अल्ट्राटेक और माणिकगड़ सिमेंट फैक्ट्रियां परोस रही जहर प्रदूषण नियंत्रण के संयंत्र बंद, प्रशासन उदासिन और तकलीफें झेल रहे ग्रामीण  

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प्रदूषण नियंत्रण के संयंत्र बंद, प्रशासन उदासिन और तकलीफें झेल रहे ग्रामीण

चंद्रपुर:

चंद्रपुर जिले के कोरपना तहसील में स्थित आवारपुर, गडचांदूर, और नारंडा जैसे गांवों की कृषि भूमि पर सिमेंट फैक्ट्रियों का कब्जा कर लिया गया। हालांकि, ये फैक्ट्रियां ग्रामीणों को रोजगार दे रही हैं, लेकिन इनसे फैलने वाला प्रदूषण नागरिकों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर भारी पड़ रहा है। अल्ट्राटेक और माणिकगड़ जैसी फैक्ट्रियों के प्रदूषण नियंत्रण करने वाले संयंत्र खुद ही धूल खा रहे हैं। यह बेकार पड़े हुए हैं। इसके चलते जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। और प्रशासन है कि हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है।

प्रदूषण से बढ़ती समस्याएं :

– धूल और धुएं का आतंक :  

सिमेंट फैक्ट्रियों से निकलने वाली धूल और धुआं आसपास के गांवों में एक मोटी परत बना चुका है। गडचांदूर, बैलमपूर, मानोली और गोपालपूर जैसे गांवों में धूल की चादर हर जगह फैली हुई है, जिससे लोगों का बाहर निकलना और सफर करना भी बेहद मुश्किल हो गया है।

– दूषित पानी से जल प्रदूषण :  

फैक्ट्रियों से निकलने वाला गंदा पानी बिना शोधन के सीधे नदियों और नालों में छोड़ा जा रहा है, जिससे जल स्रोत दूषित हो गए हैं। नदियों और नालों का पानी अब पीने योग्य नहीं रह गया है। दूषित पानी का असर पालतू जानवरों और कृषि पर भी हो रहा है।

– स्वास्थ्य पर बुरा असर : 

प्रदूषण के कारण नागरिकों में गंभीर बीमारियां जैसे क्षयरोग (टीबी), कर्करोग (कैंसर), श्वसन संबंधी रोग, और चर्म रोग तेजी से फैल रहे हैं। ग्रामीणों का जीवन प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित हो गया है।

प्रदूषण नियंत्रण उपकरण बेकार :

फैक्ट्रियों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए लगाए गए उपकरण निष्क्रिय पड़े हैं। लंबे समय से इनकी मरम्मत न होने के कारण ये उपकरण किसी काम के नहीं रहे। इससे प्रदूषण की समस्या और भी गंभीर हो गई है।

प्रदूषण के खिलाफ आंदोलन :

बीते कुछ वर्षों में ग्रामीणों ने विभिन्न राजनीतिक दलों के सहयोग से कई बार प्रदर्शन और आंदोलन किए। लेकिन कारखाना प्रबंधन ने समस्या को नजरअंदाज करते हुए केवल आश्वासन दिए। पर्यावरण और प्रदूषण से संबंधित मुद्दों को दबा दिया गया, जिससे लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है।

सरकार और प्रशासन पर सवाल :

हर साल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण विभाग इन फैक्ट्रियों को क्लीन चिट दे देते हैं। इससे साफ है कि कहीं न कहीं प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार हो रहा है। ग्रामीण अब सवाल उठा रहे हैं कि आखिर क्यों प्रशासन और स्थानीय प्रतिनिधि इस गंभीर समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

समाधान की ओर नजर :

– प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की तुरंत मरम्मत और सक्रिय उपयोग सुनिश्चित किया जाए।  

– जल और वायु प्रदूषण रोकने के लिए सख्त नियम लागू हों। 

– ग्रामीणों के स्वास्थ्य के लिए मुफ्त मेडिकल कैंप आयोजित किए जाएं।  

– दूषित पानी के निस्तारण के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हो।  

अंतिम बात

फैक्ट्रियों से हो रहा प्रदूषण ग्रामीणों के लिए बड़ी समस्या बन चुका है। यह न केवल उनकी आजीविका बल्कि उनके स्वास्थ्य और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहा है। सरकार, प्रशासन और स्थानीय नेताओं को इस दिशा में तुरंत कदम उठाने होंगे, अन्यथा यह संकट और गहरा जाएगा।