ब्लू जोन के बड़े बिल्डरों पर मनपा हो रही मेहरबान !

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छोटे मकानधारक निशाने पर और संकुल व बंगलों को छूट

कार्रवाई की खानापूर्ति के बाद क्यों ठप पड़ गया अभियान

चंद्रपुर : अवैध बिल्डर राज चंद्रपुर महानगर पालिका पर भी हावी होता दिखाई पड़ रहा है। यदि ऐसा नहीं है तो बीते अनेक दिनों से मनपा प्रशासन की ब्लू जोन पर बने अवैध इमारतों के खिलाफ की कार्रवाई ठप क्यों पड़ गई है ? केवल 28 अवैध और छोटे बिल्डरों, या यूं कहे कि मकानधारकों के खिलाफ अपराध दर्ज करने की कार्रवाई के बाद मनपा प्रशासन का अभियान अचानक से बंद क्यों हो गया ? क्या इन 28 के अलावा और किसी बिल्डरों के अवैध निर्माण कार्य ब्लू जोन में मौजूद नहीं है ? यकीनन करोड़ों के बंगले और व्यापारी संकुलों का निर्माण ब्लू जोन में हो चुका है। परंतु हैरत की बात है कि मनपा आयुक्त विपीन पालीवाल की ओर से अब तक बड़े व अवैध बिल्डरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकी है। इसके चलते बीते दिनों मनपा द्वारा की गई कार्रवाई केवल खानापूर्ति प्रतीत हो रही है।

क्यों और कैसे मिल जाती है अनुमति

जमीन से जुड़े दस्तावेजों की मंजूर, रजिस्ट्री, फेर-बदल, निर्माण कार्य का मंजूर नक्शा, मनपा प्रशासन की मंजूरी, अनापत्ति प्रमाणपत्र, बिजली, पेयजल, सड़क आदि सारे मुद्दे और सुविधाएं ब्लू जोन के बड़े बिल्डरों के निर्माण स्थल तक पहुंच जाते हैं। मानो लगता है कि इनकी जेब में ही सारे मंजूरी की सारी प्रक्रिया दौड़ रही होती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर इस प्रतिबंधित इलाकों में बड़ी-बड़ी और करोड़ों की इमारतें खड़ी कैसे हो जाती है ? जब सभी को पता है कि यह बाढ़ प्रवण इलाका है तो इन बड़े बिल्डरों के कागजातों पर मंजूरी कैसे मिल जाती है। क्या प्रशासन के किसी टेबल पर इन्हें रोककर नियमों का पाठ नहीं पढ़ाया जाता ?

मिलीभगत है या जबरन निर्माण कार्य करने की दबंगई ?

अपने खून-पसीने की जीवन भर की कमाई और जमापूंजी के साथ-साथ बैंकों का कर्ज लेकर अपना आशियाना बनाने वाले मध्यम वर्ग के नागरिकों को जब ब्लू जोन के नाम पर नोटिस थमाया जाता है तो उनके पांवों के नीचे से जमीन ही सरक जाती है। इन्हें जमीन बेचने वाले जमीन बेचकर निकल गये। लेकिन इसी जमीन की रजिस्ट्री आदि मंजूरी के बाद पता चलता है कि यह ब्लू जोन का मामला है। जीवन भर की मेहनत पर पानी फिर जाता है। परंतु सवाल यह उठता है कि बड़े बिल्डरों के करोड़ों के व्यापारी संकुल, फ्लैट स्कीम और बंगले कैसे मनपा प्रशासन के कार्रवाई से बच जा रहे है ? इस आशीर्वाद के पीछे क्या मनपा प्रशासन के आला अफसरों की मिलीभगत है ? या बड़े बिल्डर मनपा के नियमों को ठेंगा दिखाते हुए दबंगई से अवैध इमारतों का धड़ल्ले से निर्माण कर रहे हैं ? ऐसे अनेक सवाल आम जनता के मन में है। परंतु इसका ठोस जवाब तो मनपा आयुक्त विपीन पालीवाल ही दे पाएंगे।

