चंद्रपुर जिले की उपेक्षा : 31,968 किसानों को फसल बीमा के नहीं मिले ₹58.94 करोड़

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चंद्रपुर:

चंद्रपुर जिले के 31,968 किसानों को फसल बीमा के तहत ₹58.94 करोड़ की मुआवजा राशि मंजूर की गई थी। लेकिन, मंजूरी के कई महीनों बाद भी यह राशि किसानों के बैंक खातों में जमा नहीं हुई है, जिसके चलते उन्हें गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

कपास और सोयाबीन की फसल पर आधारित किसान परेशान

खरीफ सीजन में जिले के किसानों ने कपास और सोयाबीन की खेती को प्राथमिकता दी थी।

– कपास का क्षेत्र : 1,69,963 हेक्टेयर  

– सोयाबीन का क्षेत्र : 73,039 हेक्टेयर  

– कुल मिलाकर, 2,42,975 हेक्टेयर भूमि पर इन फसलों की खेती की गई, जो जिले के कुल कृषि क्षेत्र का 52.95% है।

फसल बीमा योजना के तहत, कपास और सोयाबीन उत्पादकों को प्रति हेक्टेयर ₹5,000 की सहायता राशि देने का प्रावधान था। अब तक जिले के 66,860 किसानों के खातों में कुल ₹35.21 करोड़ की राशि जमा की जा चुकी है। हालांकि, शेष 31,968 किसानों को उनकी मंजूर राशि नहीं मिल सकी है।

बकाया राशि का कारण: केंद्र और राज्य सरकार की देरी

सूत्रों के अनुसार, फसल बीमा कंपनियों को केंद्र और राज्य सरकार की ओर से बीमा प्रीमियम का हिस्सा अब तक नहीं मिला है। इस वजह से किसानों को उनकी राशि देने में बाधा उत्पन्न हो रही है।

 

मूल, पोंभुर्णा, और बल्लारपुर तहसीलों का मसला हुआ हल

हालांकि, जिले के तीन तहसीलों – मूल, पोंभुर्णा, और बल्लारपुर के किसानों को उनकी बकाया राशि मिल चुकी है।

– मूल तहसील : 3,150 किसानों को ₹5.92 करोड़  

– पोंभुर्णा तहसील : 5,964 किसानों को ₹8.09 करोड़  

– बल्लारपुर तहसील : 4,906 किसानों को ₹4.75 करोड़  

 

इन तीन तहसीलों के 14,020 किसानों की समस्या तत्कालीन मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी के बाद हल कर दी गई।

किसानों की बढ़ती चिंता

जिन किसानों की राशि अभी भी अटकी हुई है, वे आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। इस देरी के कारण उन्हें कृषि निवेश के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है, जिससे उनकी समस्याएं और बढ़ रही हैं।

सरकार और प्रशासन से गुहार

किसानों ने राज्य और केंद्र सरकार से जल्द से जल्द उनकी बकाया राशि जारी करने की मांग की है। फसल बीमा योजना किसानों की मदद के लिए बनाई गई थी, लेकिन देरी से इसका उद्देश्य अधूरा रह जाता है।

अंतिम बात

यह तथ्य किसानों की समस्याओं और सरकारी प्रक्रियाओं की धीमी गति को उजागर करता है। यह बताता है कि किस तरह से मंजूरी के बावजूद, योजनाओं का लाभ सही समय पर न मिलने से किसान अपने हक के लिए संघर्ष करने को मजबूर हो जाते हैं।