चंद्रपुर विधानसभा क्षेत्र, जो अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है, इस बार भी राजनीतिक गहमागहमी का केंद्र बना हुआ है। 20 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले भाजपा और कांग्रेस सहित निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी रणनीतियों को धार दी है। इस बार मुकाबला खासा दिलचस्प होने वाला है क्योंकि 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार किशोर जोरगेवार ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। अब, वे भाजपा के उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं, जबकि बीजेपी अपने गढ़ को फिर से पाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।
इस क्षेत्र में जातीय समीकरण भी चुनावी नतीजों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं। दलित, आदिवासी, और मुस्लिम मतदाताओं की उपस्थिति राजनीतिक दलों की रणनीति को प्रभावित कर रही है। 2019 के चुनाव में, जोरगेवार को 1,17,570 वोट मिले थे, जो उनके प्रतिद्वंद्वी बीजेपी उम्मीदवार से लगभग 72,000 अधिक थे।
चुनाव के इस दौर में, भ्रष्टाचार, कोयला उद्योग से जुड़ी स्थानीय समस्याएं, और क्षेत्रीय विकास जैसे मुद्दे मतदाताओं के सामने प्रमुख हैं। अब देखना यह होगा कि इन स्थानीय और राज्य स्तरीय मुद्दों का इस बार के परिणामों पर क्या असर पड़ता है ?
वहीं प्रवीण पडवेकर इस बार चंद्रपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। वह एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं और बौद्ध समाज से ताल्लुक रखते हैं। कांग्रेस पार्टी ने सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के संदेश के तहत उन्हें उम्मीदवार बनाया है।
इस क्षेत्र में मुख्य मुकाबला भाजपा के किशोर जोरगेवार और कांग्रेस के प्रवीण पडवेकर के बीच है। पडवेकर स्थानीय मुद्दों जैसे पर्यावरण संरक्षण और रोजगार सृजन को लेकर अपनी बात जनता तक पहुंचा रहे हैं। उनका दावा है कि वह सामाजिक न्याय और विकास के एजेंडे पर काम करेंगे। साथ ही कांग्रेस के बागी एवं निर्दलीय प्रत्याशी राजू झोड़े चंद्रपुर में वोटों का गणित बिगाड़ सकते हैं। राजू झोडे चंद्रपुर विधानसभा क्षेत्र के एक प्रमुख निर्दलीय उम्मीदवार हैं, जो इस बार के चुनाव में कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ खड़े हुए हैं। झोडे पहले कांग्रेस से जुड़े थे, लेकिन टिकट नहीं मिलने के कारण उन्होंने बगावत कर दी और निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। उनकी उम्मीदवारी को वंचित बहुजन आघाडी (वंचित) और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का समर्थन मिला है।
चुनाव के इस दौर में झोडे ने अपने अभियान को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया है। उनका समर्थन आधार दलित, आदिवासी, और वंचित वर्गों के मतदाताओं के बीच मजबूत माना जा रहा है। उनका दावा है कि वे स्थानीय मुद्दों, जैसे रोजगार और बुनियादी ढांचे के विकास, पर जोर देंगे। हालांकि, उनकी उपस्थिति कांग्रेस और भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है, क्योंकि वे पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं।चुनाव परिणाम तय करेंगे कि झोडे का यह कदम उन्हें राजनीतिक ताकत देगा या प्रमुख दलों के लिए सिर्फ एक चुनौती बनकर रह जाएगा।
भाजपा के लिए बरसों से काम करने वाले निष्ठावान के रूप में मंत्री सुधीर मुनगंटीवार की सेवा में रहे ब्रिजभूषण पाझारे को इस बार बार भी भाजपा ने उम्मीदवार नहीं बनाया। इसके चलते वे निर्दलीय होकर चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि पाझारे का जनसंपर्क तगड़ा है, परंतु राजनीतिक टिकट मिल जाती और चुनाव लड़ते तो शायद चित्र कुछ और ही होता। पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं की कमी के चलते निर्दलीय प्रत्याशी होकर लड़ना इनके लिए भी काफी दिक्कतों से भरा कार्य बन गया है। परंतु उन्होंने कम समय तगडा जनसंपर्क बनाया है।और भाजपा के लिए चुनौती बन गए हैं।