ज्ञात हो कि चंद्रपुर के बाढ़ प्रवण इलाकों पर ‘अवैध बिल्डर राज’ : ब्लू लाइन से ब्लैक मनी का खेल कब तक ? इस शिर्षक तले सबसे पहले अर्थात 26 अगस्त 2024 को साप्ताहिक चंद्रपुर की बुलंद आवाज अखबार ने खबर प्रकाशित की थी। मनपा की खानापूर्ति की कार्रवाई को लेकर अनेक सवाल उठाये थे। बरसों से मनपा प्रशासन की ओर से अवैध बिल्डर राज को पनाह और आशीर्वाद देने की बात को उजागर किया था। चंदपुर महानगर पालिका प्रशासन के आला अफसरों की इन अवैध बिल्डरों के साथ साठगांठ की बात का पर्दाफाश भी किया गया। इसके बाद से लगातार मनपा कार्यालय में बैठकों का दौर शुरू हुआ। और अंतत: मनपा आयुक्त समेत तमाम संबंधित अधिकारियों को इस खबर की दखल लेने पड़ी। वहीं हाईकोर्ट के एक याचिका में चंद्रपुर वेकोलि ने भी मनपा प्रशासन की ओर से ब्लू जोन में बन रहे इमारतों व उनके निर्माता अवैध बिल्डरों पर कार्रवाई नहीं किये जाने की बात को न्यायालय में शपथपत्र के माध्यम से पेश किया था। इसके बाद मनपा को मजबूर होकर शहर के 28 अवैध बिल्डरों के खिलाफ अपराध दर्ज करने की कार्रवाई करनी पड़ी।

इरई नदी परिसर में स्थित ब्लू जोन समझे जाने वाले अनेक इलाकों में अवैध रूप से अनेक इमारतों का निर्माण हुआ। कुछ छोटे मकान मालिकों ने अपने मकानों का निर्माण कराया। वहीं कुछ बड़े बिल्डरों ने व्यापारी संकुल समेत फ्लैट स्किम और बड़े बंगले भी बना लिये। अनेक इमारतों के निर्माण और मंजूरी में प्रशासनीक आशीर्वाद के बिना इस तरह के निर्माण कार्यों को अंजाम तक पहुंचा पाना मुमकिन नहीं है। केवल चंद इमारतों को नोटिस देने और कुछ के ही खिलाफ अपराध दर्ज कराने की मनपा की नीति बहुत कुछ कहती है। इस नीति को समझना कोई बड़ा बात नहीं है। पहले केवल 3 अवैध इमारतों को ध्वस्त कर कार्रवाई की वाहवाही लूटने के बाद मनपा की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में आ गई थी। अवैध बिल्डर राज के माध्यम से कैसे इमारतें बनी रही, कैसे मंजूरी ली जा रही, कैसे मिलीभगत का खेल चल रहा और कैसे खरीदी-बिक्री के माध्यम से करोड़ों का काला धन यहां इस्तेमाल किया जा रहा ? ऐसे अनेक प्रश्न आम जनता में चर्चा का विषय बन रहे थे। इन सवालों से बच पाना मनपा के लिए आसान नहीं था। इसलिए फिर मजबूर होकर मनपा प्रशासन ने 28 अवैध बिल्डरों के खिलाफ अपराध दर्ज करा दिया।

