चंद्रपुर :
वरोरा के रत्नमाला चौक में किसानों ने “भिक्षा मांगो” आंदोलन का आयोजन किया। इस आंदोलन का उद्देश्य राज्य सरकार और बीमा कंपनियों का ध्यान आकर्षित करना था। पिछले वर्ष हुई भारी बारिश से सोयाबीन और कपास की फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ। बीमा कंपनी ने सिर्फ सोयाबीन फसल का बीमा भुगतान किया, लेकिन कपास की फसल के लिए मुआवजा नहीं दिया। किसानों की नाराजगी और मांगों को दरकिनार किये जाने से सरकार के खिलाफ किसानों में रोष पनप रहा है। इसके बावजूद जिले के जनप्रतिनिधियों की ओर से इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
किसानों के प्रमुख मुद्दे :
1. किसानों का कहना है कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण हर साल उनकी फसलें खराब हो जाती हैं।
2. बीमा कंपनियां और राज्य सरकार फसल बीमा योजनाओं के तहत उचित मुआवजा नहीं देतीं।
3. सरकार की लालफीताशाही और फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कमी से किसान लगातार आर्थिक संकट में हैं।
आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई ?
किसान नेता किशोर डुकरे के नेतृत्व में 10 दिसंबर को दोपहर 12 बजे रत्नमाला चौक से तहसील कृषि कार्यालय तक यह अनोखा प्रदर्शन हुआ। आंदोलन के दौरान वणी के नव-नियुक्त विधायक संजय देरकर और उनकी पत्नी ने भी इसमें भाग लिया।
भिक्षा मांगकर जुटाई गई राशि :
आंदोलन में जमा हुए 4,471 रुपये तहसील कृषि अधिकारी के माध्यम से सरकार को सौंप दिए गए।
किसानों ने यह संदेश दिया कि अगर सरकार के पास मुआवजा देने के लिए पैसे नहीं हैं, तो वे स्वयं पैसे जुटाकर सरकार को वापस कर रहे हैं।
किसानों की समस्याएं और मांगें :
बीमा का भुगतान : किसानों का कहना है कि फसल बीमा योजना का लाभ उन्हें पूर्ण रूप से मिलना चाहिए।
नुकसान का आंकलन : सरकारी विभागों द्वारा नुकसान का सही आंकलन किया जाए।
मुआवजा : चना, गेहूं, और अन्य फसलों पर हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि का उचित मुआवजा मिले।
न्यूनतम समर्थन मूल्य : फसल की लागत निकालने और किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए MSP सुनिश्चित हो।
आंदोलन में शामिल प्रमुख लोग :
किशोर डुकरे, छोटू भाई शेख, दत्तभाऊ बोरेकर, श्याम लेडे, वसंतराव विधाते, पुष्पाकर खेवले, तुकाराम निब्रड, संदीप वासेकर, मनोहर आस्वले, केशव ताजने, वृषभ आस्वले, और प्रसाद मिलमीले ने आंदोलन में हिस्सा लिया।
किसानों की अपील :
किसानों ने अपनी बात साफ कर दी है कि जब तक सरकार उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लेगी, तब तक वे इस प्रकार के अनोखे और शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते रहेंगे।
यह आंदोलन सिर्फ किसानों की आर्थिक स्थिति को उजागर नहीं करता, बल्कि सरकार और समाज से उनके लिए न्याय की अपील भी करता है।