सियासी जंग : प्रत्याशियों का मुंबई में डेरा, चंद्रपुर की 6 सीटों पर होगा कड़ा मुकाबला

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 मौजूदा विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर, टिकट पाने विरोधियों की अग्नी परीक्षा शुरू 

राजनीतिक दलों की दावेदारी से बिगड़ सकता है गणित

सुलगने लगी विद्रोह की चिंगारियां, बगावत के सूर तेज

चुनाव आयोग की ओर से आचार संहिता घोषित होते ही सभी राजनीतिक दलों की ओर से सीटों के बंटवारे को लेकर मुंबई-दिल्ली में सतत बैठकों का दौर चल पड़ा हैं। चंद्रपुर जिले में कुल 6 विधानसभा सीटें हैं। चंद्रपुर, बल्लारपुर, राजुरा, ब्रम्हपुरी, चिमूर, वरोरा की सीटों पर जहां मौजूदा विधायकों को अपनी साख बरकरार रखते हुए प्रतिष्ठा दांव पर लगी हैं, वहीं उनके विरोधक चुनावी जंग लड़ने के लिए बेसब्र है। किसी भी सूरत में टिकट पाना पहला लक्ष्य बन गया है। इसके लिए अधिकांश प्रत्याशी मुंबई-दिल्ली में डेरा डालकर बैठ गये हैं। अपने समर्थकों के साथ आला दर्जे के नेताओं को रिझाने का काम युद्ध स्तर पर जारी है। तेज हो चुकी राजनीतिक हलचलों के बीच मतदाताओं के मुड़ को भांप पाना अब किसी के लिए भी आसान काम नहीं रहा है। भाजपा, कांग्रेस, राकांपा, शिवसेना, वंचित आदि सभी दलों के नेताओं की बैठकों में टिकट बंटवारे को लेकर गहन मंथन शुरू हो चुका है। हर दल अपनी राजनीतिक बिसात बिछाने में व्यस्त है।

चंद्रपुर

बीते चुनाव में चंद्रपुर विधानसभा सीट पर निर्दलीय विधायक किशोर जोरगेवार ने भारी वोटों से जीत हासिल की थी। वे महायुति के समर्थक थे, लेकिन उन्हें पिछली बार निर्दलीय होकर चुनाव लड़ना पड़ा था। इस बार भाजपा प्रवेश में अटकलों के बीच स्थानीय स्तर पर उनका विरोध होने की बात कही गई। इसके चलते वे राकांपा के शरद पवार गुट से चुनाव लड़ने की तैयारियों में दिख रहे हैं। भाजपा नेता ब्रिजभूषण पाझारे अपनी दावेदारी पेश करने का अथक प्रयास कर रहे हैं। यदि चंद्रपुर की सीट राकांपा के कोटे में जाती है ओर जोरगेवार को टिकट मिलती है तो कांग्रेस से बगावत कर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार परेशानियां खड़े कर सकते हैं। इसके चलते वोटों का बंटवारा होगा और यहां कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।

बल्लारपुर

राज्य के दिग्गज नेता के रूप में पहचाने जाने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार बल्लारपुर में गत 15 वर्षों से न केवल विधायक, बल्कि महाराष्ट्र के प्रमुख मंत्री पदों की जिम्मेदारी संभालते रहे हैं। करोड़ों की निधि लाने और विकास कार्यों को अंजाम देने में उनका मुकाबला यहां कोई नहीं कर पाया है। लेकिन बीते लोकसभा चुनावों में मिली हार के कारण कार्यकर्ताओं में मायूसी छायी है। इस मायूसी को दूर करने का प्रयास किया गया। परंतु विरोधी दल कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना के नेताओं की ओर से यहां मुनगंटीवार को टक्कर देने के लिए टिकट की मांग तेज हो गई है। अनेक ऐसे चेहरे हैं जो महागठबंधन की टिकट पर बल्लारपुर का चुनाव लड़ना चाहते हैं। यदि बल्लारपुर में बगावत नहीं हुई और राजनीतिक दल ही आमने-सामने रहे तो यहां भी काटे की टक्कर हो सकती है।

