संपादकीय
महाराष्ट्र की आबादी 13.6 करोड़ है। यह भारत का दूसरा सबसे ज़्यादा आबादी वाला राज्य है। वर्तमान में महाराष्ट्र एक कर्जदार राज्य है। राज्य के माथे पर कर्ज का पहाड़ है। यह आंकड़ा 7.11 लाख करोड़ से अधिक है। और मार्च 2025 के अंत तक राज्य पर 7 लाख 82 हजार करोड़ रुपये का कर्ज हो जाएगा, ऐसा वित्त मंत्री कह चुके हैं।
दस साल पहले, वर्ष 2014 में, यह कर्ज केवल 2 लाख 94 हजार करोड़ रुपये था। सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि देश को भी सत्ताधारियों ने कर्जदार बना दिया है। 2014 में केंद्र सरकार का कुल कर्ज 55 लाख करोड़ रुपये था, जो सितंबर 2024 तक 205 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। अब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि अगर सरकार इसी गति से कर्ज लेती रही, तो देश पर जीडीपी का 100% कर्ज हो जाएगा। ऐसी स्थिति में कर्ज चुकाना मुश्किल हो जाएगा। महाराष्ट्र और देश को सत्ताधारी आगे ले जा रहे हैं या पीछे? यह जनता को सोचना चाहिये।
महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले पांच वर्षों में जो अव्यवस्था देखने को मिली है, वह पहले कभी नहीं देखी गई थी, मगर इसका राज्य की प्रगति के लिए कोई लाभ नहीं हुआ।
अब लाड़ली बहन, लाड़ला भाई जैसे प्रचार दिखाई देंगे, लेकिन रोजगार दिखाई नहीं देगा। प्रगतिशील महाराष्ट्र में जातियों की दीवारें खड़ी हो गई हैं। राज्य में सरकारी कर्मचारियों की मेगा भर्ती होनी थी, मगर वह घोषणा भी खोखली साबित हुई। एक साल में साढ़े छह हजार से अधिक पद खाली हो गए हैं। पिछले दो सालों से मेगा भर्ती की घोषणाएं की जा रही हैं, मगर वास्तव में, 7,24,000 स्वीकृत पदों के बावजूद राज्य की मशीनरी 4,78,082 कर्मचारियों के बल पर चल रही है। मेगा भर्ती की घोषणा हवा में गायब हो गई है।
सभी परियोजनाएं राज्य के बाहर जा रही हैं। नागपुर में सोलर पैनल परियोजना आने वाली थी, जिसमें 18,000 करोड़ रुपये का निवेश होने वाला था। राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह परियोजना राज्य के बाहर चली गई। दुनिया भर की कंपनियों और उद्योगों के लिए राज्य में व्यवसाय करना मुश्किल हो गया है। तलेगांव में होने वाला वेदांता फॉक्सकॉन(1,69,000 करोड़ रुपये का निवेश), रायगढ़ का बल्क ड्रग पार्क (80,000 करोड़), महाराष्ट्र का अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा कार्यालय, जहाज निर्माण उद्योग, नागपुर का राष्ट्रीय श्रम शिक्षा मंडल, और पालघर की समुद्री पुलिस अकादमी को गुजरात ने छीन लिया। एअर इंडिया मुख्यालय और ट्रेडमार्क पेटेंट कार्यालय दिल्ली ले गए।
पिछले महीने में नाबालिग लड़कियों के अपहरण के 89 मामले दर्ज किए गए हैं। जनवरी में दर्ज 477 मामलों में से 30 नाबालिग लड़कियां यौन शोषण का शिकार हुईं। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के 184 मामले दर्ज किए गए हैं। पिछले आठ महीनों में राज्य से 26,000 महिलाएं और लड़कियां लापता हुई हैं। जनवरी 2023 से जुलाई 2024 के 19 महीनों के दौरान राज्य से 80 छोटे बच्चे लापता हो गए। 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की संख्या भी 6,000 से अधिक हो चुकी है। महाराष्ट्र ने पहले कभी इतना भयानक दृश्य नहीं देखा था।
