लाशों से भी कमाई, रिश्वत चाहिये 2000 !

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पोंभूर्णा के सरकारी ग्रामीण अस्पताल में पोस्टमार्टम की कुनीति

मृतक की डेडबॉडी पर भी अब रिश्वत मांगने लगे कर्मचारी

जिले का पोंभूर्णा तहसील आदिवासी बहुल, अविकसित और दुर्गम माना जाता है। यहां के गरीब ग्रामीण, किसान, खेत मजदूर, महिलाएं, बच्चे तहसील के सरकारी ग्रामीण अस्पताल में उपचार के लिए आते हैं। परंतु अनेक असुविधाओं और परेशानियों के बीच अब इसी पोंभूर्णा ग्रामीण अस्पताल की एक चौंकाने वाली खबर ने खलबली मचा दी है। चेकठाणेवासना गांव निवासी एक गरीब परिवार के एक व्यक्ति की करंट लगने के चलते मौत हो गई। चूंकि तय नियमों के अनुसार उनके शव का पोस्टमार्टम करवाना अनिवार्य था। परंतु पोंभूर्णा सरकारी अस्पताल प्रबंधन के कर्मचारियों ने मृतक के पोस्टमार्टम के लिए 2000 रुपयों की रिश्वत उसके परिजानों से मांगी। डेडबॉडी से भी रिश्वत और कमाई करने की इस घटिया नीति से परेशान मृतक परिजनों ने अपनी व्यथा परिचित नागरिकों को बताई। इसके बाद यह मुद्दा तुल पकड़ने लगा। बवाल मच गया। सर्वत्र इस मामले की नींदा होने लगी। सामाजिक कार्यकर्ता भी पहुंच गये। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर आंदोलन की चेतावनी दी गई। इस प्रकरण को लेकर जनता में रोष उमड़ रहा है।

मरने के बाद नहीं बख्श रहे गरीबों को
पोंभूर्णा के ग्रामीण अस्पताल में शव परीक्षण के लिए पैसे मांगने की इस घटना ने इलाके के लोगों में रोष उत्पन्न पैदा कर दिया है। यह अस्पताल, जो सरकार द्वारा बनाए गए स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है, इस तरह की घटना ने सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की विफलताओं को उजागर कर दिया है। ग्रामीण इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं का जिम्मा जिन अस्पतालों पर होता है, वही अस्पताल अब मृतकों के शरीर से भी कमाई करने में लगे हैं।

पोस्टमार्टम के लिए रिश्वत की डिमांड निंदनीय
इस मामले की शुरुआत 5 अक्टूबर 2024 को पोंभूर्णा तहसील के चेकठाणेवासना गांव के एक इलेक्ट्रीशियन की मौत के साथ हुई। काम के दौरान बिजली के झटके से उनकी मृत्यु हो गई, और शव परीक्षण के लिए उनके शव को पोंभूर्णा के सरकारी ग्रामीण अस्पताल में लाया गया। लेकिन वहां मौजूद कर्मचारियों ने शव परीक्षण के लिए मृतक के परिवार से 2000 रुपये की मांग की। पीड़ित परिवार पहले ही आर्थिक संकट से जूझ रहा था और उनके पास पैसे नहीं थे। उन्होंने कर्मचारियों से विनती की कि उनके पास इतनी राशि नहीं है, लेकिन कर्मचारियों ने पैसे दिए बिना शव परीक्षण करने से इनकार कर दिया। अंत में, परिवार को मजबूरी में किसी से राशि उधार लेनी पड़ी ताकि वे शव परीक्षण करा सकें।

इमारत पर करोड़ों खर्च, सुविधाएं नदारद
पोंभूर्णा का यह ग्रामीण अस्पताल, जो कि आदिवासी बहुल क्षेत्र में स्थित है। कई सालों से बदहाली का शिकार है। अस्पताल की इमारत पर सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन वहां आज भी पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं। और न ही कोई स्थायी चिकित्सा अधीक्षक है। अस्पताल आने वाले मरीजों को अक्सर उपचार की बजाय रेफर के नाम पर निजी अस्पतालों का रास्ता दिखा दिया जाता है। जिससे यहां के गरीब नागरिक बुरी तरह प्रभावित होते हैं।

सरकारी घोषणाएं बन गई खोखली
सरकार ने जनहित में स्वास्थ्य सेवाएं मुफ्त में प्रदान करने के लिए नाममात्र 5 रुपये की पर्ची भी माफ कर दी है, लेकिन वास्तविकता इससे बहुत अलग है। अस्पतालों में इलाज के लिए गरीब जनता को भारी शुल्क चुकाना पड़ रहा है। इस घटना ने दिखा दिया कि सरकारी घोषणाओं और जमीनी हकीकत में कितना अंतर है।

दोषियों को निलंबित करें
चेकठाणेवासना गांव के सामाजिक कार्यकर्ता वैभव पिंपलशेंडे ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि शव परीक्षण के लिए पैसे लेने वाले कर्मचारियों के खिलाफ तत्काल जांच कर उन्हें निलंबित किया जाए। पिंपलशेंडे ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर दो दिनों के भीतर दोषियों पर कार्रवाई नहीं की गई, तो ग्रामीण अस्पताल के सामने बड़े पैमाने पर जन आंदोलन किया जाएगा। पोंभूर्णा की यह घटना केवल एक उदाहरण है कि किस तरह से सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में भ्रष्टाचार और लापरवाही से गरीब जनता को परेशान किया जा रहा है।