Debt and drought hit: 70-year-old farmer Vithoba Jhade committed suicide by jumping in front of a train, leaving his family in deep grief.
भद्रावती, 10 नवंबर 2025: महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में एक बार फिर किसानों की बदहाली ने सबको झकझोर दिया है। चालबर्डी (कोंढा) गांव के 70 वर्षीय बुजुर्ग किसान विठोबा नागोबा झाड़े ने शनिवार सुबह (9 नवंबर) कर्ज के बोझ और फसल नाकामी की मार से तंग आकर माजरी रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन के नीचे कूदकर आत्महत्या कर ली। यह घटना न सिर्फ एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि पूरे किसान समुदाय के लिए एक चेतावनी की घंटी बजाती है।
सूत्रों के अनुसार, विठोबा के नाम पर चालबर्डी के सर्वे नंबर 74 में मात्र 0.81 हेक्टेयर जमीन थी। पिछले सीजन में हुई भारी बारिश ने उनकी फसल को पूरी तरह तबाह कर दिया। न कोई आय, न कोई सहारा—और ऊपर से जिला सेंट्रल बैंक का 60 हजार रुपये का कर्ज। “घर चलाना मुश्किल, कर्ज चुकाना नामुमकिन,” यही उनकी जिंदगी की हकीकत बन गई। पिछले दस दिनों से वे गहरे मानसिक तनाव में डूबे थे। सुबह घर से निकले और सीधे रेल पटरी पर पहुंचे, जहां ट्रेन की चपेट में आकर उन्होंने अपना दम तोड़ दिया।
घटना की खबर फैलते ही इलाके में सन्नाटा पसर गया। विठोबा के पीछे पत्नी, एक बेटा और पांच बेटियां हैं। बेटे की जिम्मेदारियां और बेटियों का भविष्य—सब कुछ अब अनिश्चितता के अंधेरे में डूब गया। परिवार पर आर्थिक संकट का काला साया मंडराने लगा है। स्थानीय लोग आंसुओं से भरे नजर आ रहे हैं, और सवाल उठ रहे हैं—कब तक चलेगा यह सिलसिला?
इस दर्दनाक हादसे पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए महाराष्ट्र राज्य किसान संरक्षण समिति के अध्यक्ष विठ्ठल बतखल और चालबर्डी के सरपंच विजय खंगार ने शोक जताया। बतखल ने कहा, “यह सिर्फ एक मौत नहीं, सिस्टम की नाकामी का आईना है। जिला प्रशासन को तुरंत पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता देनी चाहिए, वरना और कितने विठोबा खोने पड़ेंगे?” खंगार ने भी मांग की कि कर्ज माफी और फसल बीमा की व्यवस्था को मजबूत किया जाए।
स्थानीय पुलिस ने घटना दर्ज कर ली है और जांच शुरू कर दी है। लेकिन सवाल वही पुराना—नापिकी और कर्जबाजी का यह जाल कब टूटेगा? महाराष्ट्र में किसान आत्महत्याओं का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है, और हर मौत के साथ सरकार की नीतियां सवालों के घेरे में आ रही हैं। विठोबा की कहानी एक सबक है: अगर समय रहते हस्तक्षेप न हुआ, तो खेतों की हरियाली सूखेगी ही नहीं, किसानों की जिंदगियां भी सूख जाएंगी।