इन सभी समस्याओं को हल करने के बजाय, मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए करोड़ों रुपये विज्ञापनों पर खर्च किए जा रहे हैं। सरकारी प्रचार के लिए 3 करोड़ रुपये, समाचार पत्रों के लिए 40 करोड़ रुपये, टीवी चैनलों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए 40 करोड़ रुपये, एसटी बस स्टैंड, एसटी बसें, होर्डिंग्स, नगर निगम की शहर बस सेवाएँ, रेलवे स्टेशन, मेट्रो स्टेशन, हवाई अड्डे, और आवासीय परिसर आदि पर 136 करोड़ रुपये, और सोशल मीडिया पर 51 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। यह पैसा जनता का है, इसलिए इसके उपयोग के बारे में सवाल पूछना राज्य की जनता का कर्तव्य है। विपक्षी दलों को इन आंकड़ों पर चिंता है और इसी वजह से जनता सत्ताधारियों के बजाय विपक्ष का समर्थन कर रही है।
विपक्षी दलों को चिंता है बढ़ती बेरोजगारी, गिरती अर्थव्यवस्था और सरकारी विज्ञापनों पर हो रहे फिजूल खर्च की है। मगर सत्ताधारियों को जो चिंता है, वह विपक्ष के बढ़ते जनाधार की है।
अगर गोली मारकर किसी मुद्दे को खत्म किया जा सकता है, तो राज्य ही नहीं, पूरे देश के जेलों में अनगिनत बलात्कारी कैदी हैं जिन्हें जमानत भी नहीं मिलती। महिलाओं पर अत्याचार करने वाले असली दुष्ट होते हैं। इन्हें चौराहे पर फांसी दे दो, इस तरह का आक्रोश हमेशा होता आया है। मगर वास्तव में ऐसा कभी नहीं होता क्योंकि आज भी कानून का डर है। लेकिन बदलापुर बलात्कार मामले में अब यह कहना संभव नहीं। सत्ताधारी किसी भी भयानक घटना से ध्यान भटकाने के लिए तुरंत कोई लोकप्रिय घोषणा कर देते हैं, लेकिन फिर भी उनकी चिंता खत्म नहीं होती, क्योंकि उन्हें चिंता है कि विपक्ष का जनाधार बढ़ रहा है।
बलात्कार से संबंधित कानून भारतीय दंड संहिता, 1860 में धारा 375 से धारा 376ई तक में विस्तार से दिए गए हैं। बलात्कार के लिए 10 साल की कैद से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माना भी हो सकता है। अगर पीड़िता की उम्र 16 साल से कम हो, तो अपराधी को 20 साल की सजा से लेकर शेष जीवन के लिए आजीवन कारावास और जुर्माना हो सकता है। अगर पीड़िता की उम्र 12 साल से कम है, तो अपराधी को फांसी की सजा हो सकती है। इस कानून के तहत अक्षय शिंदे को फांसी की सजा मिलने की पूरी संभावना थी। मगर ऐसा हो न सका।
महाराष्ट्र में युवाओं में बेरोजगारी की समस्या गंभीर है। खासकर शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी का स्तर बढ़ता जा रहा है, क्योंकि उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार नौकरियां नहीं मिल पा रही हैं। आईटी, मैन्युफैक्चरिंग, और सर्विस सेक्टर में नौकरियों की कमी के कारण युवा बेरोजगारी में वृद्धि देखी गई है। बेरोजगारी यह आर्थिक नीतियों, उद्योगों के विकास, और बाहरी आर्थिक संकटों पर निर्भर करती है। शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक ठहराव और स्टार्टअप के बंद होने से बेरोजगारी में वृद्धि हुई है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि संकट और प्रवासी मजदूरों की समस्या के कारण रोजगार की स्थिति और बिगड़ी है। महामारी के बाद प्रवासी मजदूरों की वापसी और अस्थाई रोजगार के संकट ने महाराष्ट्र में रोजगार की स्थिति को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है। स्थाई नौकरियों की कमी बनी हुई है। महाराष्ट्र का कृषि क्षेत्र भी गंभीर संकट का सामना कर रहा है। किसानों के संकट और सूखे के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित रोजगार में गिरावट आई है। इससे ग्रामीण बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।