राज-उद्धव की तरह देशक-बाळू हुए एकजुट

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■ अंबेडकर प्रणीत आंदोलनों को मिलेगी ताकत, जनता में हर्ष

चंद्रपुर.
जिले के राजनीतिक इतिहास के पन्ने संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहब अंबेडकर के वैचारितक वारिस बैरिस्टर राजाभाऊ खोब्रागडे के बिना अधूरे हैं। चंद्रपुर जिले के अंबेडकरी आंदोलनों का इतिहास उनके बिना पूर्ण नहीं हो सकता है। वे न केवल इस भूमि के सुपूत्र रहे हैं, बल्कि उन्होंने चंद्रपुर जिले का नाम देश के पटल पर रौशन किया। चंद्रपुर को एक अनोखी पहचान दिलाई। भाऊराव देवाजी खोब्रागडे (25 सितंबर 1925 – 9 अप्रैल 1984), जिन्हें सामान्यत: राजाभाऊ खोब्रागडे के नाम से जाना जाता है, वे भारत के राज्यसभा के उपसभापति पर विराजमान रहे। वे अंबेडकरवादी समाजसेवक और राजनेता रहे। उनके वंशजों में बीते कुछ वर्षों से मनमुटाव चल रहा था। अंतत: आज के दिन तमाम आपसी असहमतियों को दरकिनार करते हुए देशक खोब्रागडे और बाळूभाऊ खोब्रागडे एकजुट हो गए। ठीक उसी तरह जैसे चंद माह पूर्व शिवसेना के दिग्गज नेता उद्धव ठाकरे और मनसे के संस्थापक व प्रमुख राज ठाकरे एकजुट हुए। बहरहाल देशक और बाळूभाऊ की एकजुटता चंद्रपुर के अंबेडकरी आंदोलनों को ताकत देने का काम करेगी। यह उम्मीद उनके समर्थकों की ओर से जताई जा रही है।
ज्ञात हो कि बैरिस्टर राजाभाऊ खोब्रागडे वर्ष 1958 से 1984 तक अलग-अलग अवधियों में भारतीय संसद के राज्यसभा सदन के सदस्य रहे। 1969 से 1972 तक उन्होंने राज्यसभा के उपसभापति के रूप में कार्य किया। खोब्रागडे आंबेडकरवादी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) के प्रमुख नेता थे। वे अनुसूचित जाति समुदाय में जन्मे और 1956 में भारतीय संविधान के जनक डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के साथ उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया।
खोब्रागडे की प्रारंभिक शिक्षा चंद्रपुर की जुबिली हाईस्कूल में ही हुई थी। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की सलाह पर वे 1950 में लंदन के लिंकन कॉलेज में कानून की पढ़ाई के लिए गए। डॉ. आंबेडकर द्वारा लंदन में पढ़ाई के लिए भेजे गए 16 विद्यार्थियों में वे भी शामिल थे, लेकिन वे अपने स्वयं के खर्च पर लंदन गए थे, जबकि बाकी छात्रवृत्ति पर गए थे।
अखिल भारतीय रिपब्लिकन पार्टी भारत का एक राजनीतिक दल है, जो रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया का एक गुट है और इसका नाम खोब्रागडे के नाम पर रखा गया है। अब जब देश में बाबासाहब के नाम पर राजनीति खेमे एकजुट होने लगे हैं तो चंद्रपुर में भी अंबेडकरी जनता की ओर से संगठन की मजबूती को लेकर अपेक्षाएं बढ़ गई थी। इस बीच आज का दिन विशेष रहा। क्योंकि बैरिस्टर खोब्रागडे के वंशजों ने एकजुट होकर बाबासाहब के विचारों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। देशक खोब्रागडे और बाळूभाऊ खोब्रागडे एकत्र आने से यहां के अंबेडकरी आंदोलनों और गतिविधियों को एक नई दिशा मिलेगी। समर्थक भी एकजुट होकर अपने कार्यक्रमों को उत्तम ढंग से सफल कर पाएंगे। इनकी एकजुटता का सकारात्मक असर आगामी चुनावों पर भी दिखाई पड़ सकता है। फिलहाल इस संगम से स्थानीय अंबेडकरी समर्थकों में हर्ष का माहौल है।