चंद्रपुर
एक समय था जब चंद्रपुर के पुरातन तालाब यहां की विरासत और वैभव को बयां करते थे। स्थानीय मनपा प्रशासन, जिला प्रशासन, सिंचाई विभाग और पुरातत्व विभाग के आला अफसरों की अनदेखी के चलते चंद्रपुर के ऐतिहासिक 5 में से अब केवल एक ही तालाब शेष बच गया है। इस रामाला तालाब को बचाने के लिए भी घोर लापरवाही बरती जा रही है। दिन-ब-दिन हो रहे अतिक्रमण के चलते यहां की 11 एकड़ भूमि को तालाब से सटे अतिक्रमणकारियों ने निगल लिया है। इसके बावजूद संबंधित प्रशासन की नींद नहीं खुल पा रही है। कुंभकर्णी नींद में सोये हुए प्रशासन की लापरवाही का ही यह नतीजा है कि आज कोई भी अतिक्रमणकारी आसानी से रामाला तालाब के किनारे की भूमि पर निर्माणकार्य कर लेता है। और उसे प्रशासन की ओर से बिजली, पेयजल आदि की सुविधाएं भी मुहैया करा दी जाती है।
वैभवशाली विरासतों को छोड़, ठेकों पर ज्यादा ध्यान
चंद्रपुर का इतिहास गोंडकालीन इमारतों, किलों व अन्य विरासतों से समृद्ध है। ऐतिहासिक विरासतों को बचाने की जिम्मेदारी सभी की है। खासकर स्थानीय प्रशासन की यह अधिक जिम्मेदारी है कि वे शहर के वैभवशाली विरासतों को बचाने के लिए पूरजोर कोशिशें करें। लेकिन स्थानीय मनपा प्रशासन के अधिकारी केवल सरकारी ठेकों पर ज्यादा केंद्रीत हो चले है।
विरासतों के नष्ट होने से मनपा को फायदा !
आश्चर्य की बात है कि जटपुरा गेट परिसर में अवैध होर्डिंग्स पर भी रोक लगाने में मनपा प्रशासन नाकाम साबित हुआ है। और तो और जटपुरा गेट परिसर के पुरातन सराय इमारत के ढहते हुए दयनीय स्थिति को देखकर भी मनपा प्रशासन कुछ नहीं कर पा रहा है। उलटे इस सराय इमारत के ढह जाने का इंतजार मनपा प्रशासन को है। ताकि यहां वे आलिशान और अत्याधुनिक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बना सकें और इस माध्यम से यहां के धनी व्यापारियों को दुकानें उपलब्ध करा सकें और खुद की आय भी बढ़ा सकें। इसी क्रम में रामाला तालाब के अतिक्रमण की भी अनदेखी की जा रही है।
4 तालाब नष्ट, अब रामाला की बारी
ज्ञात हो कि रामाला तालाब किसी समय में 85.3 एकड़ का हुआ करता था। इसमें से 11 एकड़ तालाब की भूमि पर अतिक्रमणकारियों और बिल्डर माफिया ने कब्जा जमा लिया है। वर्तमान में यदि तालाब की भूमि की गणना की जाएं तो इससे ज्यादा भूमि अतिक्रमण की चपेट में आने की जानकारी उजागर हो सकती है। चंद्रपुर शहर में पूर्व के वर्षों में कोनेरी तालाब, घुटकाला तालाब, लेंडी तालाब और गौरी तालाब का अस्तित्व था। लेकिन चंद्रपुर नगर पालिका प्रशासन ने अनदेखी की और यह तमाम तालाब अतिक्रमण के भेंट चढ़ गये। अब सिर्फ रामाला तालाब ही बच गया है। लेकिन इसे बचाने के लिए भी प्रशासन सतर्क नहीं है।
करोड़ों का फंड आखिर जाता कहां है ?
उल्लेखनीय है कि तालाब सौंदर्यीकरण और गहराईकरण के नाम से अनेक बार स्थानीय प्रशासन ने करोड़ों की निधि खर्च की। अनेक बार इसकी सफाई, सौंदर्यीकरण, गहराईकरण और बागीचा निर्माण करने का कार्य किया गया। परंतु प्रशासन की लापरवाही के कारण यह पूर्व की स्थिति में पहुंच जाता है। वर्तमान में तो बगीचे उपयोग के लायक भी नहीं रह गया। शहर के अनेक इलाकों से बहकर आने वाले गटर का पानी सीधे तालाब में पहुंच जाता है। इसे रोकने और शुद्धिकरण के लिए किये जा रहे प्रयास कब तक पूर्ण हो पाएंगे, यह कह पाना मुश्किल है।
सत्याग्रह भी नहीं बदल पायी रामाला की किस्मत
स्थानीय सामाजिक संस्था ईको प्रो के बंडू धोतरे ने रामाला तालाब को बचाने के लिए 22 फरवरी से 5 मार्च 2021 तक अन्न त्याग सत्याग्रह किया था। तत्कालीन सरकार ने उनकी मांगों को मान भी लिया था। परंतु इसके बाद न तो उन तमाम मांगों की पूर्ति की गई और न ही इस मसले को गंभीरता से आगे बढ़ाया गया। वर्तमान में प्रदूषण और अतिक्रमण के अलावा ऐसे अनेक समस्याएं है, जिसके चलते रामाला तालाब अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। इसलिए तत्काल रामाला को अतिक्रमण से मुक्त कर मनपा प्रशासन की ओर से यहां उचित कदम उठाने की आवश्यकता है।