भारत की आर्थिक गति धीमी है तो वर्ष 2047 तक भारत कैसे बनेगा विकसित राष्ट्र ?

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आप सभी लोग जानते ही है कि भारत की आर्थिक रफ्तार किस कदर से आगे बढ़ रही है। हमारी आर्थिक गति यदि धीमी चल रही हो तो हम वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र के रूप में कैसे उभर पाएंगे ? यह सवाल देश के न केवल आर्थिक जानकारों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है बल्कि आम नागरिक भी अपने देश की आर्थिक स्थिति को लेकर अब चिंता करने लगा है। जनता के बीच आर्थिक मामलों पर अब चर्चा होने लगी है। इस विषय को गहराई से समझने के लिए हमें कुछ तथ्यों पर विचार करना जरूरी है।

मैकेंजी नामक एक अंतरराष्ट्रीय सलाहकार कंपनी ने भारत के भविष्य पर एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है, क्या भारत बूढ़ा होने से पहले अमीर बन पाएगा? दुनिया के लगभग सभी विकसित देशों में बुजुर्गों की संख्या अधिक है। 1985 में चीन की औसत आयु 32.25 वर्ष थी, जो अब बढ़कर 39.77 वर्ष हो गई है। वर्तमान में भारत को दुनिया का सबसे युवा देश माना जाता है, जिसकी औसत आयु 29.5 वर्ष है।

वर्ष 2011 में, भारत की 15 से 59 वर्ष की आयु वर्ग की जनसंख्या 60.7% थी, जो 2022 में बढ़कर 63% हो गई। इसे अर्थशास्त्र में “जनसंख्या लाभांश” (Demographic Dividend) कहा जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत 2005-06 से युवाओं के युग में प्रवेश कर चुका है, जो 2055 तक जारी रहेगा। मैकेंजी इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास अमीर बनने के लिए अब केवल 33 वर्ष शेष हैं। रिपोर्ट बताती है कि वर्तमान में भारत में प्रत्येक बुजुर्ग व्यक्ति के मुकाबले दस लोग रोजगार में सक्रिय हैं, लेकिन 2050 तक यह अनुपात घटकर 4.6 हो जाएगा और 2100 तक यह जापान के स्तर पर यानी 1.9 तक पहुंच जाएगा। इसलिए, आने वाले 25-30 वर्ष भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

भारत सरकार ने 2047 तक देश को विकसित बनाने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, हाल ही में जारी आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अगले दो दशकों तक भारत को 8% की निरंतर विकास दर बनाए रखनी होगी। यूपीए सरकार के दौरान भारत की औसत विकास दर 7.6% थी, जबकि मोदी सरकार के दस वर्षों में यह केवल 6% रही। सरकार के अपने अनुमान के अनुसार, इस वर्ष यह दर 6.4% और अगले वर्ष 6.3% से 6.8% के बीच रहने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे मूडीज और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की आर्थिक गति के धीमे होने को लेकर चिंता व्यक्त की है।

वर्तमान में भारत की प्रति व्यक्ति आय लगभग 2,500 डॉलर है, जबकि अमेरिका की 82,190 डॉलर है। भारत की प्रति व्यक्ति आय वृद्धि दर 4.52% है। विश्व बैंक के अनुसार, अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय के एक चौथाई हिस्से तक पहुंचने के लिए भारत को 75 साल और लगेंगे। मौजूदा गति से, भारत अगले 30 वर्षों में भी विकसित देशों की न्यूनतम प्रति व्यक्ति आय (12,500 डॉलर) के आधे तक नहीं पहुंच पाएगा। इसी कारण, भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने कहा कि “भारत बूढ़ा होगा, लेकिन गरीब ही रहेगा।”

भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। भारत की अर्थव्यवस्था को चार प्रमुख स्तंभों से गति मिलती है। क्रय शक्ति (Purchasing Power) : वर्ष 2023-24 में भारत की क्रय शक्ति की वृद्धि दर केवल 4% रही, जो पिछले 20 वर्षों में सबसे कम है। घरेलू बचत 47 वर्षों में सबसे कम स्तर पर है, जिससे जनता की क्रय शक्ति प्रभावित हुई है। 2022 में 45.4% युवा बेरोजगार थे, जिनमें से 29.1% शिक्षित बेरोजगार थे। संगठित क्षेत्र में रोजगार घट रहा है और असंगठित क्षेत्र, जो सबसे अधिक रोजगार प्रदान करता था, नोटबंदी और कोरोना महामारी के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ। 2015-22 के बीच 24 लाख छोटे उद्योग बंद हो गए और 81 लाख नौकरियां चली गईं।

निजी निवेश (Private Investment) की हालत को आप लोग जानते ही हैं। “मेक इन इंडिया” योजना के तहत विनिर्माण क्षेत्र में 12-14% की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन वास्तविक वृद्धि केवल 5.8% रही। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में विनिर्माण का हिस्सा 25% तक लाने का लक्ष्य था, जो केवल 15.8% पर अटका हुआ है। 2022 तक 10 करोड़ नई नौकरियां पैदा करने का वादा किया गया था, लेकिन मौजूदा नौकरियों की संख्या भी घट गई है।

निर्यात, व्यापार और विदेशी निवेश के आकलन से कुछ बातें पता चलती है। यूपीए सरकार के समय भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) जीडीपी का 3.6% था, जो अब घटकर 0.8% रह गया है। विदेशी निवेशक अब भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकाल रहे हैं। यूपीए शासन के दौरान भारत की निर्यात वृद्धि दर 25.2% थी, जो अब 20% से नीचे आ गई है।

सार्वजनिक निवेश (Public Investment) में हमारा हाल किसी से छिपा नहीं है। मोदी सरकार बुनियादी ढांचे पर भारी खर्च कर रही है, जिससे भारत का कुल कर्ज 83% जीडीपी तक पहुंच गया है (जो यूपीए शासन में 67% था)। सरकार राजकोषीय घाटा कम करने की दिशा में बढ़ रही है, जिससे विकास परियोजनाओं और कल्याणकारी योजनाओं के बजट में कटौती हो रही है। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश नहीं किया जा रहा है।

सरकार ने मध्यम वर्ग के लिए आयकर में छूट दी है, लेकिन इसका लाभ केवल 1 करोड़ लोगों को मिलेगा। असंगठित क्षेत्र के 94% लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए रोजगार सृजन और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (MSME) को समर्थन देने की आवश्यकता है। मनरेगा जैसी योजनाएं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल दे सकती हैं। “स्किल इंडिया” और “स्टार्टअप इंडिया” जैसी योजनाओं का वास्तविक प्रभाव भी आंका जाना चाहिए।

निवेश में गिरावट का एक कारण लालफीताशाही और जटिल कर प्रणाली भी है। व्यापार करने में आसानी (Ease of Doing Business) अभी भी कागजों तक ही सीमित है। 21,300 से अधिक धनी भारतीयों ने दूसरे देशों की नागरिकता ले ली है। धार्मिक तनाव, सरकारी नीतियों में अनिश्चितता, संस्थागत निष्पक्षता पर संदेह और कुछ उद्योगपतियों की बढ़ती एकाधिकार प्रवृत्ति के कारण निवेश का माहौल बिगड़ रहा है। भारत में 80% लोगों की दैनिक आय 200 रुपये से कम है, जबकि शीर्ष 1% लोगों के पास देश की 40% संपत्ति है।

सरकार यदि आंकड़े छिपाने, प्रचार अभियान चलाने, विरोधियों की आवाज दबाने और सरकारी संस्थाओं का दुरुपयोग करने में लगी रही, तो देश को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक समृद्ध भारत बनाने के लिए ठोस नीति और सही दिशा में प्रयास आवश्यक हैं।