राजुरा

कांग्रेस के वर्तमान विधायक सुभाष धोटे काफी सुलझे हुए और वरिष्ठ नेता है। इसलिए चंद्रपुर जिले के कांग्रेस की कमान उनके हाथों में सौंपी गई हैं। वे कांग्रेस के जिलाध्यक्ष हैं और उनके कार्यकर्ताओं की टीम काफी सक्रिय है। अपने विरोधकों को किस तरह से मात देना है, इसमें वे काफी माहिर है। ऐसे में उनके खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए इच्छुक उम्मीदवारों के लिए यह जंग आसान नहीं होगी। लेकिन यह भी सच है कि वामनराव चटप जैसे बुद्धिशाली नेता इस बार यहां से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा के अनेक उम्मीदवारों को टिकट की आस है। ऐसे में विरोधकों की नीतियों पर मात कर राजुरा जीत पाना आसान नहीं होगा। यहां भी सियासी जंग दिलचस्प रहेगा।

ब्रम्हपुरी

महाराष्ट्र में विरोधी दल नेता और कांग्रेस के वरिष्ठ दिग्गज नेताओं में विजय वडेट्‌टीवार का समावेश है। वे वर्तमान में ब्रम्हपुरी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे सरकार में आपदा मंत्री और चंद्रपुर जिले के पालकमंत्री रहते हुए उन्होंने अपने विकास कार्यों की पूर्ति करने में अहम भूमिका निभाई है। राजनीतिक रणनीतियों में वे अपने विरोधियों को मात करने में माहिर है। यहां भाजपा से अतुल देशकर या कोई नया चेहरा सामने आ सकता है। परंतु किसी बड़े बदलाव और भाजपा की एकजुटता के बिना यहां वडेट्‌टीवार को हरा पाना आसान नहीं होगा। भले ही चुनावी संघर्ष कड़े मुकाबले का न हो, लेकिन अनिश्चितता के बादलों का कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि जनता का मुड़ जानना आसान नहीं होगा।

चिमूर

राजनीति में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले चिमूर के विधायक बंटी भांगड़िया भाजपा का जाना-माना चहेरा है। उनकी पैठ अपने विधानसभा क्षेत्र में मजबूत है। परंतु पिछली बार की जीत कड़े मुकाबले के बाद मिली थी। हार-जीत का फासला कम था। यदि इस बार विधायक भांगड़िया कोई बड़ा कमाल नहीं दिखा पाएं तो उनके हाथ से विधायकी जाने की आशंका है। वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस नेता सतीश वारजुरकर को इस बार अधिक श्रम करने की आवश्यकता है। यदि कांग्रेस की ओर से कोई नया चेहरा सामने आता है तो यहां का राजनीतिक गणित कुछ अलग हो सकता है। परंतु फिलहाल के राजनीतिक माहौल को देखते हुए यही लगता है कि चिमूर में चुनावी मुकाबला कड़ा रहेगा।

वरोरा

पिछले चुनावों में वरोरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से प्रतिभा धानोरकर की जीत हुई थी। इसके बाद के वर्षों में अनेक राजनीतिक उथल-पुथल और पूर्व सांसद बालू धानोरकर के निधन के बाद जब लोकसभा चुनाव आया तो प्रतिभा धानोरकर को यहां से सांसद बनने का मौका मिला। भारी वोटों से जीत के बाद भले ही वरोरा विधानसभा सीट खाली रही हो, लेकिन यहां किसको टिकट मिलेगी, यह सुनिश्चित नहीं है। कांग्रेस की तरह ही भाजपा में भी अनिश्चितताएं दिखाई पड़ती है। क्योंकि वरोरा की सीट पर भाजपा का कभी भी कब्जा नहीं रहा। सांसद प्रतिभा धानोरकर अपने भाई प्रवीण काकडे को टिकट दिलाने के लिए प्रयासरत है। परंतु जेठ अनिल धानोरकर भी टिकट मांग रहे हैं। वहीं डॉ. चेतन खुटेमाटे, एड. पुरुषोत्तम सातपुते और अन्य नेताओं की मांग कांग्रेस के लिए सिरदर्द का कारण बनी हुई है। भाजपा अभी इस चुनावी जंग में दूर नजर आ रही है।