राजुरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र पहाड़ियों पर बसे जिवती के अति दुर्गम तहसील के गांवों से लेकर तेलंगाना की सीमा से होते हुए गोंडपिपरी के दूर-दराज के गांवों तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में भ्रमण करते हुए चुनावी प्रचार करना किसी भी उम्मीदवार के लिए आसान काम नहीं है। वर्तमान में यहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सुभाष धोटे विधायक हैं। उनके खिलाफ वैसे तो 13 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे हुए हैं। लेकिन सर्वाधिक चर्चा पूर्व विधायक एवं स्वतंत्र भारत पक्ष के उम्मीदवार वामनराव चटप की हो रही है। क्योंकि उनकी ओर से अंतिम मौका देने की जनता से की जा रही अपील के मद्देनजर उन्हें जनता का भारी समर्थन मिलने की जानकारी है। इस बीच भाजपा में हुए अनेक नाटकीय गतिविधियों के चलते विवादित रहे भाजपा नेता देवराव भोंगले को यहां से उम्मीदवारी दी गई। उनकी इंट्री से राजुरा में त्रिकोणीय संघर्ष देखने को मिल रहा है। हालांकि यह अभी कहा नहीं जा सकता कि भाजपा के नाराज नेता और कार्यकर्ता की टीम किस ओर रूख करेगी। नाराज भाजपाईयों के वोट चटप के झोली में जाएंगे या विधायक धोटे उनका दिल जीत पाएंगे, यह कहना मुश्किल है।
वैसे तो कांग्रेस नेता व विधायक सुभाष धोटे की स्थिति यहां मजबूत नजर आ रही है। परंतु जनता के दिलो-दिमाग में झांक पाना किसी भी प्रत्याशी के लिए आसान काम नहीं होता। वामनराव चटप एवं देवराव भोंगले के अलावा समाजसेवी एवं संभाजी ब्रिगेड के भूषण फूसे सेक्यूलर वोटों को क्षति पहुंचा सकते हैं। राजुरा में बरसों से जातीगत वोटों की राजनीति हावी रही है। भले ही पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को भारी मतों से यहां जीत मिली थी। परंतु विधानसभा चुनावों में स्थायी मुद्दे अधिक उभरकर सामने आते रहे हैं। यदि हम भाजपा की बात करें तो पूर्व विधायक एड. संजय धोटे एवं सुदर्शन निमकर ने भाजपा की ओर से दिये गये प्रत्याशी देवराव भोंगले का जमकर विरोध किया था। बाकायदा पत्रकार परिषद लेकर उनके खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी थी। वरिष्ठों से शिकायत करने के मुद्दे को लेकर सैंकड़ों कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाई गई। इसके बाद तो दोनों पूर्व विधायकों ने अपना नामांकन पर्चा तक भरा था। परंतु भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की ओर से समझाइश देने के बाद इन्हें मजबूर होकर अपना नामांकन वापिस लेना पड़ा। इन परिस्थितियों को देखकर ऐसा लगता है कि भले ही नामांकन वापिस लिये गये हो, लेकिन नाराजगी अब तक दूर नहीं हो पायी है। क्योंकि चुनावी प्रचार के इस दौर में दोनों नेता और उनके कार्यकर्ताओं की टीम खुलकर देवराव भोंगले के चुनावी प्रचार में सक्रिय नजर नहीं आ रही है।
एक और गंभीर मामले से राजुरा के मतदाताओं के मन विचलित है। चुनावी टिकटों की घोषणा होने के पूर्व ही राजुरा में मतदाता ऑनलाइन पंजीयन का घोटाला उजागर हुआ था। यह घोटाला राजुरा के कांग्रेस ने ही उजागर किया था। 6853 फर्जी वोटरों के खिलाफ चुनावा आयोग से शिकायत की गई थी। जिलाधिकारी को भी इस मामले की शिकायत की गई। इसके बाद प्रशासन ने इस मसले को गंभीरता से लिया। जिलाधिकारी विनय गौडा को आगे आकर इन तमाम बोगस वोटरों का पंजीयन रद्द कराना पड़ा। साथ ही इसकी गहन जांच व कार्रवाई के आदेश पुलिस को दिये गये। लेकिन काफी हैरत की बात है कि बीते 15-20 दिनों में पुलिस किसी भी आरोपी के गिरेबान तक नहीं पहुंच पायी है। ऐसे में फर्जी वोटिंग को ब्रेक भले ही लग गया है, लेकिन मतदाताओं में संदेह की स्थिति को दूर करने में प्रशासन यहां नाकाम नजर आता है। फर्जी वोटरों के पीछे कौन मास्टरमाइंड था और कौनसे दल के कार्यकर्ताओं की ओर से इस प्रकार के फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया, यह अब तक जिला प्रशासन की ओर से घोषित नहीं किया जा सका है। इसके चलते मतदाताओं में प्रशासन एवं पुलिस की जांच पर संदेह जताना चर्चा का विषय बना हुआ है।
याद रहे कि कांग्रेस के सेफ जोन में पहले भी सेंध लग चुकी है। राजुरा विधानसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास इस आरे इशारा करता है। वर्ष 1962 से यहां विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। बतौर विधायक विट्ठलराव धोटे, प्रभाकरराव मामुलकर और सुभाष धोटे 2 बार विधायक बने हैं। वहीं, एड. वामनराव चटप 3 बार मुंबई विधानसभा में पहुंचे। जीवतोडे, मुसले, निमकर और संजय धोटे केवल एक बार विधायक बने हैं। यह क्षेत्र कभी कांग्रेस का ‘सेफ ज़ोन’ हुआ करती थी। लेकिन वर्ष 2014 में एड. संजय धोटे ने मोदी लहर में विजयी रथ पर सवार हुए थे। वर्ष 2019 में कांग्रेस नेता सुभाष धोटे ने कड़ी टक्कर के बाद संजय धोटे को हराया दिया था। अबकी बार का चुनाव विधायक सुभाष धोटे के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। राजनीतिक दांव-पेच के बीच विधायक धोटे इस चुनाव में क्या कमाल दिखा पाएंगे, इस ओर जनता की नजरें टिकी हुई है।
राजुरा में कौन-कौन हैं प्रत्याशी ?
सुभाष रामचंद्र धोटे (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस), वामनराव सदाशिव चटप (स्वतंत्र भारत पक्ष), देवराव विठोबा भोंगले (भारतीय जनता पक्ष), भूषण मधुकरराव फुसे (संभाजी ब्रिगेड), प्रिया बंडू खाडे (रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया), निनाद चंद्रप्रकाश बोरकर (निर्दलीय), चित्रलेखा कालिदास धंदरे (निर्दलीय), सचिन बापूराव भोयर (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना), गजानन गोदरू पाटील जुमनाके (गोंडवाना गणतंत्र पार्टी), प्रवीण सातपाडे(निर्दलीय), प्रवीण रामराव कुमरे (बहुजन मुक्ती पार्टी), मंगेश हिरामण गेडाम (रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया), किरण गंगाधर गेडाम (निर्दलीय), अभय मारोती डोंगरे (बहुजन समाज पक्ष)।