राजनीतिक उठापटक और बगावत की ज्वाला

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 कहीं खुशी, कहीं गम से सराबोर हो रहे राजनीति दल, नेतागण और कार्यकर्ता

भाजपा : राजुरा में विद्रोह, वरोरा व ब्रम्हपुरी में असंतोष

कांग्रेस : वरोरा, चंद्रपुर, बल्लारपुर सिरदर्द से कम नहीं

चंद्रपुर: महाराष्ट्र में चुनावी बिगुल बजने के बाद जो हालात पैदा हुए है, उसकी आंच चंद्रपुर जिले में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रही है। जिले में कुल 6 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव होने हैं। सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी ताकत को दर्शाने के लिए आतूर है। हर कोई जीत का दावा तो कर रहा है लेकिन जिस तरह से टिकट के बंटवारे को लेकर देरी हो रही है, उससे कार्यकर्ताओं और नेताओं का सिरदर्द बढ़ता ही जा रहा है। जहां उत्सुकता चरम पर पहुंच चुकी हैं। वहीं राजनीतिक उठापटक के चलते बगावत के स्वर हर दल में साफ तौर पर सुनाई दे रहे हैं।

चंद्रपुर

सबसे पहले तो निर्दलीय विधायक किशोर जोरगेवार के भाजपा प्रवेश को लेकर करीब 2 माह तक अटकलों का दौर चला। पश्चात चुनाव करीब आते ही जोरगेवार राकांपा के शरद पवार गुट की ओर मुड़ गये। कांग्रेस द्वारा विरोध दर्शाने पर वे पुन: भाजपा की राह चल पड़े। इस बार उनके सारथी बने पूर्व केंद्रीय मंत्री हंसराज अहिर। हन हालातों को देखकर जिले के पालकमंत्री सुधीर मुनगंटीवार विचलित हो गये। अपने सहयोगी ब्रिजभूषण पाझारे और देवराव भोंगले को लेकर वे दिल्ली पहुंच गये। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्‌डा तक कार्यकर्ताओं की भावनाएं पहुंचाई। पाझारे के लिए चंद्रपुर के टिकट की मांग कर दी। लेकिन इस खींचतान में दिल्ली के वरिष्ठों ने मुनगंटीवार के बजाय अहिर को तवज्जों दिया। भाजपा ने अंतत: जोरगेवार पर मुहर लगा दी। जोरगेवार का भाजपा पक्ष प्रवेश मुनगंटीवार की मौजूदगी में ही करा लिया। मुनगंटीवार की इस हार के बीच वे अपने करीबी देवराव भोंगले को राजुरा से टिकट दिलाने में कामयाब रहे, यह एक बड़ी सफलता मानी जाएगी। जबकि कांग्रेस की ओर से कौनसे उम्मीदवार को जोरगेवार के खिलाफ जंग के मैदान में उतारा जाएगा, यह अब तक तय नहीं हो पाया है।

ब्रम्हपुरी

यहां बरसों से कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। राज्य के विरोधी दल नेता व कांग्रेस विधायक विजय वडेट्‌टीवार की मजबूत स्थिति को देखते हुए पहले ही चरण में उनकी टिकट फाइनल हो गई। लेकिन बीते दिनों भाजपा नेता परिणय फूके एवं कांग्रेस सांसद प्रतिभा धानोरकर की ओर से यहां कुणबी समाज बंधु को टिकट देने का बयान शायद भाजपा ने गंभीरता से ले लिया। भाजपा ने यहां कुणबी चेहरा कृष्णलाल सहारे को टिकट तो दे दिया, लेकिन बरसों से भाजपा की सेवा कर रहे वरिष्ठ नेता प्रा. अतुल देशकर की दावेदारी को खारीज कर दिया। ऐसे में देशकर का नाराज होना तो जायज है। लेकिन इस नाराजगी का भाजपा को कितना नुकसान होगा और कांग्रेस को क्या लाभ हासिल होगा, यह तो वक्त ही बताएगा।

चिमूर

भाजपा नेता बंटी भांगडिया यहां के विधायक हैं। उनका वजन भी राज्य की राजनीति में एक अलग महत्व रखता है। उनके खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए आतुर सतिश वारजुकर को पिछली बार भी कांग्रेस ने मौका दिया था। लेकिन वारजुकर जीत नहीं पाये। परंतु इस बार फिर से कांग्रेस ने वारजुकर पर दांव लगाया है। यहां कांग्रेस की ओर से कोई नया चेहरा देने की भूल नहीं की गई। गत वर्षों में भाजपा की नीतियों के खिलाफ संघर्षरत कांग्रेस के कार्यकर्ता इस बार के चुनावों में क्या कमाल कर पाते हैं। यह कहा नहीं जा सकता। यहां टक्कर बराबरी की नजर आती है।

