चंद्रपुर जिले में बेरोजगारी की भयावहता चरम पर
विरान होने लगे ग्रामीण इलाकों के गांव
विधानसभा के चुनावों पर दिखेगा असर
चंद्रपुर : महाराष्ट्र में चंद्रपुर जिले की पहचान औद्योगिक जिले के रूप में दर्शायी जाती है। परंतु जमीनी हकिकत काफी भयावह है। चंद्रपुर जिले के ग्रामीण इलाकों में बढ़ रही बेरोजगारी अब चरमसीमा पर पहुंच गई है। पूरा का पूरा गांव पलायन करने के लिए मजबूर हैं। जिले के अनेक गांव अब विरान दिखाई देने लगे हैं। क्योंकि ग्रामीण इलाकों के निवासी, युवा बेरोजगार और मजदूरों को अपने ही जिले में काम नहीं मिल पा रहा है। ऐसी सूरत में अपना पेट पालने के लिए इन्हें बाहरी जिलों तथा बाहरी राज्यों की ओर पलायन करने की नौबत आन पड़ी है। जबकि चुनावों के मुहाने पर और समय-समय पर भी अनेक नेताओं तथा सरकारों की ओर से स्थानीय जनता को रोजगार उपलब्ध कराने, करोड़ों के उद्योग लाने, विभिन्न आर्थिक सहायता योजना चलाने, रोजगार के लिए बड़े पैमाने पर कर्ज देने आदि की घोषणाएं की जाती है। नेताओं के भाषण और जमीनी हकिकत में काफी अंतर नजर आने लगा है। इसलिए इन भाषणों से परे, चंद्रपुर जिले के हजारों युवा बेरोजगार और मजदूरों का पलायन फिर एक बार चर्चा का मुख्य विषय बनता जा रहा है।
बताया जाता है कि चंद्रपुर जिले से मज़दूरों के जत्थे के जत्थे नागपुर, वर्धा, वाशिम की ओर रवाना हो रहे हैं। जिले के हजारों मज़दूरों का रोजगार के लिए स्थलांतरण होना इस जिले के विकास की समीक्षा के लिए यकीनन एक चिंता का विषय बना हुआ है। पर्याप्त काम उपलब्ध न होने के कारण जिले के मज़दूरों का स्थलांतर शुरू हो गया है। इस कारण इस साल के विधानसभा चुनावों पर इसका बड़ा असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है।
चंद्रपुर जिले के मूल, पोंभूर्णा, नागभीड, ब्रम्हपुरी, सावली और सिंदेवाही तहसीलों में मुख्य और एकमात्र फसल धान है। और इसी फसल पर इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है। हालांकि, यह धान की फसल मज़दूरों को पर्याप्त रोजगार नहीं दे पा रही है। जिससे वे हर साल रोजगार के लिए नागपुर जिले की ओर स्थलांतरित होते हैं। कुछ मज़दूरों के जत्थे वर्धा, वाशिम और यवतमाल जिलों की ओर भी जाते हैं।
इसके विपरीत, वर्धा और वाशिम जिलों में बहुफसल पद्धति प्रचलित है। वहां सोयाबीन, कपास, मिर्च और धान जैसी विभिन्न फसलें उगाई जाती हैं। हालांकि, इन फसलों की उपलब्धता के अनुसार मज़दूर नहीं मिल रहे हैं, इसलिए उस क्षेत्र के किसान हर साल यहां के मज़दूरों को काम के लिए बुलाते हैं।
हाल ही में सोयाबीन की फसल काटने का काम शुरू हो गया है। सोयाबीन की फसल की कटाई के लिए बड़ी संख्या में मज़दूरों की आवश्यकता होती है, इसलिए कई बड़े किसान परिचित मज़दूरों को संदेश भेज रहे हैं। इस संदेश के आधार पर मूल, पोंभूर्णा, नागभीड, ब्रम्हपुरी और सिंदेवाही तहसीलों से सैकड़ों मज़दूर उमरेड और भिवापुर तहसीलों में सोयाबीन काटने के लिए रवाना हो रहे हैं। कपास और मिर्च के सीजन में भी ऐसे ही मज़दूर हमेशा जाते हैं।
हालांकि, मज़दूरों को ले जाने वाले वाहनों के कई बार दुर्घटनाएँ होती हैं। सात महीने पहले उमरेड तहसील में हुई एक दुर्घटना में ब्रम्हपुरी तहसील के माहेर गांव की चार महिलाओं की मौके पर ही मृत्यु हो गई थी। इसी हफ्ते नागभीड तहसील के डोंगरगांव में एक महिला की मौत हुई और तीन महिलाएँ गंभीर रूप से घायल हो गईं। उनका इलाज नागपुर में चल रहा है। इन घटनाओं के बावजूद, पेट भरने के लिए मज़दूरों को यह जोखिम उठाना पड़ रहा है। जो मज़दूर ठहरने में असमर्थ हैं, उनके लिए वाहनों की व्यवस्था की गई है। ये मज़दूर इन वाहनों के जरिए आते-जाते हैं। कुछ गांवों में मज़दूरों को ले जाने के लिए विशेष वाहन तैयार किए गए हैं। ये मज़दूर भिवापुर और उमरेड तहसीलों तक काम करने के लिए जाते हैं।