जब मनपा प्रशासन की ओर से छोटे बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही थी तो यह ज्ञात हुआ कि इरई नदी के तट पर बसे वड़गांव, गोविंदपुर प्रभाग के ब्लू जोन में 7 स्थानों पर अवैध ले-आउट डालकर भूमि की अवैध बिक्री की गई थी। मनपा के सहायक नगर रचनाकार सारिका शिरभाते ने रामनगर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई। इसके बाद 23 बिल्डरों पर महाराष्ट्र प्रादेशिक नगर रचना अधिनियम 1966 की धारा 53 अ के अनुसार अपराध दर्ज किया गया। इसके बाद 5 बिल्डरों के खिलाफ महाकाली मंदिर मैदान परिसर जमीन के मामले में भी अपराध दर्ज किया गया। इस दौरान दीपक केशवराव चौधरी, राहुल दिनकरराव बोट्‌टूवार, नानाजी संभाजी इटनकर, पूनम जितेंद्र इटनकर, योगिता राजेंद्र रघाताटे, राजेंद्र श्यामराव रघाताटे, विकास जयभाम घटे, सरिता विकास घटे, नंदलाल चंपालाल बियानी, मधुकर नारायण मानेकर, भरत धोंडूबाजी वाघाडे, स्वाति प्रदीप तातावार, संजय हरीदास लेखवाणी, रवि नारायणदास चिमनानी, मोहन केशवराव ठाकरे, अतुल मारोतीराव रायपुरे, बंडू संभाजी नागरकर, रफीक सत्तार शेख, व्यंकटस्वामी नागय्या पंगा, उत्तम यादव वाघमारे, क्रिष्णा मानाखा मारवा, रामकृष्ण लटभय्या रावा, मंजू शिवमंगल कश्यप, युवराज बनकर, प्रशांत बनकर, किशोर बनकर, इंदूबाई बनकर, प्रभाकर बनकर नामक छोटे बिल्डरों का समावेश हैं। लेकिन ब्लू जोन के बड़े और करोड़पति बिल्डरों को अब तक छूट मिली हुई है। आखिरकार यह छूट किस आधार पर उन्हें मिल रही है, इसका खुलासा मनपा प्रशासन को करना चाहिये।

मनपा प्रशासन को पहले से ही ज्ञात था कि कहां-कहां अवैध निर्माण कार्य चल रहा है। चंद्रपुर शहर के हर प्रभाग में इनके जोनल कार्यालयों के अधिकारियों का नियंत्रण और देखरेख होता है। जिस समय ब्लू जोन पर धड़ल्ले से अवैध इमारतों, बंगलों, फ्लैट आदि का निर्माण कार्य चल रहा था तब मनपा के किसी अफसर ने अवैध बिल्डरों को रोकने की कोशिश नहीं की। संबंधित मनपा जोन में बैठकर कुर्सियां तोड़ने वाले अधिकारियों ने भी अपने आला अफसरों और मनपा आयुक्त को शायद कोई सूचना नहीं दी होगी। सचेत कर कार्रवाई करने की कोशिश भी कभी नहीं की गई।

ब्लू जोन के इमारतों के निर्माण कार्य को और इन भूखंड़ों के निर्माण संबंधित प्रस्तावों को आखिर मंजूरी किस अधिकारी के माध्यम से दी जाती है ? नगर रचनाकार सारिका सूरज शिरभाते के पास आने वाले प्रस्तावों पर उन्होंने सहमति किस आधार पर जताई होगी? यदि वे इन अवैध निर्माण कार्यों से अनजान थी, तो मनपा के अतिक्रमण विभाग के आला अधिकारी बरसों बरस क्यों गहरी नींद में ढुबे रहे? अवैध बिल्डरों की इमारतें और संकुल जायज नहीं थी तो इन्हें वैध करने और अब तक कार्रवाई से बचाकर रखने की कोशिश कौनसा अधिकारी कर रहा था ? उस अधिकारी के खिलाफ मनपा प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों और मनपा आयुक्त की ओर से कोई जांच अब तक क्यों नहीं कराई जा सकीं ?

इस तरह के अनेक सवालों का जवाब मनपा आयुक्त विपीन पालीवाल को जनता के समक्ष पेश करना चाहिये। यदि वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो मिलीभगत की सुई मनपा आयुक्त पालीवाल तक कभी न कभी पहुंच ही जाएगी। इस गंभीर मामले में जिलाधिकारी विनय गौड़ा की ओर से एक विशेष जांच दल का गठन कर मनपा अधिकारियों और भूमि को मंजूरी देने वाले संबंधित सभी विभागों के अधिकारियों तथा कर्मचारियों की अलग से उच्च स्तरीय जांच करवाने की नितांत आवश्यकता है।