वरोरा

वरोरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र तो बरसों से कांग्रेस का ही गढ़ रहा है। गत चुनावों में यहां की जनता ने प्रतिभा धानोरकर को विधायक बनाया था। परंतु पूर्व सांसद बालू धानोरकर के आकस्मिक निधन के बाद उन्हें संसदीय चुनावी मैदान में उतरना पड़ा और भारी बहुमत से वे जीतकर आ गई। ऐसे में वरोरा की रिक्त जगह को भर पाना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर बन गयी है। क्योंकि इस सीट के लिए एक ओर जहां प्रतिभा धानोरकर के सगे भाई प्रवीण काकडे की ओर दावा पेश किया जा रहा है तो दूसरी ओर स्व. बालू धानोरकर के बड़े भाई भी इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए आग्रही है। बहरहाल टिकट का फैसला तो नहीं हुआ है लेकिन पूर्व मंत्री संजय देवतले के पुत्र करण देवतले को वरोरा से भाजपा की टिकट मिलने के कारण मनसे से भाजपा में आये वरिष्ठ नेता रमेश राजुरकर पार्टी के इस फैसले से काफी नाराज है। इस नाराजगी का भाजपा पर क्या असर होगा, यह बताना मुश्किल है।

बल्लारपुर

राज्य के वन मंत्री एवं जिले के पालकमंत्री सुधीर मुनगंटीवार, महाराष्ट्र के शिर्ष नेताओं में गिने जाते हैं। भाजपा के दिग्गज नेता के रूप में बनी उनकी छवि ने यहां उन्हें बरसों से विधायक और मंत्री बनने का सम्मान दिलाया है। यही वजह है कि भाजपा की ओर से जारी की गई प्रथम सूची में ही उनका टिकट कंफर्म हो गया था। लेकिन यहां सबसे बड़ी समस्या कांग्रेस के लिए उभरकर सामने आयी है। क्योंकि एक ओर जहां शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के नेता संदीप गिर्हे बल्लारपुर की टिकट मांग रहे हैं, वहीं कांग्रेस में इस सीट को पाने के लिए दावेदारों की कोई कमी नहीं है। यह कांग्रेस की परंपरागत सीट है। इसलिए ठाकरे गुट को यह सीट जाएगी, इसकी संभावना कम ही नजर आती है। इस सीट के लिए कांग्रेस की ओर से संतोषसिंह रावत और डॉ. अभिलाषा गावतूरे को प्रबल दावेदार समझा जा रहा है। इस खींचतान में यदि यहां से बगावत करने वालों की संख्या बढ़ेगी तो यकीनन इसका लाभ भाजपा को मिलेगा। यदि बगावत नहीं हो पाती है तो मुकाबल कुछ हद तक बराबरी पर देखा जा सकता है।

राजुरा

सबसे दिलचस्प और चर्चा का विषय बन चुके राजुरा निर्वाचन क्षेत्र में अनेक राजनीतिक उथलपूथल हो रहे हैं। सबसे पहले तो करीब 7 हजार फर्जी वोटरों का मामला उजागर हुआ तो जिलाधिकारी को जांच के आदेश देते हुए पुलिस में मामला दर्ज कराना पड़ा। हालांकि इस मामले में एक सप्ताह गुजर जाने के बावजूद अब तक किसी के गिरफ्तार होने की जानकारी नहीं है। पालकमंत्री सुधीर मुनगंटीवार के दिल्ली भेंट से लौटते ही उनके करीबी देवराव भोंगले को राजुरा की सीट घोषित कर दी गई। घुग्घुस निवासी भोंगले को पार्सल करार देते हुए राजुरा के स्थानीय भाजपा नेताओं और पूर्व विधायक एड. संजय धोटे और सुदर्शन निमकर खासा नाराज हो गये। न केवल नाराजगी बल्कि यहां बगावत का डंका भी बजने लगा। निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारियां भाजपा नेताओं की ओर से शुरू हो गई है। जबकि पूर्व में ही यहां के वरिष्ठ किसान नेता व पूर्व विधायक वामनराव चटप ने अपना नामांकन भरने की घोषणा कर सभी राजनीतिक दलों के नेताओं की धड़कने बढ़ा चुके हैं। उनकी मजबूत स्थिति से निपटने के लिए राजनीतिक दलों को काफी जोर लगाना होगा। चूंकि यहां के विधायक सुभाष धोटे कांग्रेस के जिलाध्यक्ष भी है और एक वरिष्ठ नेता के रूप में उनकी पहचान है। उन्हें हरा पाना भी किसी के लिए भी आसान नहीं होगा। परिणाम क्या होंगे, यह तो वक्त ही बताएगा।