- प्रदूषण नियंत्रण मंडल चंद्रपुर के अफसरों के तुगलकी कामकाज पर किसी का नहीं अंकुश
- क्षेत्रिय अधिकारी तानाजी यादव का MPCB खुद से कार्रवाई करने में असमर्थ
- जहरिला प्रदूषण फैलाने वाले अवैध कोल डिपो पर कौन है मेहरबान ?
चंद्रपुर:
तुगलकी फरमान कभी कभी जनता के जीवन के साथ कैसे खिलवाड़ करते हैं, यह देखना हो तो आपको चंद्रपुर में स्थित महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल के कार्यालय में जाकर देखना चाहिये। क्योंकि यहां की कुर्सियां तोड़ने वाले अफसरों को अपनी खुली आंखों से चंद्रपुर का प्रदूषण और प्रदूषण फैलाने वाले अवैध कोल डिपो नजर नहीं आ रहे हैं। इन कुर्सी तोड़ अफसरों ने ‘चंद्रपुर की बुलंद आवाज’ के प्रतिनिधि को प्रदूषण के सवालों पर जवाब एवं प्रतिक्रिया देते हुए बताया कि यदि उनके पास अवैध कोल डिपो के खिलाफ शिकायत आएगी तो ही वे कार्रवाई कर पाएंगे। इस वाक्य का दूसरा अर्थ तो यही निकलता है कि यह विभाग अपनी मर्जी से प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ कोई कार्रवाई करना नहीं चाहता। तब सवाल यह उठता है कि बरसों से दिन-दहाड़े पे-लोडर लगाकर हवा में कोयला उछाकर धूल एवं प्रदूषण फैला रहे अवैध कोल डिपो पर कौन मेहरबान बना हुआ है ? किसके आशीर्वाद से यह अवैध व्यवसाय बरसों से काली कमाई वाली मलाई का जरिया बन गया है ?
गत शुक्रवार की दोपहर के दौरान जब ‘चंद्रपुर की बुलंद आवाज’ के प्रतिनिधि ने MPCB कार्यालय के क्षेत्रिय अधिकारी तानाजी यादव को कॉल कर चंद्रपुर से सटे पड़ोली परिसर में चल रहे अवैध कोल डिपो और प्रदूषण के खिलाफ की कार्रवाईयों पर सवाल पूछा तो उन्होंने कॉल पर इसका जवाब देने से इंकार कर दिया। कहा गया कि कार्यालय में स्वयं आकर मिले तो ही सवालों का जवाब मिलेगा। तब हमारे प्रतिनिधि ने कार्यालय में पहुंचकर तानाजी यादव से भेंट की। अवैध कोल डिपो की करतूतों और कार्रवाइयों पर सवाल पूछा। लेकिन यादव महोदय जवाब देने से मुकर गये। कहा कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। उनके अधिनस्त कार्य करने वाले कनिष्ठ अधिकारी से भेंट कर उनकी प्रतिक्रिया प्राप्त करने की सूचना दी। तब हमारे प्रतिनिधि ने तानाजी यादव के अधिनस्त अधिकारी से भेंट की और उनसे सवाल किया तो उनके जवाब बड़े ही चौंकाने वाले और तुगलकी ज्ञात हुए। इस अधिकारी ने बताया कि उनके प्रशासनिक रेकॉर्ड में कुल 26 कोल डिपो मौजूद है। लेकिन इनमें से कितने अवैध है और कितने वैध है ? यह उन्हें नहीं पता। बीते दिनों जब पर्यावरण संबंधित नियमों का उल्लंघन करते हुए कोल डिपो पाएं गए थे, तब इन्हें क्लोजर नोटिस दिया गया था। बाद में प्रॉसिक्यूशन नोटिस भी दिये गये। पश्चात जब उनके विभाग ने सर्वे किया तो उस दौरान 26 कोल डिपो इन्हें बंद नजर आएं। इसके बाद से कितने शुरू हुए और कितने के खिलाफ कार्रवाई की गई, इसका कोई रेकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। अब जब कोई शिकायत करेगा, किसी की कम्प्लेंट आएगी तो प्रशासन के इस विभाग के अधिकारी कार्रवाई करेंगे।
पड़ोली के कोल डिपो को गत वर्षों में वणी स्थांनातरित करने की प्रक्रिया चल रही थी। परंतु यह मामला कहां अटक गया, यह भी किसी को नहीं पता। NGT के नियम तो कोल डिपो को लेकर बेहद सख्त हैं। इन नियमों से अधिकांश नियमों का तो यहां पालन ही नहीं होता। इसके बावजूद धड़ल्ले से और दिन-दहाड़े अवैध कोल डिपो चल रहे है। वहीं MPCB प्रदूषण को रोकने और कार्रवाई करने के बजाय किसी सज्जन की ओर से शिकायत मिलने का इंतजार कर रहा है, यह काफी हैरत की बात है।
अवैध कोल डिपो पर कब होगी ठोस कार्रवाई ?