चंद्रपुर जिले के अनेक ऐसे तहसीलें हैं, जहां नाममात्र के लिए एमआईडीसी खोली गई है। इन स्थानों पर मौजूद जमीन बंजर बनकर पड़ी है। यहां न तो कोई बड़ा उद्योग लाया जा सका है और न ही तहसीलों के औद्योगिक विकास की दिशा में कोई बड़ा प्रयास किया जा सका है। कुल मिलाकर सरकार और नेताओं की घोषणाएं यहां रोजगार दिलाने में विफल ही साबित हुई है।
जिले में उच्च शिक्षित, अल्प शिक्षित, डिग्री और डिप्लोमा धारक युवाओं को पर्याप्त रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। इस कारण नागरिकों को रोजगार की तलाश में बाहर जाना पड़ रहा है। जिससे गांव भी सुनसान होते जा रहे हैं।
महात्मा गांधीजी के चरणों से पवित्र हुए सावली तहसील में राजनीतिक नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने केवल वोट बैंक के लिए युवा और बेरोजगार जनता का इस्तेमाल किया है। यहां अब तक औद्योगिक विकास का कोई संकेत नहीं है। परिणामस्वरूप, 15 अगस्त 1992 को स्थापित सावली तहसील के युवा बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
जिले के अनेक तहसीलों के लोगों को अभी भी जलसिंचन की व्यवस्था नहीं होने के कारण वर्ष में केवल 4 महीने ही धान की फसल का उत्पादन होता है। धान की फसल का उत्पादन होने के बाद अगले 8 महीने तक युवा और जनता के पास काम नहीं होता। इस कारण परिवार के खर्चों को पूरा करने के लिए ग्रामीण सोयाबीन की कटाई के लिए गांव छोड़ रहे हैं। रोजगार के लिए बड़ी संख्या में लोग बाहर जाने के कारण गांवों का सुनसान होना आम हो गया है।
जिले में भले ही बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही हो, लेकिन महीने में मिलने वाला 350 रुपये का 5जी इंटरनेट अनलिमिटेड डेटा बेरोजगारों को उनकी स्थिति का अहसास नहीं कराता। युवा मोबाइल के आदी हो गये हैं और दिन भर ऑनलाइन मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे न तो वे खेती की ओर ध्यान दे रहे हैं और न ही रोजी-रोटी कमाने की तरफ। इस स्थिति में 5जी का अनलिमिटेड डेटा बेरोजगारों के लिए एक बोझ बन रहा है।
जहां एक ओर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग रोजी-रोटी कमाने के लिए बाहर जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गांव में व्यवसाय करने वाले छोटे व्यवसायियों पर अनकहे मंदी का साया मंडरा रहा है। इस प्रकार, जिले के ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी और आर्थिक संकट का माहौल बनता जा रहा है।
विधानसभा के मतदानों पर होगा असर
रोजगार के लिए स्थलांतरित होने वाले मज़दूरों का स्थलांतरण फिर से शुरू हो गया है। अल्पभूधारक किसान भी अपनी खेतों के काम निपटाकर रोजगार के लिए स्थलांतरित होते हैं। इस स्थिति ने क्षेत्र की राजनीति और आगामी विधानसभा चुनावों पर प्रभाव डालने की संभावना को बढ़ा दिया है। इसका यकीनन असर मतदान पर होगा। यदि रोजगार की दिक्कतों को स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सरकारों की ओर से दूर नहीं किया गया तो यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा। और राजनेताओं की तमाम घोषणाएं यहां धरी की धरी साबित होती रहेगी।