज के हजारों लोग मुंबई की सड़कों पर उतर आए। महिलाएं, बुजुर्ग, और युवा सभी ने काली पट्टियाँ बांधकर शांतिपूर्ण विरोध किया। लोग मूर्तियाँ लेकर सड़क पर आए और खुले आसमान के नीचे उनका अभिषेक किया। यह प्रदर्शन पूरी तरह अहिंसक रहा, लेकिन आक्रोश स्पष्ट था। इस रैली में जैन समाज के संतों के साथ-साथ विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा और पराग अलवानी जैसे नेता भी शामिल हुए। सबने एक ही सवाल उठाया कि बिना कोर्ट की सुनवाई के, बीएमसी को मंदिर गिराने की इजाजत किसने दी?

मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) का कार्यकाल पहले ही खत्म हो चुका है, और फिलहाल इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार के पास है। महाराष्ट्र और केंद्र, दोनों जगह भाजपा की सरकार है। ऐसे में विपक्ष सवाल उठा रहा है कि आखिर ऐसी कार्रवाई भाजपा शासित राज्यों में ही बार-बार क्यों हो रही है।

यह मामला सिर्फ एक मंदिर के गिराए जाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सवाल उठाता है कि क्या किसी भी धर्म या समुदाय के साथ इस तरह का व्यवहार स्वीकार्य है? बुलडोजर सिर्फ एक कार्रवाई का नाम नहीं, अब यह न्याय और अन्याय के बीच एक प्रतीक बन गया है।

अब सवाल यह है कि जो लोग पहले बुलडोजर कार्रवाई को सही ठहराते थे जैसे भाजपा समर्थक या आईटी सेल से जुड़े लोग, वही अब इस कार्रवाई पर सवाल उठा रहे हैं। ऐसा ही एक मामला नागपुर में भी हुआ था। वहां दंगे के बाद दो लोगों को मास्टरमाइंड बताकर उनके घरों पर बुलडोजर चलाया गया। लेकिन जब मामला हाई कोर्ट पहुंचा, तो कोर्ट ने इस पर सख्त फटकार लगाई और कार्रवाई पर रोक लगाई। लेकिन तब तक एक घर गिराया जा चुका था, जो फहीम खान की मां या पत्नी के नाम पर था। दूसरा घर गिरने से बच गया।

सुप्रीम कोर्ट भी पहले कई बार कह चुका है कि किसी भी घर को बिना कानूनी प्रक्रिया के गिराना गलत है। उस घर में रहने वाले लोग जैसे बच्चे, बुजुर्ग या महिलाएं, इस सबके लिए दोषी नहीं होते।

बहरहाल जैन समाज का सवाल है कि जब एक दिन बाद ही सुनवाई थी, तो फिर इतनी जल्दी क्यों दिखाई गई? दशकों पुराना मंदिर गिरा दिया गया, और उसका जवाब देने वाला कोई नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले से गाइडलाइन तय कर रखी है कि किसी भी घर, मंदिर या इमारत को गिराने से पहले पर्याप्त नोटिस दिया जाएगा, 15 दिन का समय मिलेगा, सुनवाई का मौका मिलेगा और एक समिति बनाएगी जो पूरे मामले की निगरानी करेगी। इसके बावजूद, क्या इस जैन मंदिर को गिराने से पहले इन सभी गाइडलाइनों का पालन किया गया?

देश में जैन समाज की आबादी लगभग 50 लाख है और इस घटना को लेकर पूरे समाज में भारी गुस्सा है। सवाल उठता है कि यह जल्दबाजी क्यों की गई? कई लोगों का मानना है कि यह जैन समाज के अधिकारों और भारत की धर्मनिरपेक्षता पर सीधा हमला है।

असल सवाल यह है कि सरकार का रवैया क्या है? क्या किसी मंदिर या घर को गिराने की प्रक्रिया ऐसे ही होनी चाहिए? क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए दिशा-निर्देशों का पालन कर रही है?