कांग्रेस-भाजपा व अन्य छुटभैये नेताओं की वसूली पर पुलिस का नहीं नियंत्रण!

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  • पुलिस की मौजूदगी में भी गालीगलौज, धमकाने के मामले बढ़े
  • बड़े नेताओं के साथ फोटो खींचवाने, सोशल मीडिया पर वायरल करने की नीति
  • प्रशासन के अधिकारियों पर दबाव बनाकर वसूली गैंग बन रही छुटभैयों की टीम

चंद्रपुर :

छिटपूट आंदोलन करना, किसी मामूली प्रकरण की शिकायत कर देना, किसी मामले में निवेदन लेकर अधिकारियों के पास पहुंच जाना, किसी को उसकी गड़बड़ी दिखाकर धमकाना, प्रशासन के अधिकारियों पर दबाव बनाना, बड़े नेताओं के साथ फोटो खींचवाना, उन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर वायरल करना, बड़े नेताओं के स्वागत में शहर भर में अवैध होर्डिंग्स लगाना यह सभी हरकतें आजकल चंद्रपुर शहर में आम बात बन चुकी है। लेकिन इन हकरतों को अंजाम देने वाले कांग्रेस, भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों में सक्रिय छुटभैया नेताओं की गैंग की हिम्मत अब इतनी बड़ गई है कि वे पुलिस की मौजूदगी में भी गालीगलौज, धमकी और अपना रौब झाड़ने लगे हैं। अधिकारी वर्ग भी इनकी हरकतों से काफी परेशान हैं। लेकिन पुलिस विभाग का इन वसूलीबाज छुटभैया नेताओं पर कोई नियंत्रण दिखाई नहीं पड़ रहा है।

छुटभैये नेताओं का उदय पर प्रशासन की चुप्पी 

पहले राजनीति को समाजसेवा का एक साधन माना जाता था, लेकिन समय के साथ यह केवल धन कमाने का जरिया बन गई है। वर्तमान समय में कई छोटे-मोटे नेता (छुटभैये नेता) राजनीति का इस्तेमाल केवल अपने स्वार्थों के लिए कर रहे हैं। जनता के भले के बजाय, इनका ध्यान सिर्फ पैसे और ताकत हासिल करने पर केंद्रित रहता है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है। चंद्रपुर में अनेक छुटभैया नेताओं का उदय हो चुका है। लेकिन इन पर प्रशासन के किसी भी विभाग का नियंत्रण न होना, हैरत की बात है।

अधिकारियों पर धाक जमा रहे, फिर भी खामोशी !

छोटे पदों पर होने के बावजूद ये छुटभैये नेता राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर लाभ कमाने में लगे रहते हैं। अपनी धाक जमाने के लिए वे कुछ करीबी समर्थकों के साथ मिलकर काम करते हैं और जहां मौका मिलता है, वहां अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश करते हैं। जब भी कोई छोटी सी गड़बड़ी नजर आती है, ये नेता मीडिया के कुछ करीबी पत्रकारों को बुलाकर हंगामा खड़ा कर देते हैं। यदि इससे आर्थिक लाभ नहीं मिलता, तो कम से कम राजनीतिक लाभ जरूर पाने की कोशिश करते हैं। यह प्रवृत्ति राजनीति को गलत दिशा में ले जा रही है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि प्रशासन और पुलिस इस पर ध्यान नहीं देते, जिससे आम जनता में चिंता बढ़ती जा रही है।

व्यापार और उद्योगों पर दबाव बनाने की रणनीति

इन छुटभैये नेताओं का निशाना आमतौर पर कोयला, रेत, उद्योग और व्यापारी होते हैं। रात में पार्टी और मटरगश्ती करने वाले ये नेता दिन में सफेद कपड़े पहनकर खुद को कड़क नेता के रूप में प्रस्तुत करते हैं। पहचानना हो तो इनके गले में राजनीतिक दल के दुपट्टे देखे जा सकते हैं। इनके साथ कुछ हट्टे-कट्टे बेरोजगार युवा होते हैं, जो हर समय नारे लगाने और किसी भी विवाद को बढ़ाने के लिए तैयार रहते हैं। वे बॉडीगार्ड की तरह इनके साथ चलते हैं और इन्हीं के इशारे पर कई तरह के काम अंजाम दिए जाते हैं।