वर्षों से चंद्रपुर के पड़ोली और नगाला परिसर में संचालित अवैध कोल डिपो अब फिर एक बार चर्चा के केंद्र में हैं। इन डिपो को बार-बार अवैध घोषित किए जाने और प्रशासनिक पाबंदियों के बावजूद, कोयले का यह काला कारोबार धड़ल्ले से जारी है। इससे न केवल स्थानीय पर्यावरण बल्कि पूरे चंद्रपुर जिले की हवा प्रदूषण से भरती जा रही है।
प्रशासनिक आदेशों की उड़ती धज्जियाँ
महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल (MPCB), जिला प्रशासन, और स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा इन कोल डिपो को वणी क्षेत्र में स्थानांतरित करने के प्रयास किए गए। परंतु अब तक किसी भी प्रयास को ठोस अमल में नहीं लाया जा सका। क्षेत्र में खुलेआम पे-लोडर जैसी भारी मशीनरी का उपयोग कर कोयले की छंटनी की जाती है, जिससे आसमान में धूल के गुबार छा जाते हैं। यह गंभीर वायु प्रदूषण का कारण बन रहा है।
जनता के बीच उठते सवाल
स्थानीय नागरिक अब यह पूछने लगे हैं कि आखिर MPCB के अधिकारी इन अवैध गतिविधियों को रोकने में क्यों असमर्थ हैं? क्या कहीं न कहीं कोयला व्यापारियों और अधिकारियों के बीच साठगांठ का मामला है? इन सवालों को तब और बल मिलता है जब देखा जाता है कि वर्षों से चली आ रही कार्रवाइयाँ केवल नोटिस थमाने और रिपोर्ट भेजने तक सीमित रही हैं।
MPCB की कार्रवाई मात्र औपचारिकता
MPCB ने समय-समय पर कोल डिपो पर छापेमारी की, रिपोर्टें तैयार कीं और मंत्रालय तक भेजीं। लेकिन स्थानीय स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। नतीजतन, प्रतिबंधित डिपो अब भी सक्रिय हैं और दिनदहाड़े भारी वाहनों की मदद से धूल उड़ाते हुए कोयले की छंटनी कर रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
NGT गाइडलाइन और नियमों की अवहेलना
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) के दिशा-निर्देशों के अनुसार जिले में किसी भी कोल डिपो को अनुमति नहीं दी जा सकती। बावजूद इसके, चंद्रपुर, पड़ोली और नगाला क्षेत्रों में दर्जनों कोल डिपो धड़ल्ले से काम कर रहे हैं। यह सवाल उठाता है कि आखिर किसके संरक्षण में यह गतिविधियाँ चल रही हैं?
प्रदूषण के विरुद्ध जनजागरण की आवश्यकता
चंद्रपुर को पहले ही देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल किया जा चुका है। ऐसे में प्रदूषण को लेकर उदासीनता चिंताजनक है। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो यह मामला आने वाले समय में जन आंदोलन का रूप ले सकता है। स्थानीय नागरिक अब इस मुद्दे पर संगठित हो रहे हैं। आने वाले दिनों में यदि कोल डिपो पर कार्रवाई नहीं हुई तो MPCB कार्यालय तक विरोध प्रदर्शन की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
कोयले की काली कमाई से मलाई
चंद्रपुर के अवैध कोल डिपो न केवल नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि स्वास्थ्य, पर्यावरण और कानून व्यवस्था पर भी गंभीर असर डाल रहे हैं। अब समय आ गया है कि प्रशासन इन गतिविधियों के विरुद्ध न केवल दिखावटी कार्रवाई, बल्कि प्रभावी एवं पारदर्शी उपाय करे। जब तक जनता की आवाज़ को गंभीरता से नहीं सुना जाएगा, तब तक यह “धूल का खेल” बंद होता नहीं दिखता। यह कोल डिपो दिन-दहाड़े पे-लोडर जैसे विशाल वाहनों का उपयोग कर कोयले को हवा में उछालकर उसकी छंटनी करते है। आसमान में धूल के गुबार उड़ाते हैं। इसके बावजूद MPCB के क्षेत्रिय अधिकारी तानाजी यादव अवैध कोल डिपोधारकों का बाल भी बाका नहीं कर पा रहे हैं। क्या मिलीभगत के कारण ही यह काला खेल चल रहा है ? क्या कोयले की काली कमाई से कोई मलाई खा रहा है ? यह सवाल अब आम नागरिकों की ओर से पूछा जाने लगा है।