चंद्रपुर जिले के 168 गांवों में आज भी नहीं आतीं बसे, सरकारी बस सेवा बन गया ख्वाब, निजी वाहनों पर निर्भरता बढ़ी

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चंद्रपुर:

चंद्रपुर जिला, जहां आज भी 168 गांव सार्वजनिक परिवहन सेवा (एसटी बस) से वंचित हैं। इस स्थिति ने छात्रों और नागरिकों के लिए बड़ी असुविधा पैदा कर दी है। निजी वाहन ही उनके लिए आवागमन का मुख्य साधन बन गए हैं। इसके बावजूद जिले के जनप्रतिनिधियों के कानों पर जू तक नहीं रेंग पा रही है। जनता की इस दिक्कत को बरसों से यहां के जनप्रतिनिधियों की ओर से नजरअंदाज किया जा रहा है। इसके चलते आम ग्रामीण जनता को निजी वाहनों का सहारा लेना पड़ रहा है। इसके चलते जहां ग्रामीणों में दुर्घटनाओं का भय बना रहता है, वहीं निजी वाहन मनमानी ढंग से आर्थिक लूट कर रहे हैं।

समस्या का मूल

भारत में स्वतंत्रता के 77 वर्षों बाद भी चंद्रपुर जिले के 1463 गांवों में से 168 गांव ऐसे हैं जहां एसटी (राज्य परिवहन) बसें अब तक नहीं पहुंची हैं। हालांकि, “जहां सड़क है, वहां एसटी” का दावा किया जाता है, लेकिन इन गांवों के लिए यह केवल एक सपना बनकर रह गया है।

– जिले के 1205 गांवों में एसटी बस सेवा उपलब्ध है।

– 88 गांवों वाले गोंडपिपरी तहसील में 22 गांव अब भी सेवा से वंचित हैं।

– बल्लारपुर क्षेत्र का मूल तहसील इस मामले में सबसे बेहतर स्थिति में है, जहां सभी 80 गांव बस सेवा से जुड़े हैं।

वरोरा तहसील में भी संकट  

वरोरा के 7 गांव—जैसे एकोणा, कोहपरा, और बोरी—अब भी बस सेवा से वंचित हैं। छात्रों और नागरिकों को अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए 3 से 5 किमी तक पैदल चलकर मुख्य सड़कों तक पहुंचना पड़ता है।

– एकोणा के नागरिकों को 3 किमी दूर चरूरखटी जाना पड़ता है।

– कोहपरा और बोरी के निवासियों को 5 किमी और 4 किमी की यात्रा करनी पड़ती है।

कुछ गांवों को मिली राहत

पिछले साल तक 175 गांव बस सेवा से वंचित थे। बीते साल में 7 गांवों में बस सेवा शुरू की गई है, जिनमें बब्राळा, बेंबला, और येरगव्हाण प्रमुख हैं।

राजनीतिक बयानबाज़ी और प्रशासनिक जवाबदेही  

पूर्व विधायक सुभाष धोटे का कहना है कि जहां बस सेवा पहुंची है, वहां भी बस समय का पालन नहीं होता। उन्होंने सरकार पर तालुकों में सड़क मरम्मत के लिए धनराशि उपलब्ध न कराने का आरोप लगाया।

विभागीय परिवहन अधिकारी पुरुषोत्तम व्यवहारे ने कहा, “जिन गांवों में सड़कें नहीं हैं, वहां बस सेवा संभव नहीं है। सड़क बनने के बाद ही रूट सर्वेक्षण कर बस सेवा शुरू की जाएगी।”

चिमूर तहसील के हालात  

चिमूर के कई गांव—जैसे सार्वला, डोगर्ला, नवेगांव, और चिखली—आज भी बस सेवा के लिए तरस रहे हैं। ग्रामसभा के प्रस्तावों के बावजूद बस सेवाएं शुरू नहीं हो पाईं।

समस्या की जड़ और समाधान की ओर बढ़ते कदम

सड़कों की खस्ताहाल स्थिति और प्रशासनिक अनदेखी ने इन 168 गांवों के निवासियों को निजी वाहनों पर निर्भर बना दिया है। हालांकि, ई-बस सेवा और अन्य योजनाओं की घोषणाएं उम्मीद की किरण बनकर सामने आई हैं।

क्या यह इंतजार जल्द खत्म होगा, या लालपरी का सपना इन गांवों के लिए और लंबा खिंचता जाएगा ?