अधिकारियों की ताकत कम पड़ रही

व्यापारियों और उद्योगपतियों को डराने-धमकाने की घटनाएं आम हो गई हैं। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कोयला व्यापारी हो, रेत का कारोबारी हो, उद्योग का प्रबंधक हो या फिर बाजार का कोई बड़ा दुकानदार – इन नेताओं के जाल में फंस सकता है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि सब कुछ जनता के सामने हो रहा है, लेकिन कोई इनसे सवाल पूछने की हिम्मत नहीं करता। प्रशासनिक अधिकारी भी इनकी ताकत के आगे चुप रहना ही बेहतर समझते हैं।

छुटभैये नेताओं को संरक्षण कौन देता है?

छोटे-मोटे नेताओं की बढ़ती कारगुजारियों से जनता परेशान हो चुकी है। आए दिन कोई न कोई व्यक्ति इनके चंगुल में फंस जाता है। ये नेता अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखते हैं ताकि जब भी किसी विवाद की खबर मिले, वे तुरंत वहां पहुंच जाएं। पहले दबाव बनाकर मामला सुलझाने की कोशिश की जाती है। यदि कोई व्यक्ति इनके दबाव में नहीं आता, तो ये आंदोलन, शिकायतें और वरिष्ठ नेताओं से फोन कॉल करवाने का खेल शुरू कर देते हैं। यदि फिर भी बात नहीं बनती, तो मामला सीधे मंत्रालय तक पहुंचाया जाता है। इन झंझटों से बचने के लिए लोग अक्सर इन नेताओं को मोटी रकम देकर पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं। यही कारण है कि इन नेताओं का हौसला बढ़ता जाता है और इनके समर्थक भी लगातार बढ़ते रहते हैं। राजनीति के नाम पर वसूली का यह पूरा तंत्र कुछ विशेष नेताओं और अधिकारियों के समर्थन से चलता है। यह स्थिति बताती है कि भ्रष्टाचार किस हद तक राजनीति में घर कर चुका है।

छुटभैये नेताओं की आमदनी का स्रोत क्या है?

इन नेताओं को दिनभर राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त देखा जाता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर इनकी आमदनी का स्रोत क्या है? शाम होते ही ये महंगी पार्टियों में नजर आते हैं। इनके पेट्रोल और अन्य खर्चों की व्यवस्था कहां से होती है? यह सवाल आम जनता को भी परेशान करता है।

  • – ये कोई नियमित नौकरी नहीं करते।
  • – इनका कोई बड़ा व्यवसाय या उद्योग नहीं होता।
  • – पुश्तैनी करोड़ों की संपत्ति भी इनके पास नहीं होती।
  • – फिर भी, इनके पास महंगी गाड़ियां, समर्थकों की भीड़ और पार्टी करने के लिए पर्याप्त पैसा होता है।

क्या पुलिस और प्रशासन को इनके स्रोतों की जांच नहीं करनी चाहिए ? 

इन छुटभैये नेताओं की संपत्ति और फंडिंग का सही विश्लेषण क्यों नहीं किया जाता? आखिर इन्हें फंड और डोनेशन देने वाले कौन लोग हैं? यदि पुलिस और जांच एजेंसियां ईमानदारी से इनकी गतिविधियों पर नजर डालें, तो राजनीतिक भ्रष्टाचार के कई राज खुल सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा, जिससे यह संदेह बढ़ता जा रहा है कि कहीं पुलिस और प्रशासन भी तो इनकी गतिविधियों को अनदेखा करने में शामिल नहीं है? छुटभैये नेताओं का यह वर्चस्व लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती बन चुका है। राजनीति, जो कभी समाजसेवा का माध्यम हुआ करती थी, अब स्वार्थ और भ्रष्टाचार का अड्डा बनती जा रही है। यदि समय रहते इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगाई गई, तो इसका दुष्परिणाम पूरे समाज को भुगतना पड़ सकता है। प्रशासन और पुलिस को इन गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई करनी होगी, ताकि राजनीति अपने मूल उद्देश्य – जनसेवा – की ओर लौट सके।