निर्वाचन आयोग करता क्या है?

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  • समपत्ति की झूठी जानकारी देने वाले उम्मीदवारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करता क्यों नहीं?
  • खुले हाथों से चुनाव प्रचार में धन लुटानेवालों की संपत्ति की जाँच जरूरी

चंद्रपुर :
नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामे में पत्नी के साथ अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा देना हर उम्मीदवार के लिए अनिवार्य है| हर चुनाव में सभी प्रत्याशी इसका पालन करते है| हर निर्वाचन क्षेत्र में इसके लिए भारतीय निर्वाचन (चुनाव) आयोग द्वारा स्वतंत्र खर्च निरीक्षक की नियुक्ति की जाती है| वो उम्मीदवार पर अपनी पैनी नजर रखता है| चुनाव आयोग द्वारा दिये गये दिशा निर्देशों के अनुसार खर्च हुआ है या नहीं इसकी समय समय पर जाँच करता है| संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव निर्णय अधिकारी, सहायक चुनाव अधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी एवं जिलाधिकारी, क्षेत्रीय अधिकारी, जोनल अधिकारी ऐसी लंबी फौज इलेक्शन ड्युटी के नाम पर तैनात होती है| पूरी चुनाव प्रक्रिया पर नामांकन से लेकर मतगणना तक नजर रखने तथा चौकसी बरतने हेतु विभिन्न टीमें गठीत की जाती है| जो सतर्कता से वॉच रखती है| ?इतना सब कुछ होने के बावजूद भी जो कुछ होना है व होकर ही रहता हैत| उम्मीदवार सम्पत्ति का ब्यौरा देने के मामले में तथा नियमानुसार रोज के खर्च का विवरण प्रस्तुत करने के बारे में जानबूझकर तथा सोची समझी साजिश के तहत ग़डबडी कर जाते है| वास्तव में उम्मीदवारों से ईमानदारी की अपेक्षा होती है| समूचा प्रशासन तंत्र और निर्वाचन आयोग उनसे सही और सच्ची जानकारी की अपेक्षा रखता है| लेकिन देखा गया है कि वर्तमान दौर के अधिकांश प्रत्याशी उनकी इन अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते| अपनी सम्पत्ति छुपाते हैं और खर्च का ईमानदारी से ब्यौरा नहीं देते| ऐसा करके वे अपराध करते हैं| निर्वाचन आयो के दिशा निर्देशों एवं आदेशों का पावलन नहीं करते| आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करते हैं| बडा गुनाह करते है लेकिन दुख की बात यह है कि निर्वाचन आयोग और प्रशसनिक मशिनरी उनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं करती| वास्तव में चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों की सम्पत्ति की अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुये जाँच करनी चाहिेए| सभी की न सही पर जिन पर संदेह है और जिनके बारे में शिकायतें हैं, कम से कम उनकी तो जांच हनी ही चाहिये| समय का तकाजा और पारदर्शी चुनाव की मांग तो यही कहती है| पर ऐसा नहीं होता| चुनाव आयोग ऐसी किसी भी शिकायत को गंभीरता से नहीं लेता| यही वजह है कि शपथपत्र में अपनी सम्पत्ति की सही जानकारी न देने वाले तथा खर्चे का सही ब्यौरा न देने वाले प्रत्याशियों की संख्या दिन ब दिन लगातार बढती जा रही है|, लोकतंत्र के लिए यह अच्छी बात नहीं है|

हलफनामे में झूठी जानकारी
अपनी और पत्नी की मिलाकर कुल संपत्ति की सही जानकारी देना चुनाव आयोग के नियमानुसार अनिवार्य है| फिर भी कुछ उम्मीदवार अपनी संपत्ति छुपाते हैं|, पत्नी की सही संपत्ति नहीं बताते| बेटे बेटियों और परिवार के अन्य सदस्यों के नाम होने वाली सम्पत्ति का तो हलफनामे में जिक्र तक नहीं होता| उसे जानबूझकर छुपा दिया जाता है| ऐसा किसी खास मकसद से किया जाता है| पर व गलत है,| कानूनन गुनाह है| पर ऐसे मामलों में चुनाव आयोग कुछ भी नहीं कर रहा है| इसी वजह से लोगों की हिंमत बढ गयी है,| चुनावल फिर व लोकसभा का हो, विधानसभा का हो य|ा फिर किसी स्थानीय स्वायत्त संस्था (नपा, मनपा आदि) का हो ऐसी मानसिकता वाले उम्मीदवारों की संख्या लगातार बढती जदा रही है| जिसका मकान 400 करोड रुपये लागत हो, वो अपनी संपत्ति करीब 4 करोड बता रहा हैत| जिसकी पत्नी के पास करीब दो किलो के स्वर्णाभूषण हो व सिर्फ 20-50 ग्राम का एक नेकलेस दिखाता है| वो कहता है, न उसके पास कोई चौपहिया गाडी है और न उसकी पत्नी के पास जबकि हररोज रात को उसके मकान के सामने कीमती गाडियों का जो जमाव़डा जम जाता है वो किसका है और कहां से आता है इस सवाल का कोई भी जवाब उसके पास नहीं होता|, ऐसे एक नहीं कई उम्मीदवार है| इसका मतलब यह नहीं है कि सभी ऐसे है मगर जो है वे पूरीचुनाव प्रक्रिया को सडा गडा डाल रहे हैं,| मुक्त, पारदर्शी व निर्भय चुनाव को खतरे में डाल रह हैं| लोकतंत्र को चोट पहुंचा रहे हैं| सवाल है कि हलफनामे में झूठी जानकारी देने वाले अगर चुनकर भी आते हैं तो वे शहर, जिला और अपने निर्वाचन क्षेत्र का क्या और कैसे विकास करेंगे तथा उनसे लोकतंत्र का कौन सा भला होगा? सवाल है कि हलफनामे में झूठी जानकारी देने तथा खर्च का ब्यौरा देते समय बेईमानी करने का यह चलन ‘राजनीति का भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार की राजनीति’ की देन तो नहीं?