CSTPS भेजा जा रहा WCL लालपेठ का राख व मिट्‌टी मिश्रित 3000 टन कोयला

12

दुर्गापुर  ओपनकास्ट में कोयले की लूट व हर माह 3.37 करोड़ के घोटाले के बाद एक और मामला उजागर

■ बिजली केंद्र की सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ मायनिंग फ्यूल रिसर्च जांच एजेंसी चुप क्यों ?

■ वेकोलि के AGM हर्षद दातार क्यों नहीं बुझा पा रहे करोड़ों के कोयले में लगी आग

“जब रोम जल रहा था, तो नीरो सुख और चैन की बाँसुरी बजा रहा था.” यह कहावत रोमन सम्राट नीरो के बारे में मशहूर है. नीरो की तरह ही चंद्रपुर का WCL काम कर रहा है। चंद्रपुर वेकोलि मुख्यालय के AGM हर्षद दातार इस वर्ष 54 लाख 55 हजार टन कोयले का लक्ष निर्धारित किया गया है। लेकिन हिंदूस्तान लालपेठ ओपनकास्ट से प्रतिदिन करीब 3000 टन कोयला राख और मिट्‌टी मिश्रित बाहर भेजा जा रहा है। CSTPS और अन्यत्र भेजे जा रहे इस घटिया कोयले की उचित जांच नहीं हो पा रही है। कोल स्टॉक में बरसों से आग धधक रही है। इसे बुझाने में मौजूदा AGM हर्षद दातार, सबएरिया मैनेजर तरुणकुमार देवड़ा, मैनेजर तिवारी आदि अधिकारी विफल ही साबित हुए हैं। करोड़ों का कोयला जलकर राख बन रहा है। इसे बुझाने हेतु पानी और मिट्‌टी का मिश्रण किया जा रहा है। और फिर यही घटिया कोयला बिजली केंद्र को भेजा जा रहा है। बिजली केंद्र की सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ मायनिंग फ्यूल रिसर्च जांच एजेंसी के अलावा CSTPS के आला अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। इसके चलते न केवल ऊर्जा संयंत्रों का नुकसान हो रहा है, बल्कि बिजली उत्पादन में कमी, कोयले की खपत बढ़ना, जनता को महंगी बिजली मिलना, प्रदूषण में बढ़ोतरी, बिजली संयंत्र ठप हो जाना आदि इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।

प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अधिकारियों ने बांध ली आंखों पर पट्‌टी ?

हिंदूस्तान लालपेठ ओपनकास्ट कोयला खदान से निकलने वाला कोयला यहां काफी मात्रा में स्टॉक किया गया है। परंतु अधिकांश हिस्से में बरसों से कोयला धधक रहा है। लगातार धुंआ और जलते कोयले की लपटें आसानी से देखी जा सकी है। इसके बावजूद चंद्रपुर के जिलाधिकारी कार्यालय के सामने मौजूद प्रदूषण नियंत्रण मंडल के क्षेत्रीय कार्यालय में बैठने वाले अधिकारियों ने आंखों पर पट्‌टी बांध ली है। इन्हें यह बेशूमार धुआं और प्रदूषण दिखाई ही नहीं पड़ता। इनकी ओर से कभी भी इस खदान का मुआयना कर सच्ची रिपोर्ट सरकार को भेजी नहीं जा रही है। यदि सच दुनिया के सामने आ जाएं तो यह खदान 2 दिन भी चलने लायक नहीं बचेगी। परंतु जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ होते देखकर प्रदूषण को रोकने वाले अधिकारी ही आंखें मुंदकर चुप बैठे हैं। आखिर इसके पीछे कौनसी अर्थ नीति है ? यह अनुसंधान का विषय हो सकता है।

घटिया कोयला कैसे पहुंच रहा बिजली केंद्र तक ?

लालपेठ ओपनकास्ट कोयला खदान में जब कोयला निकाला जाता है, तब शिवशंभू कोल कैरियर के माध्यम से इसे उठाने, क्रश करके इसे रेलवे साइडिंग तक पहुंचाने की जिम्मेदारी होती है। लालपेठ के जंगम बस्ती के पास मौजूद रेलवे साइडिंग पर इसे रेलवे रैक में लोड़ किया जाता है। प्रतिदिन करीब 3000 टन कोयला यहां से गुजरता है। परंतु अधिकांश कोयले में जले हुए कोयले की राख और मिट्‌टी का मिश्रण आसानी से दिखाई पड़ता है। इस घटिया कोयले से बिजली केंद्रों को करोड़ों का नुकसान हो रहा है। परंतु हालातों में कहीं कोई सुधार नजर नहीं आता। अधिकारी वर्ग विदेशी दौरों में व्यस्त नजर आते हैं। मानो लगता है कि सबएरिया मैनेजर तरुणकुमार देवड़ा एवं मैनेजर तिवारी के कार्य पर AGM हर्षद दातार का नियंत्रण नहीं रहा।

सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ मायनिंग फ्यूल रिसर्च क्यों नहीं कर रहा जांच

ऊर्जा संयंत्रों के लिये उत्तम कोयला प्रदान कर बिजली उत्पादन बढ़ाने की सरकार की मंशा है। परंतु इस मंशा को यहां कलंक लगता हुआ दिखाई पड़ रहा है। लालपेठ ओपनकास्ट से जो कोयला आपूर्ति की जा रही है, वह घटिया दर्जे का है। आग बुझाने के लिए जो मिट्टी इसमें मिलाई जा रही है, वह सीधे जेसीबी के माध्यम से ट्रकों एवं रेलवे रैक में भरकर ऊर्जा संयंत्रों तक पहुंचा दिया जा रहा है। जबकि महाजेनको उत्तम कोयला पाने के लिये वेकोलि को हर माह करोड़ों की राशि अदा कर डीओ प्राप्त करती हैं। लेकिन कुछ लोगों की मिलीभगत के चलते कोयले की गुणवत्ता की सही जांच नहीं हो पा रही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिरकार सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ मायनिंग फ्यूल रिसर्च नामक एजेंसी इस कोयले की इमानदारी से जांच क्यों नहीं कर पा रही है ?

कैसे डूब रही करोड़ों की धन राशि ?

महाजेनको की ओर से हर माह वेकोलि को कोयले के डीओ की राशि अदा की जा रही है। यह राशि हमारी सोच और कल्पना से भी परे हैं। करोड़ों की राशि अदा करने के बावजूद महाजेनको को घटिया कोयला ही प्राप्त हो रहा है। इस पूरे कर्मकांड में कहीं न कहीं प्रशासन के अधिकारियों की अनदेखी व मिलीभगत भी जिम्मेदार होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। महाजेनको द्वारा वेकोलि को राशि अदा करने के बाद डीओ हासिल कर उसे संबंधित ठेकेदार को दिया जाता है। इन डीओ के अनुसार ठेकेदार कोयले की खदानों से कोयला परिवहन कर उसे महाजेनकों के ऊर्जा संयंत्रों तक पहुंचाना जरूरी होता है। कुछ मामलों में तो सीधे वेकोलि प्रशासन की ओर से ऊर्जा संयंत्रों तक कोयला पहुंचाने की नीति है। लेकिन महाजेनकों की ओर से तय व उत्तम कोयले की गुणवत्ता को बरकरार रखने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया जाना, आश्चर्य की बात है।